कान्स: पायल की फिल्म को सर्वश्रेष्ठ डॉक्यूमेंट्री पुरस्कार, एफटीआईआई में हुई थी कार्रवाई

मुंबई की फिल्म निर्माता पायल कपाड़िया ने 2015 में भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान (एफटीआईआई) के अध्यक्ष के रूप में गजेंद्र चौहान की नियुक्ति के ख़िलाफ़ चार महीने तक चले विरोध प्रदर्शन की अगुवाई की थी. यह प्रदर्शन एफटीआईआई में सबसे लंबे चले प्रदर्शनों में से एक था. पुणे पुलिस ने पायल कपाड़िया और 34 अन्य छात्रों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज भी की थी. उनकी छात्रवृत्ति ग्रांट में भी कटौती कर दी गई थी.

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पायल कपाड़िया (फोटो साभारः ट्विटर)

मुंबई की फिल्म निर्माता पायल कपाड़िया ने 2015 में भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान (एफटीआईआई) के अध्यक्ष के रूप में गजेंद्र चौहान की नियुक्ति के ख़िलाफ़ चार महीने तक चले विरोध प्रदर्शन की अगुवाई की थी. यह प्रदर्शन एफटीआईआई में सबसे लंबे चले प्रदर्शनों में से एक था. पुणे पुलिस ने पायल कपाड़िया और 34 अन्य छात्रों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज भी की थी. उनकी छात्रवृत्ति ग्रांट में भी कटौती कर दी गई थी.

पायल कपाड़िया (फोटो साभारः ट्विटर)

नई दिल्लीः मुंबई की फिल्म निर्माता पायल कपाड़िया को 74वें कान्स फिल्मोत्सव में उनकी फिल्म ‘अ नाइट ऑफ नोइंग नथिंग’ के लिए सर्वश्रेष्ठ डॉक्यूमेंट्री का ओइल डी’ओर (Oeil d’or – गोल्डन आई) पुरस्कार मिला है.

कपाड़िया ने 2015 में भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान (एफटीआईआई) के अध्यक्ष के रूप में गजेंद्र चौहान की नियुक्ति के खिलाफ चार महीने तक चले विरोध प्रदर्शन की अगुवाई की थी.

यह प्रदर्शन एफटीआईआई कैंपस में सबसे लंबे चले प्रदर्शनों में से एक था. इस दौरान छात्रों ने संस्थान की अगुवाई के लिए चौहान की क्षमता पर सवाल उठाते हुए कक्षाओं का बहिष्कार किया था.

बता दें कि चौहान ने कई पौराणिक धारावाहिकों में काम किया है और नियुक्ति के समय वह भाजपा नेता थे.

इस मामले में पुणे पुलिस ने पायल कपाड़िया और 34 अन्य छात्रों के खिलाफ एफआईआर दर्ज भी की थी.

दरअसल एफटीआईआई के तत्कालीन निदेशक प्रशांत पथराबे ने अधूरे असाइनमेंट पर ही छात्रों को ग्रेडिंग देने का फैसला किया था, जिसके विरोध में कपाड़िया समेत इन छात्रों ने उनके ऑफिस में कथित तौर पर तोड़-फोड़ की थी और उन्हें बंधक बना लिया था.

पायल कपाड़िया की छात्रवृत्ति ग्रांट में भी कटौती कर दी गई थी.

हालांकि, 2017 में हिदुस्तान टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि कपाड़िया की 13 मिनट की फिल्म ‘आफ्टरनून क्लाउड्स’ को कान्स में स्क्रीनिंग के लिए चुने जाने पर एफटीआईआई ने उनकी यात्रा का खर्च उठाने में मदद की पेशकश की थी. तब तक चौहान की जगह भाजपा समर्थक अनुपम खेर को एफटीआईआई का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था.

कपाड़िया की हालिया फिल्म ‘अ नाइट ऑफ नोइंग नथिंग’ भारत में यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाली एक छात्रा की कहानी है, जो अपने प्रेमी को पत्र लिखा करती है, जो उससे दूर है.

डायरेक्टर्स फोर्टनाइट की आधिकारिक वेबसाइट पर लिखी पोस्ट के मुताबिक, ‘इन पत्रों के जरिये हमें उसके आसपास हो रहे बदलावों की झलक मिलती है. वास्तविकता के साथ फिक्शन, सपनों, यादों, कल्पनाओं और बेचैनियों को मिलाते हुए एक अनाकार कहानी सामने आती है.’

पत्रकार निधीश एमके ने ट्वीट कर कहा, ‘जैसा कि कई लोग पहले ही बता चुके हैं कि कान्स पुरस्कार जीतने वाली पायल की डॉक्यूमेंट्री अ नाइट ऑफ नोइंग नथिंग विरोध को आगे बढ़ाती है और उनके संघर्ष के दिनों से प्रेरणा लेती है.’

कपाड़िया की फिल्म को पुरस्कार के लिए टक्कर टॉड हेयनेस की ‘द वेलवेट अंडरग्राउंड’, एंड्रीया अरनॉल्ड की ‘काउ’, ओलिवर स्टोन की ‘जेएफके रिविजिटेडः थ्रू द लूकिंग ग्लास’, मार्को बेलोचिओ की ‘मार्क्स कैन वेट’, सर्गेई लोजनिस्टा की ‘बाबी यार. कॉन्टेक्स्ट’, मार्क कजिन्स की ‘द स्टोरी ऑफ फिल्म: अ न्यू जेनरेशन’ और राहुल जैन की ‘इनविजिबल डीमंस’ से प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा.

डायरेक्टर्स फोर्टनाइट के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से शनिवार को इस पुरस्कार का ऐलान कर कहा गया, ‘कान्स फिल्म समारोह के सभी वर्गों में पेश की गई सर्वश्रेष्ठ डॉक्यूमेंट्री का पुरस्कार ओइल डी’ओर पायल कपाड़िया की फिल्म अ नाइट ऑफ नोइंग नथिंग को जाता है, जिसे डायरेक्टर्स फोर्टनाइट में चुना गया. पायल कपाड़िया और पूरे फिल्म क्रू को हमारी हार्दिक बधाई.’

पांच सदस्यीय जूरी का नेतृत्व अमेरिकी डॉक्यूमेंट्री निर्माता एज्रा एडेलमैन ने किया. जूरी में अन्य नाम फ्रांसीसी फिल्म निर्माता जूली बटुर्सेली, फ्रांसीसी अभिनेता डेबोरा फ्रेंकोइस, फ्रांसीसी-अमेरिकी फिल्म समीक्षक आइरिस ब्रे और एम्स्टर्डम के अंतर्राष्ट्रीय वृत्तचित्र फिल्मोत्सव (आईडीएफए) के कलात्मक निदेशक ओरवा न्याराबिया थे.

लास्कैम (फ्रांसीसी बोलने वाली लेखकों की सोसाइटी) ने बर्टुसेली के साथ मिलकर कान्स फिल्मोत्सव और इसके सामान्य प्रतिनिधि थिएरी फ्रेमॉक्स के साथ 2015 में इस पुरस्कार की शुरुआत की थी.

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