उत्तराखंड हाईकोर्ट ने हरिद्वार ज़िले में बूचड़खानों पर लगी रोक पर उठाया सवाल

इस साल मार्च में उत्तराखंड सरकार ने हरिद्वार ज़िले को बूचड़खानों से मुक्त क्षेत्र घोषित कर दिया था और बूचड़खानों के लिए जारी अनापत्ति पत्रों को भी रद्द कर दिया था. अदालत ने कहा कि सभ्यता का आकलन केवल इस बात से किया जा सकता है कि अल्पसंख्यकों के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है और हरिद्वार में इस पाबंदी से सवाल उठता है कि राज्य किस हद तक नागरिकों के विकल्पों को तय कर सकता है.

उत्तराखंड हाईकोर्ट. (फोटो साभार: फेसबुक)

इस साल मार्च में उत्तराखंड सरकार ने हरिद्वार ज़िले को बूचड़खानों से मुक्त क्षेत्र घोषित कर दिया था और बूचड़खानों के लिए जारी अनापत्ति पत्रों को भी रद्द कर दिया था. अदालत ने कहा कि सभ्यता का आकलन केवल इस बात से किया जा सकता है कि अल्पसंख्यकों के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है और हरिद्वार में इस पाबंदी से सवाल उठता है कि राज्य किस हद तक नागरिकों के विकल्पों को तय कर सकता है.

उत्तराखंड हाईकोर्ट. (फोटो साभार: फेसबुक)

नैनीतालः उत्तराखंड हाईकोर्ट ने हरिद्वार जिले में बूचड़खानों पर रोक लगाने के फैसले की संवैधानिकता पर सवाल उठाते हुए कहा कि सभ्यता का आकलन अल्पसंख्यकों के साथ किए जाने वाले व्यवहार के आधार पर होता है.

हरिद्वार में बूचड़खाने पर रोक लगाने के फैसले को चुनौती देने के लिए मंगलौर कस्बे के रहने वाले याचिककार्ता की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस आरएस चौहान और जस्टिस आलोक कुमार वर्मा की पीठ ने कहा, ‘लोकतंत्र का मतलब है अल्पसंख्यकों की रक्षा. सभ्यता का आकलन केवल इस बात से किया जा सकता है कि अल्पसंख्यकों के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है और हरिद्वार में इस पाबंदी से सवाल उठता है कि राज्य किस हद तक नागरिकों के विकल्पों को तय कर सकता है.’

याचिका में कहा गया, ‘पाबंदी निजता के अधिकार, जीवन के अधिकार, स्वतंत्रता से अपने धार्मिक रीति-रिवाजों का पालन करने के अधिकार का उल्लंघन करता है. यह हरिद्वार जिले में मुस्लिमों के साथ भेदभाव करता है, जहां पर मंगलौर जैसे कस्बे में बड़ी मुस्लिम आबादी रहती है.’

याचिका में कहा गया, ‘हरिद्वार में धर्म और जाति की सीमाओं से परे साफ और ताजा मांसाहार से मनाही भेदभाव जैसा है.’

बता दें कि इस साल मार्च में राज्य सरकार ने हरिद्वार को बूचड़खानों से मुक्त क्षेत्र घोषित कर दिया था और बूचड़खानों के लिए जारी अनापत्ति पत्रों को भी रद्द कर दिया था.

याचिका में दावा किया गया कि पाबंदी मनमाना और असंवैधानिक है. ‘’

याचिका में इस फैसले को दो कारणों से चुनौती दी गई है, जिसमें कहा गया है कि मांस पर किसी तरह की पूर्ण पांबदी असंवैधानिक है, जबकि उत्तर प्रदेश नगर निगम अधिनियम में उत्तराखंड सरकार द्वारा जोड़ी गई धारा 237ए, उसे नगर निगम, परिषद या नगर पंचायत को बूचड़खाना मुक्त घोषित करने का अधिकार प्रदान करती है.

अदालत ने कहा कि याचिका में गंभीर मौलिक सवाल उठाए गए हैं और इसमें संवैधानिक व्याख्या शामिल है.

अदालत ने कहा कि इसी तरह के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मांस पर प्रतिबंध किसी पर भी थोपा नहीं जाना चाहिए. कल आप कह सकते हैं कि कोई मांस का सेवन न करे.

हाईकोर्ट ने इसे ध्यान में रखते हुए टिप्पणी की कि सवाल यह है कि क्या नागरिकों को अपना भोजन चुनने का अधिकार है या राज्य इसका फैसला करेगा.

अदालत ने हालांकि कहा कि संवैधानिक मामला और त्योहार को देखते हुए सुनवाई में जल्दबाजी नहीं की जा सकती. मामले में उचित सुनवाई और विमर्श की जरूरत है, इसलिए इस मामले पर फैसला बकरीद तक करना संभव नहीं है जो 21 जुलाई को है. मामले की अगली सुनवाई 23 जुलाई को होगी.

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq