अस्पताल मानवता की सेवा करने के बजाय बड़े उद्योग की तरह हो गए हैं: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कोविड-19 रोगियों के उचित इलाज पर स्वत: संज्ञान लिए गए मामले को सुनते हुए कहा कि अस्पताल कठिनाई के समय में राहत प्रदान करने के लिए होते हैं न कि नोट छापने की मशीन। साथ ही कोर्ट ने निर्देश दिया कि आवासीय इलाकों में दो-तीन कमरे में चलने वाले ‘नर्सिंग होम’ सुरक्षा पर ध्यान नहीं देते, इसलिए उन्हें बंद किया जाना चाहिए.

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(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

सुप्रीम कोर्ट ने कोविड-19 रोगियों के उचित इलाज पर स्वत: संज्ञान लिए गए मामले को सुनते हुए कहा कि अस्पताल कठिनाई के समय में राहत प्रदान करने के लिए होते हैं न कि नोट छापने की मशीन। साथ ही कोर्ट ने निर्देश दिया कि आवासीय इलाकों में दो-तीन कमरे में चलने वाले ‘नर्सिंग होम’ सुरक्षा पर ध्यान नहीं देते, इसलिए उन्हें बंद किया जाना चाहिए.

(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि कोविड-19 महामारी के दौर में अस्पताल मानवता की सेवा करने के बजाय बड़े रियल एस्टेट उद्योग की तरह हो गए हैं. इसके साथ ही न्यायालय ने निर्देश दिया कि आवासीय इलाकों में दो-तीन कमरे के फ्लैट में चलने वाले ‘नर्सिंग होम’ आग और भवन सुरक्षा पर ध्यान नहीं देते हैं, इसलिए उन्हें बंद किया जाना चाहिए.

न्यायालय ने भवन उपनियमों के उल्लंघन में सुधार लाने के लिए समय सीमा अगले वर्ष जुलाई तक बढ़ाने पर गुजरात सरकार की खिंचाई की और ‘पूर्णाधिकार पत्र’ अधिसूचना शीर्ष अदालत के 18 दिसंबर के आदेश के विपरीत है और ऐसी स्थिति में आग लगने की घटनाओं से लोग मरते रहेंगे.

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने कहा, ‘आप (गुजरात सरकार) समय सीमा बढ़ाते रहे हैं जिसे पिछले वर्ष 18 दिसंबर के हमारे फैसले के परिप्रेक्ष्य में नहीं किया जा सकता है. अस्पताल कठिनाई के समय में रोगियों को राहत प्रदान करने के लिए होते हैं न कि नोट छापने की मशीन होते हैं.’

अदालत ने कहा कि आपदा के इस समय में अस्पताल बड़े उद्योग बन गए हैं और आवासीय कॉलोनी में दो-तीन कमरे के फ्लैट से चलने वाले इस तरह के नर्सिंग होम को काम करने की अनुमति नहीं देनी चाहिए.

पीठ ने कहा, ‘बेहतर है कि इन अस्पतालों को बंद कर दिया जाए और सरकार को आवश्यक सुविधाएं मुहैया करानी चाहिए. हम इन अस्पतालों एवं नर्सिंग होम को काम जारी रखने की अनुमति नहीं दे सकते. यह मानवीय आपदा है.’

अदालत ने महाराष्ट्र के नासिक का जिक्र करते हुए यह टिप्पणी की जहां पिछले वर्ष कुछ रोगी और नर्स मारे गए थे.

शीर्ष अदालत ने संकेत दिए कि गुजरात सरकार को अधिसूचना वापस लेनी होगी और कहा कि यह पिछले वर्ष के आदेश के खिलाफ प्रतीत होता है. न्यायालय ने कहा कि यह अधिसूचना जारी करने के बारे में एक हफ्ते के अंदर जवाब मांगा है.

इसने अस्पतालों में अग्नि सुरक्षा के मुद्दे पर एक आयोग द्वारा सीलबंद लिफाफे में दायर की गई रिपोर्ट पर भी आपत्ति जताई और कहा कि यह कोई परमाणु रहस्य नहीं है, बल्कि सिर्फ एक रिपोर्ट है. सीलबंद लिफाफे में क्यों दिया गया.

इसने अस्पतालों में अग्नि सुरक्षा के मुद्दे पर एक आयोग द्वारा सील कवर में दायर रिपोर्ट का भी संज्ञान लिया और कहा कि यह नाभिकीय गोपनीयता नहीं है बल्कि रिपोर्ट है. सील कवर में क्यों दिया गया.

इसने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से अधिसूचना के मुद्दे पर गौर करने और गुजरात सरकार के समक्ष इसे उठाने के लिए कहा और राज्य सरकार को पिछले वर्ष शीर्ष अदालत के फैसले के अनुपालन में कराए गए अग्नि सुरक्षा ऑडिट का ब्यौरा एवं अधिसूचना पर विस्तृत जवाब देने का निर्देश दिया.

शीर्ष अदालत कोविड-19 रोगियों के उचित इलाज पर स्वत: संज्ञान से लिए गए मामले की सुनवाई कर रही थी और उसने मामले में सुनवाई की अगली तारीख दो हफ्ते बाद तय की.

बिजनेस स्टैंडर्स के मुताबिक, पिछले साल 18 दिसंबर को शीर्ष अदालत ने सभी राज्यों को प्रत्येक जिले में एक समिति गठित करने का निर्देश दिया था, जो महीने में कम से कम एक बार कोविड-19 अस्पतालों का फायर ऑडिट करे, किसी भी कमी के बारे में चिकित्सा प्रतिष्ठानों के प्रबंधन को सूचित करे और सरकार को रिपोर्ट करे.

इसने कहा था कि जिन कोविड-19 अस्पतालों ने संबंधित अग्निशमन विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र प्राप्त नहीं किया है, उन्हें तुरंत एनओसी के लिए आवेदन करने के लिए कहा जाना चाहिए और आवश्यक निरीक्षण करने के बाद इस संबंध में निर्णय लिया जाएगा.

अदालत ने कहा था कि जिन कोविड अस्पतालों ने अपनी एनओसी का नवीनीकरण नहीं कराया है, उन्हें तत्काल नवीनीकरण के लिए कदम उठाने चाहिए, जिस पर उचित निरीक्षण कर निर्णय लिया जा सके. यदि कोविड ​​​​अस्पताल में एनओसी नहीं है या नवीनीकरण प्राप्त नहीं हुआ है, तो राज्य द्वारा उचित कार्रवाई की जानी चाहिए

शीर्ष अदालत ने निर्देश दिया था कि सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को प्रति कोविड ​​​​अस्पताल के लिए एक नोडल अधिकारी नियुक्त करना चाहिए, जिसे सभी अग्नि सुरक्षा उपायों के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार बनाया जाएगा.

बता दें कि गुजरात के राजकोट शहर में पिछले साल 26 नवंबर को उदय शिवानंद कोविड-19 अस्पताल के आईसीयू में आग लगने से पांच मरीजों की मौत हो गई थी और छह अन्य घायल हो गए थे.

इससे पहले अगस्त महीने में अहमदाबाद के एक निजी कोविड-19 अस्पताल के आईसीयू वॉर्ड में आग लगने के बाद आठ कोरोना मरीजों की मौत हो गई थी.

अहमदाबाद में नवरंगपुर इलाके के श्रेय अस्पताल के आईसीयू वॉर्ड में आग लगी थी. इस हादसे के वक्त अस्पताल में 40-45 मरीज यहां भर्ती थे. मृतकों में पांच पुरुष और तीन महिलाएं शामिल थीं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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