दिल्ली दंगाः हाईकोर्ट ने छात्र कार्यकर्ता गुलफ़िशा फ़ातिमा की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका ख़ारिज की

दिल्ली दंगों संबंधी मामले में आरोपी छात्र कार्यकर्ता गुलफ़िशा फ़ातिमा ने हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर कर कहा था कि उन्हें हिरासत में रखना ग़ैर क़ानूनी है, जिस पर अदालत ने कहा कि वे न्यायिक हिरासत में है और इसे अवैध नहीं कहा जा सकता.

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गुलफिशा फातिमा. (फोटो साभार: ट्विटर)

दिल्ली दंगों संबंधी मामले में आरोपी छात्र कार्यकर्ता गुलफ़िशा फ़ातिमा ने हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर कर कहा था कि उन्हें हिरासत में रखना ग़ैर क़ानूनी है, जिस पर अदालत ने कहा कि वे न्यायिक हिरासत में है और इसे अवैध नहीं कहा जा सकता.

गुलफिशा फातिमा. (फोटो साभार: ट्विटर)

नयी दिल्लीः दिल्ली हाईकोर्ट ने उत्तरपूर्वी दिल्ली दंगे मामले में छात्र कार्यकर्ता गुलफिशा फातिमा की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका शुक्रवार को खारिज कर दी.

जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस जसमीत सिंह की पीठ ने फातिमा की याचिका खारिज करते हुए इसे पूरी तरह से गलत और सुनवाई के योग्य नहीं बताया.

अदालत का कहना है कि गुलफिशा फातिमा न्यायिक हिरासत में थी और इस हिरासत को अवैध नहीं कहा जा सकता. पीठ ने कहा कि बंदी प्रत्यक्षीकरण की रिट उस व्यक्ति के संबंध में दायर नहीं होती जो न्यायिक हिरासत में है.

पीठ ने कहा कि बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका उस व्यक्ति को पेश करने का निर्देश देने के लिए दायर की जाती है, जो लापता है या गैरकानूनी तरीके से हिरासत में है.

पीठ ने कहा, ‘तथ्य यह दिखाते हैं कि याचिकाकर्ता न्यायिक हिरासत में हैं इसलिए इसे गैरकानूनी नहीं कहा जा सकता.’

दरअसल याचिका में दावा किया गया था कि दिल्ली दंगे मामले में फातिमा को हिरासत में लेना गैरकानूनी है. फातिमा को नौ अप्रैल 2020 को गिरफ्तार किया गया था और फिलहाल न्यायिक हिरासत में है.

फातिमा ने अपने वकील के जरिये याचिका में कहा कि न्यायिक हिरासत में उनकी डिटेंशन अवैध और अमान्य है. उन्होंने पिछले साल निचली अदालत द्वारा उनकी न्यायिक हिरासत बढ़ाने के आदेश की वैधता पर सवाल उठाया गया था.

पीठ ने कहा कि अगर फातिमा निचली अदालत में न्यायिक कार्यवाही में अदालत द्वारा पारित आदेश से असंतुष्ट है तो उसके पास उचित कार्यवाही में उपयुक्त अदालत के समक्ष इसे चुनौती देने का कानूनी उपाय है.

पीठ ने कहा, ‘यह याचिका पूरी तरह गलत है और सुनवाई के योग्य नहीं है. इसे खारिज किया जाता है.’

फातिमा ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में दावा किया था कि गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) कानून (यूएपीए) के तहत उन्हें हिरासत में लेना गैरकानूनी है और उन्हें रिहा किया जाना चाहिए.

सुनवाई के दौरान पीठ ने फातिमा की पैरवी करने वाले वकील जतिन भट से पूछा कि क्या वह याचिका वापस लेना चाहते हैं क्योंकि उनका मानना है कि बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका इस मामले में सुनवाई योग्य नहीं है.

इस पर वकील ने कहा कि उन्हें याचिका वापस लेने के निर्देश नहीं दिए गए.

वहीं, दिल्ली पुलिस की ओर से पेश वकील अमित महाजन ने कहा कि फातिमा द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका सुनवाई योग्य नहीं है और यह कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है और इसे खारिज किया जाना चाहिए.

बता दें कि गुलफिशा फातिमा को 9 अप्रैल 2020 को जाफ़राबाद प्रदर्शन में सड़क बंद करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. एफआईआर संख्या 48/20 में उनके ऊपर आईपीसी कई धाराएं लगाई गई थीं.

इस एफआईआर पर उन्हें 13 मई 2020 को जमानत मिल गई थी, लेकिन इसके बाद आर्म्स एक्ट और यूएपीए जैसी धाराएं लगाकर उन्हें जेल में बंद कर दिया गया.

बीते साल जुलाई महीने में  गुलफिशा फातिमा की रिहाई की अपील करते हुए नागरिक समाज के सदस्यों, शिक्षाविदों, कार्यकर्ताओं, लेखकों, पत्रकारों, कलाकारों वकीलों समेत 450 से अधिक लोगों ने एक बयान जारी किया था.

गौरतलब है कि नागरिकता संशोधन कानून के समर्थकों और प्रदर्शनकारियों के बीच हिंसा के बाद 24 फरवरी को उत्तर-पूर्वी दिल्ली में भड़की सांप्रदायिक हिंसा में कम से कम 53 लोगों की मौत हो गई थी और लगभग 200 अन्य घायल हो गए थे.

(लमाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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