मध्य प्रदेश: वन विभाग की अधिकारी को क्या रेत खनन माफिया पर नकेल कसने की सज़ा मिली है

विशेष रिपोर्ट: मुरैना ज़िले के राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य में बतौर अधीक्षक तैनात श्रद्धा पांढरे ने अप्रैल में पदभार संभालने के बाद से ही क्षेत्र के रेत खनन माफिया के ख़िलाफ़ लगातार कार्रवाई की. इस दौरान उन पर ग्यारह हमले भी हुए. अब तीन महीनों के कार्यकाल के बाद ही 'रूटीन कार्रवाई' बताते हुए उनका तबादला कर दिया गया.

/
चंबल नदी के उस क्षेत्र में जहां अवैध खनन की पहुंच नहीं है, वहां कछुओं के अंडों को सहेजने के दौरान श्रद्धा. (फोटो साभार: स्पेशल अरेंजमेंट)

विशेष रिपोर्ट: मुरैना ज़िले के राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य में बतौर अधीक्षक तैनात श्रद्धा पांढरे ने अप्रैल में पदभार संभालने के बाद से ही क्षेत्र के रेत खनन माफिया के ख़िलाफ़ लगातार कार्रवाई की. इस दौरान उन पर ग्यारह हमले भी हुए. अब तीन महीनों के कार्यकाल के बाद ही ‘रूटीन कार्रवाई’ बताते हुए उनका तबादला कर दिया गया.

जब्ती की कार्रवाई के दौरान वन विभाग की टीम के साथ श्रद्धा. (फोटो साभार: स्पेशल अरेंजमेंट)

कथित तौर पर भ्रष्टाचार का विरोध करके तबादला झेलने वाले मध्य प्रदेश के आईएएस लोकेश जांगिड़ के मामले को तूल पकड़े महीनाभर भी नहीं बीता कि राज्य से एक और अधिकारी के तबादले की ऐसी ही खबर आ रही है. अवैध गतिविधियों और भ्रष्टाचार के खिलाफ मोर्चा खोलने के एवज में इस बार ईमानदारी की कीमत चुकाई है वन विभाग की एसडीओ श्रद्धा पांढरे ने.

श्रद्धा मुरैना जिले के देवरी स्थित राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य में बतौर अधीक्षक तैनात थीं. 12 अप्रैल 2021 को उन्होंने कार्यभार संभाला था. महज 94 दिनों बाद ही 14 जुलाई को उनका तबदला बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व (उमरिया) कर दिया गया.

इतनी जल्दी तबादले का कारण वन विभाग ने जरूर न बताया हो, लेकिन चंबल में चर्चा आम है कि श्रद्धा को सियासत ने रेत और खनन माफिया के दबाव में हटाया गया है. उनके द्वारा चंबल में माफिया के खिलाफ लिए कदमों के चलते वे सत्ता और सिस्टम की आंखों में खटक रही थीं.

बता दें कि चंबल नदी विलुप्तप्राय घड़ियालों का भारत में सबसे बड़ा बसेरा है. यह संरक्षित क्षेत्र में शुमार है. इसलिए रेत उत्खनन वर्जित है. इसके बावजूद सालाना करोड़ों की रेत निकालकर वर्षों से चंबल की छाती छलनी की जा रही है. लाख सरकारी दावों के बाद भी कभी कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई. सरकार भी बदलीं, लेकिन रेत की लूट चलती रही.

दशक भर पहले आईपीएस नरेंद्र कुमार की ट्रैक्टर से कुचलकर हत्या भी यहीं हुई थी. तब से कार्रवाई के नाम पर महज खानापूर्ति ही होती रही. इस लूट से नदी को तो नुकसान पहुंचा ही, साथ ही रेत-पत्थर का अवैध परिवहन कर रहे वाहनों की तेज रफ्तार ने सड़कों पर अनेक जिंदगियां रौंद डालीं.

सरकारी अमला इन वाहनों को रोकने तक की हिम्मत नहीं जुटा पाता. जिस अफसर/अधिकारी ने हिम्मत दिखाई भी, तो बेखौफ माफिया के बाहुबल और बंदूक ने उसे या उसके इरादों को कुचल डाला. डकैतों से मुक्त हुए चंबल के बीहड़ों में खनन माफियाओं की बंदूकें ऐसी गूंजने लगीं कि उनके साम्राज्य को चुनौती देने वालों की जान पर बन आई.

बीते कुछ वर्षों में पुलिस व वनकर्मियों पर हुए अनेक जानलेवा हमले और रेत/पत्थर का परिवहन करने वाले वाहनों द्वारा सरकारी मुलाजिमों की कुचलकर की गई हत्याएं, चंबल की वर्तमान खूनी गाथा कहती हैं.

ऐसी परिस्थितियों में श्रद्धा की तैनाती राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य में हुई. इसके बाद जो हुआ, उसकी कल्पना किसी ने नहीं की थी. खनन माफिया के खिलाफ जो ताबड़तोड़ मुहिम श्रद्धा ने चलाई, वैसा साहस अब तक किसी ने नहीं दिखाया था.

स्थानीय पत्रकार सत्येंद्र सिंह तोमर बताते हैं, ‘मुरैना प्रशासन इतना अक्षम था कि पुलिस थानों और अफसर-अधिकारियों के दफ्तर व बंगलों के सामने से अवैध रेत का परिवहन होता रहा, लेकिन कभी कार्रवाई नहीं हुई. पहली बार श्रद्धा ने साहस दिखाया था.’

वे आगे बताते हैं, ‘यहां बड़े पैमाने पर शासकीय निर्माणों में चंबल की रेत इस्तेमाल होती है. इस पर कभी कार्रवाई नहीं हुई. श्रद्धा ने इस पर भी एक्शन लिया. रेत जब्त की और निर्माण कराने वाले ठेकेदार पर एफआईआर दर्ज कराकर उदाहरण पेश किया कि प्रशासन चाहे तो कुछ भी कर सकता है.’

वन विभाग में ग्वालियर वन वृत्त के मुख्य वन संरक्षक (सीसीएफ) शशि मलिक भी एक पत्र में श्रद्धा की प्रशंसा करते हुए लिखते हैं कि 94 दिनी कार्यकाल में उन्होंने रेत, लकड़ी, पत्थर आदि का अवैध परिवहन कर रहे कुल 89 वाहन जब्त किए और बड़ी मात्रा में चंबल से लाई रेत नष्ट की.

हालांकि, इस दौरान खनन माफिया ने श्रद्धा के साहस की हर परीक्षा ली. 94 दिन में श्रद्धा और उनकी टीम पर दर्जनभर जानलेवा हमले हुए. गोलियां बरसाई गईं. पथराव हुआ. उनके वाहन को ट्रक से टक्कर मारी गई. हमलों के वीडियो भी वायरल हुए, जिनमें हमलावर हथियारबंद भीड़ से वे जान बचाकर भाग रहे हैं.

श्रद्धा ने द वायर  को बताया, ‘ऐसे कुल 11 हमले हुए. शिकायत पुलिस से भी की, लेकिन उन्होंने केवल 4 मामलों में ही एफआईआर लिखी. इसके लिए भी काफी मशक्कत करनी पड़ी. मेरी गैर मौजूदगी में पुलिस एफआईआर नहीं लिखती थी. मैं खुद जाती तब लड़-झगड़कर एफआईआर दर्ज कराती.’

वे आगे बताती हैं, ‘सात मामलों में तो एफआईआर ही नहीं लिखी. जिन मामलों में लिखी, उनमें भी तथ्यों से छेड़छाड़ करके हल्की धाराएं लगाईं. जानलेवा हमला करने वालों पर धारा 307 नहीं लगाई. नियमानुसार, रेत माफियाओं पर डकैती की धारा 395 लगानी थी लेकिन वह भी किसी एफआईआर में नहीं है.’

श्रद्धा के मुताबिक, केवल उनके द्वारा पकड़कर सौंपे गए हमलावरों की ही पुलिस ने गिरफ्तारी दिखाई. खुद से बाकियों को पकड़ने के प्रयास नहीं किए. वे बताती हैं, ‘किसी अपवाद को छोड़ दें तो पुलिस रिकॉर्ड में बाकी आरोपी फरार हैं, जबकि वे खुलेआम गांव में घूमकर अवैध रेत का धंधा कर रहे हैं.’

श्रद्धा पांढरे. (फोटो साभार: स्पेशल अरेंजमेंट)

गौरतलब है कि जब वन्यकर्मी छापामारी करने जाते हैं तो एहतियातन संबंधित थाने से पुलिस बल साथ ले जाते हैं, लेकिन श्रद्धा बताती हैं कि जब भी वे लोग पुलिस से संपर्क करते तो अधिकांश मौकों पर वे कोई न कोई बहाना बनाकर साथ नहीं जाते थे.

वे बताती हैं, ‘हमें इससे भी शिकायत नहीं रही. हम अपने बूते ही कार्रवाई करने निकल जाते थे. शिकायत यह रही कि बिल्कुल पास थाना था, लेकिन हम पर हमला होने की सूचना देने पर भी पुलिस घंटे-आधे घंटे देर से पहुंचती. इसलिए हमें जान बचाकर भागना पड़ता था.’

नौ जून को देवगढ़ थानाक्षेत्र के पठानपुरा गांव में यही हुआ. सैकड़ाभर हमलावरों ने उन्हें भगा-भगाकर पीटा. वनकर्मियों को गंभीर चोटें आईं. घटनास्थल से 900 मीटर दूर थाना था, लेकिन पुलिस समय पर नहीं पहुंची.

श्रद्धा बताती हैं, ‘जान बचाने के लिए कई किलोमीटर लंबा चक्कर लगाकर हमलावरों को चकमा देते हुए मुरैना मुख्यालय पहुंचे, लेकिन पुलिस ने तब भी ख़ैर ख़बर नहीं ली.’

पुलिस और माफिया में मिलीभगत के आरोपों के बीच श्रद्धा पर लगातार हमले जारी रहे. फिर भी उनके हौंसले पस्त नहीं हुए तो उनके तबादले की रूपरेखा लिखी जाने लगी, जिसमें सियासत की भी भागीदारी रही.

मुरैना के जौरा से भाजपा विधायक सूबेदार सिंह रजौधा ने श्रद्धा पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए कहा, ‘वो लेडी कोई झांसी की रानी नहीं है. जिला वनाधिकारी (डीएफओ) के साथ मिलकर भ्रष्टाचार कर रही है.’

उनके मुताबिक, श्रद्धा या वन विभाग की टीम पर अब तक कोई हमला नहीं हुआ है. श्रद्धा ही सबके खाली ट्रैक्टर पकड़कर परेशान करती हैं. रजौधा के समर्थन में क्षेत्र से शिवराज के पूर्व मंत्री ऐंदल सिंह कंसाना भी आ आए.

बहरहारल, रजौधा के दावों का विरोधाभास उनके कहे इस कथन से समझ सकते हैं, ‘श्रद्धा ने मंदिर निर्माण के लिए चंबल की रेत ले जा रही ट्रैक्टर-ट्रॉली पकड़ ली था. इस कारण ग्रामीण हमला करके ट्रैक्टर छीन ले गए. मंदिर से सबकी आस्था जुड़ी रहती है.’

रजौधा की इस कहानी को झूठा और मनगढ़ंत बताते हुए उन्हें भ्रष्टाचार के सुबूत पेश करने की चुनौती देते हुए श्रद्धा कहती हैं, ‘चंबल अभयारण्य में किसी को भी खनन की अनुमति नहीं है. हमारा काम गश्त करना था, जो हम लगातार करते थे. अवैध खनन करने वालों को पकड़ना ही हमारी ड्यूटी थी.’

वे आगे कहती हैं, ‘अपने आरोपों के समर्थन में विधायक के पास कोई साक्ष्य नहीं है. हमने जब्ती के बाद एक भी ट्रैक्टर-ट्रॉली नहीं छोड़ा. जब जब्त वाहन छोड़े ही नहीं तो पैसे किस बात के लेते? खुद पर गोलियां चलवाकर, हाथ-पैर तुड़ाकर कौन पैसा खाता है? क्या जान जोखिम में डालकर कोई भ्रष्टाचार करता है?’

क्षेत्र के सबलगढ़ से कांग्रेस विधायक बैजनाथ कुशवाह उलटा रजौधा पर ही आरोप लगाते हुए कहते हैं, ‘उनके समाज के लोग खनन करते हैं. उनके नाते-रिश्तेदारों, कार्यकर्ताओं और स्वयं के ट्रैक्टर चलते हैं इसलिए श्रद्धा को यहां से भगाना स्वाभाविक था. वरना क्या कारण है कि जिसके काम की तारीफ पूरा मुरैना और आस-पास के इलाके कर रहे हैं, उसका महज तीन महीने में अकारण तबादला कर दिया.’

वे एक पूर्व भाजपाई मंत्री पर गंभीर आरोप लगाते हुए बताते हैं, ‘चंबल से रेत निकालना बिना पूंजी का धंधा है. एक ट्रैक्टर से 10-15 हजार रुपये प्रतिदिन कमाई होती है. अवैध रेत के परिवहन में लिप्त आधे ट्रैक्टर पूर्व मंत्री के हैं. उनके समाज के अस्सी प्रतिशत लोग इसमें लिप्त हैं. सरकार जानकर भी कुछ नहीं कर सकती क्योंकि कांग्रेस सरकार गिराकर भाजपा को सत्ता सौंपने में उनकी भूमिका रही है.’

दिलचस्प यह है कि तबादले का आमजन विरोध कर रहे हैं. सोशल मीडिया पर इसकी आलोचना हो रही है. तबादला रुकवाने के लिए बीते दिनों कलेक्टर को भी ज्ञापन दिया गया. वहीं, सीसीएफ शशि मलिक ने प्रधान वन संरक्षक को पत्र लिखकर तबादला निरस्त करने की सिफारिश की है.

पत्र में उन्होंने लिखा, ‘श्रद्धा रेत माफिया के खिलाफ अच्छी कार्रवाई कर रही थीं. उन्होंने घड़ियाल जैसे विलुप्त प्राणी के संरक्षण में जी-जान से योगदान दिया. पांढरे यहां रहतीं तो अभयारण्य के हित में होता. अच्छे काम के बावजूद भी उनका तबादला व्यथित करता है. इससे रेत माफियाओं के हौंसले बुलंद होंगे. यह अभयारण्य में पाए जाने वाले घड़ियाल, मगरमच्छ एवं डॉल्फिन जैसे जलीय जीवों की प्रजाति के लिए अत्यंत प्रतिकूल होगा.’

चंबल में होता अवैध रेत खनन. (फोटो साभार: स्पेशल अरेंजमेंट)

साथ ही वे लिखते हैं, ‘तबादले से वनकर्मियों का आत्मबल गिरेगा. यदि अच्छे काम का ऐसा इनाम मिलेगा तो पर्यावरण संरक्षण कैसे करेंगे? श्रद्धा के चलते रेत माफिया पर वन विभाग की पकड़ मजबूत हो गई थी.’

हालांकि, वन मंत्री विजय शाह तबादले को रूटीन कार्रवाई बताते हैं लेकिन सीसीएफ के शब्द इसे दंडात्मक कार्रवाई ठहराते हैं.

सीसीएफ ने पत्र में लिखा है, ‘केवल कुछ ही कर्मचारी/अधिकारी संपूर्ण निष्ठा से वन एवं पर्यावरण संरक्षण का काम करते हैं. यदि अच्छे कार्य के बदले दंडात्मक तरीके से स्थानांतरण होगा तो किसी भी तरह वन और वन्यजीवों का संरक्षण नहीं कर पाएंगे.’

मामले में सरकारी पक्ष जानने के लिए वन मंत्री विजय शाह से संपर्क किया, लेकिन उनकी प्रतिक्रिया नहीं मिली.

वहीं, प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता केके मिश्रा का कहना है, ‘ग्वालियर-चंबल संभाग माफियाओं का अभयारण्य बन चुका है. यहां उनकी समानांतर सरकार चलती है. सभी सिंधिया समर्थक मंत्री अवैध उत्खनन करा रहे हैं. मैंने एक वीडियो भी जारी किया था, जिसमें मंत्री बृजेंद्र सिंह यादव भाषण दे रहे हैं और सामने से रेत भरा डंपर निकल रहा है. उनका भाषण निर्विघ्न हो सके इसलिए पुलिस उसे निकाल रही है. जबकि पुलिस पर जिम्मा है कि वह उसे पकड़े.’

गौरतलब है कि सिंधिया समर्थक मंत्री-विधायकों पर ऐसे आरोप कांग्रेस सरकार में भी लगे थे. तब सिंधिया गुट व अन्य गुटों के विधायक-मंत्री एक-दूसरे पर अवैध खनन में संलिप्तता के आरोप लगा रहे थे.

बहरहाल श्रद्धा के तबादले को नियमित तबादला ठहराने पर सवाल उठाते हुए मिश्रा कहते हैं, ‘संस्कृति मंत्री ऊषा ठाकुर की विधानसभा महू में एक अधिकारी ने माफिया पर कार्रवाई की तो पहले उसका तबादला किया, अब निलंबित कर दिया. सीहोर में एक अधिकारी ने अवैध रेत के ट्रक पकड़े तो उसका भी तबादला कर दिया. अगर श्रद्धा का रूटीन तबादला है तो वे क्या थे? तीन महीने में कौन-सा रूटीन तबादला होता है?’

स्वयं श्रद्धा भी इस पर यकीन नहीं कर पा रही हैं. वे कहती हैं कि इतने कम समय में तबादले की उम्मीद नहीं थी. तबादले के कारण पर बात करते हुए उन्होंने कहा, ‘पहला कारण था कि मैं रेत माफिया पर अंकुश लगाने की कोशिश कर रही थी. दूसरा कि चंबल की अस्सी फीसदी रेत शासकीय भवन निर्माण में इस्तेमाल होती है. जगजाहिर है कि वह रेत, माफिया द्वारा ही सप्लाई होती है. जब सरकार ही माफिया से अवैध रेत खरीदेगी तो उसके हौसले बढ़ेंगे.’

वे आगे बताती हैं, ‘जब शासकीय निर्माण में इसका इस्तेमाल रोकेंगे तो माफिया के पास रेत की डिमांड नहीं आएगी और वे खनन नहीं करेंगे. मैंने यही मुहिम छेड़ी थी.’

गौरतलब है कि तबादले से पहले श्रद्धा ने आखिरी कार्रवाई महिला पुलिस थाने के भवन निर्माण में चंबल की रेत के इस्तेमाल के खिलाफ 9 जुलाई को की थी. उन्होंने निर्माण स्थल से रेत जब्त करके पुलिस हाउसिंग बोर्ड के एसडीओ और सब-इंजीनियर पर मुकदमा दर्ज कराया था.

श्रद्धा बताती हैं, ‘जब्त रेत की मात्रा अधिक थी और उसके परिवहन के लिए साधन उपलब्ध नहीं था. इसलिए जब्ती दर्शाकर रेत निर्माणस्थल पर ही इस विश्वास के साथ छोड़ दी कि सरकारी (पुलिस) भूमि पर कोई इसे चुराएगा नहीं.’

लेकिन, 11 जुलाई को उन्हें सूचना मिली कि निर्माणस्थल पर चंबल की अवैध रेत, सिंध की वैध रेत से बदली जा रही है ताकि मामला ही खत्म हो जाए. श्रद्धा ने मौके पर पहुंचकर छापामारी की. तीन दिन बाद उनका तबादला हो गया.

इससे पहले भी उनका तबादला कराने की एक कोशिश हुई थी. वन विभाग की कार्रवाई के दौरान कथित तौर पर गोली लगने से एक ग्रामीण की मौत के मामले में उनका नाम जोड़ा गया था.

उस बारे में श्रद्धा बताती हैं, ‘उस घटना से जबरन मेरा नाम जोड़ा गया. वह मेरे क्षेत्र में नहीं, भिंड में हुई थी. ऐसा करके मुझे यहां से हटवाने की योजना थी, लेकिन वे कामयाब नहीं हुए क्योंकि न मैं घटनास्थल पर थी, न मुझे उस कार्रवाई का पता था और न ही स्टाफ मुझसे अनुमति लेकर गया था.’

चंबल नदी के उस क्षेत्र में जहां अवैध खनन की पहुंच नहीं है, वहां कछुओं के अंडों को सहेजने के दौरान श्रद्धा. (फोटो साभार: स्पेशल अरेंजमेंट)

पुलिस पर लगे आरोपों के संबंध में जब मुरैना पुलिस अधीक्षक ललित शाक्यवार से संपर्क साधा गया तो उन्होंने बेरुखी से बात करते हुए फोन काट दिया.

इस घटनाक्रम के बीच सवाल उठता है कि चंबल में शासन-प्रशासन आखिर खनन माफिया के खिलाफ कार्रवाई से कतराते क्यों हैं?

इस पर सत्येंद्र तोमर कहते हैं, ‘इसका सबसे बड़ा कारण वोटबैंक है. मुरैना में गुर्जर, अंबाह-पोरसा में तोमर, जौरा में सिकरवार और सबलगढ़ में रावत व मीणा जाति के लोग इसमें लिप्त हैं. इन दबंग जातियों का यहां बड़ा वोटबैंक है. सत्तापक्ष-विपक्ष में यही बैठे हैं. कार्रवाई का मतलब है, इन समाजों की नाराजगी.’

श्रद्धा द्वारा पुलिस को लिखे पत्र भी बताते हैं कि एक पूर्व भाजपा मंत्री के घर के पास ही अवैध रेत की मंडी लगती है, जिस पर पुलिस कार्रवाई नहीं करती. घर के पास लगने वाली मंडी से पूर्व मंत्री अनजान होंगे, ऐसा संभावना कम है.

सत्येंद्र बताते हैं कि बात सिर्फ अवैध रेत उत्खनन तक सीमित नहीं है, बल्कि शासकीय निर्माण में चंबल की रेत इस्तेमाल करके लाखों-करोड़ों के घोटाले होते हैं. वे बताते हैं, ‘कागजों में शासकीय निर्माण सिंध रेत से होता है, लेकिन असलियत में इस्तेमाल चंबल रेत होती है. चोरी की यह रेत सिंध के मुकाबले तीन गुना सस्ती मिलती है. पुलिसिया निर्माणों में तो जब्ती वाली मुफ्त की रेत लगाई जाती है. श्रद्धा की मुहिम इस भ्रष्टाचार के लिए भी खतरा थी, जिससे पुलिस, प्रशासन, राजनीति और माफिया के गठजोड़ पर चोट हो रही थी.’

सूत्र बताते हैं कि तबादले से पहले श्रद्धा पर कई बार दबाव बनाया गया कि वे अपनी कार्रवाई रोक दें, लेकिन वे नहीं झुकीं. नतीजतन, तबादला हो गया. श्रद्धा कहती हैं, ‘मैं बैतूल रही या सागर, अपना काम ईमानदारी से किया. बदले में तबादला ही मिला. लेकिन, फिर भी फर्ज से पीछे नहीं हटूंगी. अब उमरिया भेजा है, वहां भी वन्यजीवन बचाने के लिए जान लड़ा दूंगी.’

इस बीच, स्थानीय लोगों में चर्चा है कि अच्छा रहा श्रद्धा का तबादला हो गया, वरना किसी दिन खनन माफिया उनकी हत्या कर देता.

गौर करने लायक बात यह भी है कि एक ओर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान माफियाओं को दस फीट जमीन में गाढ़ने के दावे करते हैं, तो दूसरी ओर उनकी ही सरकारी में माफियाओं की खातिर अधिकारियों के तबादले किए जाते हैं.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq