बंगाल चुनाव बाद हिंसा: राज्य सरकार ने एनएचआरसी की रिपोर्ट को पूर्वाग्रहों से भरा बताया

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के बाद हुई हिंसा को लेकर ममता बनर्जी सरकार ने कलकत्ता हाईकोर्ट में हलफ़नामा दायर कर आरोप लगाया गया है कि एनएचआरसी जांच समिति के सदस्यों के भाजपा नेताओं या केंद्र सरकार के साथ क़रीबी संबंध हैं. एनएचआरसी की रिपोर्ट में कहा गया था कि बंगाल में क़ानून का शासन नहीं, बल्कि शासक का क़ानून चल रहा है. बंगाल में हिंसक घटनाएं पीड़ितों की दशा के प्रति राज्य सरकार की उदासनीता को दर्शाती है.

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कलकत्ता हाईकोर्ट. (फोटो साभार: Twitter/@LexisNexisIndia)

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के बाद हुई हिंसा को लेकर ममता बनर्जी सरकार ने कलकत्ता हाईकोर्ट में हलफ़नामा दायर कर आरोप लगाया गया है कि एनएचआरसी जांच समिति के सदस्यों के भाजपा नेताओं या केंद्र सरकार के साथ क़रीबी संबंध हैं. एनएचआरसी की रिपोर्ट में कहा गया था कि बंगाल में क़ानून का शासन नहीं, बल्कि शासक का क़ानून चल रहा है. बंगाल में हिंसक घटनाएं पीड़ितों की दशा के प्रति राज्य सरकार की उदासनीता को दर्शाती है.

कलकत्ता हाईकोर्ट. (फोटो साभार: Twitter/@LexisNexisIndia)

नई दिल्लीः पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के बाद हुई हिंसा को लेकर कलकत्ता हाईकोर्ट को सौंपे गए 95 पेजों के हलफनामे में ममता बनर्जी सरकार का आरोप है कि इस मामले में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) समिति की जांच सत्तारूढ़ सरकार के खिलाफ पूर्वाग्रहों से भरी हुई है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, सरकार ने सोमवार को यह हलफनामा दायर किया, जिसमें आरोप लगाया गया कि एनएचआरसी जांच टीम के सदस्यों के भाजपा नेताओं के साथ करीबी संबंध हैं.

एनएचआरसी ने 13 जुलाई को अदालत को सौंपी गई अपनी अंतिम रिपोर्ट में कहा था कि राज्य में कानून व्यवस्था के बजाय शासक के कानून की झलक दिखाई देती है. इसके साथ ही एनएचआरसी ने हत्या और बलात्कार जैसे गंभीर अपराधों की सीबीआई जांच की सिफारिश की है.

रिपोर्ट में विधानसभा चुनावों में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की जबरदस्त जीत के बाद हुई हिंसा से निपटने में कथित रूप से असफल रहने पर टीएमसी सरकार की आलोचना की है.

बता दें कि राज्य में आठ चरणों में हुए विधानसभा चुनाव में टीएमसी ने 292 में से 213 सीटों पर जीत दर्ज की, जबकि भाजपा 77 सीटों पर ही जीत दर्ज कर सकी.

राज्य सरकार ने हलफनामे में कहा, ‘समिति का गठन राज्य की सत्तारूढ़ सरकार के खिलाफ पूर्वाग्रह से भरा हुआ है. समिति के सदस्यों का भाजपा या केंद्र सरकार के साथ करीबी संबंध हैं. ऐसे सदस्यों को जान-बूझकर चुना गया है, जो सत्तारूढ़ व्यवस्था के खिलाफ एक अंतर्निहित पूर्वाग्रह रखते हैं और तदनुसार पश्चिम बंगाल राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति के बारे में राज्य के खिलाफ एक नकारात्मक रिपोर्ट देने की प्रवृत्ति रखते हैं.’

हलफनामे में कहा गया, ‘समिति के कई सदस्य या तो भाजपा के सदस्य हैं या उनका केंद्र सरकार के साथ करीबी संबंध हैं, इसलिए समिति से निष्पक्ष और तटस्थ तरीके से जांच करने की उम्मीद को लेकर समिति की विश्वसनीयता सवालों के घेरे में है. केंद्र सरकार से करीबी संबंध रखने वाले सदस्यों की समिति द्वारा पेश की गई किसी भी तरह की रिपोर्ट पर हाईकोर्ट को विश्वास नहीं करना चाहिए.’

राज्य सरकार का कहना है कि समिति के प्रमुख राजीव जैन केंद्र में भाजपा सरकार के तहत इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) के निदेशक पद पर रह चुके हैं.

हलफनामे में कहा गया कि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे और अमित शाह राज्य में मंत्री पद पर थे, उस समय 2005 से 2008 तक वह (राजीव जैन) अहमदाबाद में आईबी के प्रमुख थे.

राज्य सरकार ने उल्लेख किया कि समिति के एक अन्य सदस्य आतिफ राशिद सत्यवती कॉलेज में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) की छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं और उन्होंने 2021 में दिल्ली नगर निगम चुनाव भाजपा की टिकट पर लड़ा था.

टीएमसी सरकार ने कहा, ‘जैसा कि पहले भी कहा गया है कि यह स्पष्ट है कि इस समिति का गठन पश्चिम बंगाल सरकार के खिलाफ विचहंट के इरादे से किया गया. हालांकि, एनएचआरसी के चेयरपर्सन से निष्पक्ष समिति का गठन करने की उम्मीद थी, लेकिन चेरयपर्सन ने अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग किया और सिर्फ उन्हीं सदस्यों को नियुक्त किया जो लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गई सरकार पर निशाना साधने के इच्छुक थे.’

हलफनामे में कहा गया, ‘समिति ने अदालत द्वारा उस पर किए गए विश्वास को तोड़ा है. इस पूरी जांच प्रक्रिया के निष्कर्ष पहले से ही निर्धारित थे. समिति के सदस्यों ने इस जांच को अपने निजी राजनीतिक लाभ के लिए राजनीतिक ड्रामे में बदल दिया.’

राज्य सरकार को सुनवाई का एक मौका नहीं देने की बात कहते हुए हलफनामे में कहा गया, ‘एनएचआरसी की रिपोर्ट पर अदालत को विचार नहीं करना चाहिए. इस रिपोर्ट से यह धारणा बनती है कि चुनाव बाद हुई हिंसा दो मई 2021 को चुनावी नतीजों के ऐलान के बाद बेरोक-टोक जारी थी. यह धारणा पूरी तरह से गलत है, जबकि वास्तविकता इससे बिल्कुल अलग है. दो मई 2021 को नतीजों के ऐलान के बाद हिंसा की कुछ घटनाएं हुईं, लेकिन पांच मई 2021 को नई सरकार के गठन के बाद इन घटनाओं में काफी कमी आई और मौजूदा समय में घटनाओं की संख्या न के बराबर है.’

सरकार ने कहा कि रिपोर्ट पर उनके अंतिम विचार यह थे कि इस रिपोर्ट में शामिल बयान बेतुके और गलत हैं.

राज्य के परिवहन मंत्री फिरहाद हाकिम ने कहा, ‘केंद्र सरकार ने एनएचआरसी में भाजपा से करीबी संबंध रखने वाले लोगों को नियुक्त किया है, इसलिए उन्होंने राज्य सरकार के खिलाफ गलत और मनगढ़ंत रिपोर्ट बनाकर पेश की है.’

भाजपा के प्रवक्ता सामिक भट्टाचार्य कहते हैं, ‘राज्य चुनाव बाद हुई हिंसा की घटनाओं के वास्तविक तथ्य सामने लाने में असफल रहा है, इसलिए वह एनएचआरसी समिति को निशाना बना रहा है. वे बदला लेने की राजनीति कर रहे हैं. एनएचआरसी की रिपोर्ट पुलिस और डीजीपी द्वारा पेश की गई रिपोर्ट पर आधारित है. मैं राज्य सरकार को चुनौती देता हूं कि अगर वे एनएचआरसी की रिपोर्ट से संतुष्ट नहीं है तो इससे इनकार करें कि चुनाव बाद हुई हिंसा में लोगों की मौत नहीं हुई.’

बता दें कि पश्चिम बंगाल में चुनाव बाद हुई हिंसा को लेकर एनएचआरसी की समिति ने 13 जून को राज्य में चुनाव बाद हुई हिंसा में मानवाधिकारों के कथित उल्लंघन के मामलों पर अपनी रिपोर्ट हाईकोर्ट को सौंपी है.

अपनी रिपोर्ट में राज्य सरकार पर हिंसा के पीड़ितों के प्रति भयानक उदासीनता दिखाने का आरोप लगाया है.

एनएचआरसी की समिति ने कलकत्ता हाईकोर्ट के समक्ष पेश की अपनी रिपोर्ट में राज्य में चुनाव बाद हत्या और बलात्कार जैसे गंभीर अपराधों की सीबीआई जांच कराने की सिफारिश की है.

हाईकोर्ट की पांच न्यायाधीशों की पीठ के निर्देश पर एनएचआरसी अध्यक्ष द्वारा गठित समिति ने यह भी कहा कि इन मामलों में मुकदमे राज्य से बाहर चलने चाहिए.

कलकत्ता हाईकोर्ट को सौंपी गई 50 पन्नों की रिपोर्ट में कहा गया है कि बंगाल में कानून का शासन नहीं, बल्कि शासक का कानून चल रहा है. बंगाल में हिंसक घटनाएं पीड़ितों की दशा के प्रति राज्य सरकार की उदासनीता को दर्शाती है.

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