सर्विलांस तकनीक की बिक्री, लेनदेन और इस्तेमाल पर तुरंत रोक लगाए सरकारें: सामाजिक संगठन

डिजिटल अधिकारों के लिए काम करने वाले एक्सेस नाउ और सौ के क़रीब नागरिक समाज संगठनों व स्वतंत्र विशेषज्ञों का कहना है कि वे एनएसओ ग्रुप के स्पायवेयर द्वारा विश्वभर में बड़े पैमाने पर हो रहे मानवाधिकार उल्लंघन संबंधी खुलासों से चिंतित हैं और सरकारों को इसे नियंत्रित करने के लिए क़दम उठाने चाहिए.

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(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

डिजिटल अधिकारों के लिए काम करने वाले एक्सेस नाउ और सौ के क़रीब नागरिक समाज संगठनों व स्वतंत्र विशेषज्ञों का कहना है कि वे एनएसओ ग्रुप के स्पायवेयर द्वारा विश्वभर में बड़े पैमाने पर हो रहे मानवाधिकार उल्लंघन संबंधी खुलासों से चिंतित हैं और सरकारों को इसे नियंत्रित करने के लिए क़दम उठाने चाहिए.

(फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: पेगासस प्रोजेक्ट के तहत सामने आई जासूसी की कोशिशों की रिपोर्ट्स के बाद सिविल सोसाइटी संगठनों और विशेषज्ञों ने एक साथ एक खुला खत लिखकर सरकारों से सर्विलांस तकनीक की बिक्री, लेनदेन और इस्तेमाल पर तुरंत रोक लगाने का आह्वान किया है.

डिजिटल अधिकारों के लिए काम करने वाले संगठन एक्सेस नाउ और 100 के करीब नागरिक समाज संगठनों और स्वतंत्र विशेषज्ञों का कहना है कि वे एनएसओ ग्रुप के स्पायवेयर द्वारा पूरी दुनिया में बड़े पैमाने पर हो रहे मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों के बारे में मीडिया द्वारा किए गए खुलासों से बेहद चिंतित हैं.

गौरतलब है कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया संगठनों के कंसोर्टियम, जिसमें द वायर  भी शामिल है, के पेगासस प्रोजेक्ट के तहत इसका खुलासा हुआ है.

फ्रांस के मीडिया नॉन-प्रॉफिट फॉरबिडेन स्टोरीज ने सबसे पहले 50,000 से अधिक उन नंबरों की सूची प्राप्त की थी, जिनकी इजरायल के एनएसओ ग्रुप द्वारा निर्मित पेगासस स्पायवेयर के जरिये निगरानी किए जाने की संभावना है. इसमें से कुछ नंबरों की एमनेस्टी इंटरनेशल ने फॉरेंसिक जांच की, जिसमें ये पाया गया कि इन पर पेगासस के जरिये हमला किया गया था.

फॉरबिडेन स्टोरीज ने इस ‘निगरानी सूची’ को द वायर समेत दुनिया के 16 मीडिया संस्थानों के साथ साझा किया, जिन्होंने पिछले एक हफ्ते में एक के बाद एक बड़े खुलासे किए हैं. इस पूरी रिपोर्टिंग को ‘पेगासस प्रोजेक्ट’ का नाम दिया गया है.

भारत में संभावित निगरानी के दायरे में रहे पत्रकारों, नेताओं, मंत्रियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, कारोबारियों, जांच एजेंसी के अधिकारियों, कश्मीर के नेताओं, सेना, बीएसएफ इत्यादि के बाद अब हाई-प्रोफाइल सरकारी विभाग के अधिकारियों के नाम भी सामने आए हैं.

एनएसओ ग्रुप का दावा है कि वह सिर्फ सरकारी ग्राहकों को ही अपनी सेवाएं बेचता है और स्पायवेयर का इस्तेमाल केवल आपराधिक और आतंकी मामलों की वैध जांच में किया जाता है, हालांकि इन संगठनों का कहना है कि यह साफ हो गया है कि इसकी तकनीक का दुरुपयोग सुनियोजित तरीके से किया गया है.

लीक हुए डेटा और उसकी जांच के आधार पर फॉरबिडेन स्टोरीज़ और अन्य मीडिया सहयोगियों ने 11 देशों में एनएसओ के संभावित ग्राहकों की पहचान की है. ये देश हैं- अज़रबैजान, बहरीन, हंगरी, भारत, कजाकिस्तान, मैक्सिको, मोरक्को, रवांडा, सऊदी अरब, टोगो और संयुक्त अरब अमीरात.

अब तक हुई जांच में 20 देशों के कम से कम ऐसे 180 पत्रकार चिह्नित किए गए हैं जिन्हें साल 2016 से जून 2021 के दरम्यान एनएसओ स्पायवेयर के संभावित शिकार के तौर पर निशाना बनाया गया था.

संगठनों के पत्र में कहा गया है, ‘ये खुलासे बस शुरुआत हैं. प्राइवेट जासूसी कंपनियों को खुली छूट दे दी गई है. सरकारें न सिर्फ अपने नागरिकों को इन मानवाधिकार उल्लंघनों से बचाने की अपनी वचनबद्धता को कायम रखने में असफल रहे हैं बल्कि इन आक्रामक हथियारों को मानवाधिकारों के लिए संघर्ष करती दुनियाभर की जनता के ऊपर आजमाये जाने की छूट देकर अपने मानवाधिकार संबंधी वादों से भी मुकर रहे हैं.’

पत्र में आगे कहा गया, ‘यह पहली बार नहीं है जब एनएसओ के पेगासस सॉफ्टवेयर को मानवाधिकार उल्लंघन में लिप्त पाया गया हो. शोधकर्ताओं, पत्रकारों, कार्यकर्ताओं एवं अन्य ने इस बात के ठोस सबूत पाए हैं कि पिछले कुछ वर्षों में एनएसओ ग्रुप की सर्विलांस तकनीक का इस्तेमाल कर कुछ खास व्यक्तियों को टारगेट किया गया था. सिटिज़न लैब की हालिया रिसर्च से खुलासा हुआ कि कैसे साल 2016 में संयुक्त अरब अमीरात में कैद एक मानवाधिकार कार्यकर्ता अहमद मंसूर को एनएसओ ग्रुप की तकनीक के जरिए टारगेट किया गया था. मेक्सिको में पत्रकारों, वकीलों और सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों को भी निशाना बनाया जा चुका है.’

इन कार्यकर्ताओं ने यह भी कहा कि इन खुलासों से यह साफ हो गया है कि डिजिटल निगरानी के इन औजारों ऐसा इस्तेमाल अपमानजनक और मनमाना है. इसके अलावा सरकारों द्वारा इनका बेरोकटोक इस्तेमाल किया जाना अंतरराष्ट्रीय मानकों में उल्लिखित निगरानी की जरूरत, मात्रा और जायज उद्देश्य की शर्तों पर खरा नहीं उतरता.

खत में कहा गया, ‘हम संयुक्त राष्ट्र के उच्चायुक्त के इस आह्वान का समर्थन करते हैं कि ‘सरकारें मानवाधिकारों का उल्लंघन करने वाली अपनी खुद की निगरानी तकनीकों पर तुरंत पाबंदी लगाएं और दूसरों द्वारा भी निगरानी तकनीकों के वितरण, उपयोग और निर्यात पर अंकुश लगाते हुए निजता पर ऐसे हमलों से सुरक्षा करने हेतु ठोस कदम उठाएं.’

पत्र में संगठनों ने सभी सरकारों को तत्काल निम्नलिखित कदम उठाने को कहा है:

1) तुरंत निगरानी तकनीकों की बिक्री, हस्तांतरण और उपयोग पर रोक लगाएं. फिलहाल जैसी परिस्थिति है, सिविल उपयोग के लिए ‘मिलिट्री श्रेणी की निगरानी तकनीकों’ की मांग में कटौती की जानी चाहिए.

2) सर्विलांस के मामलों में फौरन स्वतंत्र, पारदर्शी और निष्पक्ष जांच करें. टारगेटेड सर्विलांस तकनीक हेतु दिए गए एक्सपोर्ट लाइसेंसों की जांच करें और उन सभी मार्केटिंग और एक्सपोर्ट लाइसेंसों को रद्द करें, जिनके इस्तेमाल के कारण मानवाधिकारों पर आंच आई है.

3) एक ऐसा कानूनी ढांचा लागू करें जिसके तहत निजी सर्विलांस कंपनियां और उनके निवेशक अपने वैश्विक कारोबार, आपूर्ति और उनके उत्पादों और सेवाओं के इस्तेमाल के संबंध में मानवाधिकारों का ध्यान रखने के लिए वचनबद्ध हों.

4) ऐसा कानूनी ढांचा अपना जाए, जिसके तहत निजी सर्विलांस कंपनियां पारदर्शिता बरतने के साथ-साथ अपनी पहचान और रजिस्ट्रेशन, अपने उत्पादों और सेवाओं, उनके इस्तेमाल से जुड़े खतरों और वास्तविक प्रभावों से निपटने के लिए कंपनी ने क्या कदम उठाए और इनमें वह कहां तक सफल रही आदि जानकारियां देने के लिए प्रतिबद्ध हों. इसके साथ ही बेची गई सेवाओं और उत्पादों के बारे में, मानवाधिकार के मानकों और गुड गवर्नेंस की शर्तों का पालन न करने वाले ग्राहकों को अस्वीकृत करने के बारे में बताए. साथ ही सरकारें इन सूचनाओं को पब्लिक रजिस्ट्री में मुहैया कराएं.

5) सुनिश्चित करें कि उनके देश की सभी सर्विलांस कंपनियां, उनके बिचौलिए, सहयोगी, होल्डिंग कंपनियां और प्राइवेट इक्विटी के मालिक, सभी जवाबदेह तरीके से काम करें. इन कंपनियों पर यह कानूनी बाध्यता हो कि अपने वैश्विक कारोबार में मानवाधिकारों की सुरक्षा के मुद्दे पर गंभीर रहें. उनके कारण होने वाले नुकसान के प्रति जवाबदेह रहें और पीड़ित व्यक्तियों तथा समुदायों को होने वाले नुकसान की भरपाई उन  क्षेत्रों के भीतर ही हो सके, जहां वे कंपनियां स्थित हैं. इसलिए सरकारें कॉरपोरेट जवाबदेही तय करने वाले कानूनों के लिए पहल करें या घरेलू सुझावों को समर्थन दें.

6) मांगे जाने पर या खुद अपनी ओर से निजी सर्विलांस कंपनियों के साथ हुए सभी पुराने, वर्तमान और भविष्य के करारों के बारे में सूचनाएं दें.

7) सर्विलांस कंपनियों को काम जारी रखने की अनुमति इसी शर्त पर दें कि एनएसओ ग्रुप तथा अन्य निजी सर्विलांस कंपनियों के लिए फौरन स्वतंत्र और विभिन्न हितधारकों की निगरानी समितियां स्थापित की जाएंगी. इनमें मानवाधिकार संगठन और अन्य नागरिक समाज संगठन शामिल हों.

8) गैरकानूनी निगरानी के शिकार व्यक्तियों को हुई क्षति की भरपाई करने में बाधक वर्तमान कानूनों को संशोधित करें और यह सुनिश्चित करें कि क्षतिपूर्ति के लिए जमीनी स्तर पर न्यायिक और गैर न्यायिक विकल्प खुले रहें.

9) सुदृढ़ एनक्रिप्शन को प्रोत्साहित एवं संरक्षित करें, जोकि अतिक्रामक निगरानी के विरुद्ध सर्वोत्तम सुरक्षा उपाय है.

10) इजराइल, बल्गारिया, साइप्रस और अन्य देशों में, जहां एनएसओ ग्रुप की कॉरपोरेट गतिविधियों का अस्तित्व है, से आग्रह किया जाता है कि उन समेत सहित सभी निर्यातक सरकारें एनएसओ ग्रुप और उसकी संस्थाओं के सभी मार्केटिंग और निर्यात लाइसेंस फौरन रद्द करें और किस सीमा तक गैरकानूनी टारगेटिंग की गई है, इसकी स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी जांच करें. इसके साथ ही भविष्य में ऐसी क्षतियों को रोकने के लिए किए गए प्रयासों और उनके नतीजों के बारे में एक सार्वजनिक बयान जारी करें.

(इस पूरे पत्र को पूरा पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)