मणिपुर: कोरोना प्रतिबंध संबंधी ढील में टीका लगवाने वालों को प्राथमिकता के ख़िलाफ़ याचिका

मणिपुर के गृह विभाग द्वारा जारी इस अधिसूचना के ख़िलाफ़ दायर याचिका में कहा गया है कि अभी तक टीका नहीं लगवा पाए व्यक्तियों को संस्थानों, संगठनों, कारखानों और दुकानों को खोलने से दूर करना उनकी आजीविका से वंचित करना होगा, जो अगर असंवैधानिक नहीं तो गै़र-क़ानूनी है.

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(फोटो: पीटीआई)

मणिपुर के गृह विभाग द्वारा जारी इस अधिसूचना के ख़िलाफ़ दायर याचिका में कहा गया है कि अभी तक टीका नहीं लगवा पाए व्यक्तियों को संस्थानों, संगठनों, कारखानों और दुकानों को खोलने से दूर करना उनकी आजीविका से वंचित करना होगा, जो अगर असंवैधानिक नहीं तो गै़र-क़ानूनी है.

(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: मणिपुर हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है, जिसमें राज्य में कोविड-19 प्रतिबंधों में ढील देते हुए टीकाकरण वाले लोगों को प्राथमिकता देने वाली सरकारी अधिसूचना को चुनौती दी गई है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, एक सामाजिक कार्यकर्ता ने याचिका दायर कर अधिसूचना को अवैध बताते हुए रद्द करने की मांग की है.

बीते 30 जून को गृह विभाग ने एक अधिसूचना जारी कर कहा था कि राज्य ने कोविड संक्रमण स्थिति का आकलन करके कर्फ्यू और कंटेनमेंट जोन के आदेश में सुनियोजित तरीके से ढील देने का फैसला किया है.

हालांकि इसके साथ विभाग ने कहा कि सार्वजनिक स्वास्थ्य और सुरक्षा को देखते हुए सरकार ने लोगों के टीकाकरण के आधार पर संस्थानों, बाजारों, कार्यालयों को खोलने को प्राथमिकता दी है. इन शर्तों को मनरेगा जॉब कार्ड धारकों और सरकारी एवं निजी प्रोजेक्ट के श्रमिकों पर भी लागू करने का प्रावधान किया गया.

याचिकाकर्ता ने कहा कि अभी तक टीका नहीं लगवा पाए व्यक्तियों को संस्थानों, संगठनों, कारखानों और दुकानों को खोलने से दूर करना उनकी आजीविका से वंचित करना होगा, जो अगर असंवैधानिक नहीं तो गैरकानूनी है ही.

इसके अलावा याचिका में दावा किया गया है कि इस तरह के प्रतिबंधों से व्यक्ति की ये स्वतंत्रता भी प्रभावित होगी कि उसे टीका लगवाना है या नहीं.

मणिपुर सरकार ने केंद्र की नीति को ध्यान में रखते हुए अधिसूचना जारी की थी, जिसमें कोविड-19 टीकाकरण को बढ़ावा देने की मांग की गई है, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि लोगों में टीकाकरण के संभावित दुष्प्रभावों और अन्य जोखिमों के संबंध में काफी आशंकाएं हैं.

याचिकाकर्ता ने कहा, ‘यह राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि वह लोगों को टीकाकरण के लाभों के बारे में शिक्षित करके इस तरह के डर को दूर करें और टीकाकरण के दुष्परिणामों की उनकी आशंका को मिटाएं. इस मुद्दे को संबोधित किए बिना राज्य नागरिकों पर टीकाकरण के लिए मजबूर नहीं कर सकता है.’

इसे लेकर हाईकोर्ट ने 27 जुलाई तक राज्य से जवाब मांगा है. कोर्ट ने कहा है तब तक इस अधिसूचना के प्रावधानों को लागू न किया जाए.