राकेश अस्थाना की नियुक्ति के ख़िलाफ़ दिल्ली विधानसभा में प्रस्ताव पारित किया गया

दिल्ली विधानसभा में पारित प्रस्ताव में कहा गया है कि दिल्ली पुलिस कमिश्नर के रूप में राकेश अस्थाना की नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट के उस फ़ैसले का उल्लंघन है, जिसमें कहा गया है कि पुलिस प्रमुख पद के लिए सिर्फ ऐसे अधिकारियों पर विचार किया जा सकता है, जिनकी सेवानिवृत्ति में कम से कम छह महीने बचे हों.

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राकेश अस्थाना (फोटो: पीटीआई)

दिल्ली विधानसभा में पारित प्रस्ताव में कहा गया है कि दिल्ली पुलिस कमिश्नर के रूप में राकेश अस्थाना की नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट के उस फ़ैसले का उल्लंघन है, जिसमें कहा गया है कि पुलिस प्रमुख पद के लिए सिर्फ ऐसे अधिकारियों पर विचार किया जा सकता है, जिनकी सेवानिवृत्ति में कम से कम छह महीने बचे हों.

राकेश अस्थाना (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: दिल्ली विधानसभा ने आईपीएस अधिकारी राकेश आस्थाना को दिल्ली पुलिस कमिश्नर नियुक्त करने के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित किया है.

केंद्र के फैसले को विरोध करते हुए आम आदमी पार्टी (आप) के विधायक संजीव झा ने इसे लेकर एक प्रस्ताव पेश किया था, जिसे थोड़ी देर की चर्चा के बाद स्वीकार कर लिया गया.

इस दौरान दिल्ली के गृह मंत्री सत्येंदर जैन समते छह आप विधायकों ने अस्थाना की कड़ी आलोचना की. वहीं भाजपा विधायक रामवीर सिंह बिधूड़ी ने राकेश अस्थाना की नियुक्ति को लेकर केंद्र की बड़ाई की.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, सदन द्वारा जारी प्रस्ताव में दिल्ली सरकार को अस्थाना की नियुक्ति के 27 जुलाई के आदेश को वापस लेने और उनकी जगह किसी अन्य अधिकारी को चुनने के लिए नई प्रक्रिया शुरू करने के लिए गृह मंत्रालय को अवगत कराने का निर्देश दिया गया है.

आप विधायकों ने आरोप लगाया कि ये नियुक्ति प्रकाश सिंह बनाम भारत संघ मामले में साल 2019 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन है, जिसमें कहा गया है कि पुलिस महानिदेशक/कमिश्नर के पद के लिए सिर्फ उसी अधिकारी पर विचार किया जाना चाहिए, जिसकी सेवानिवृत्ति में कम से कम छह महीने का समय बचा हो.

प्रस्ताव में कहा गया, ‘यह बिल्कुल भी समझ से परे है कि एक विवादास्पद अधिकारी, जिसे इस केंद्र सरकार द्वारा अक्टूबर 2018 में सीबीआई के विशेष निदेशक पद से हटा दिया गया था और हाल ही में सीबीआई निदेशक के पद के लिए उपयुक्त नहीं माना गया था, को दिल्ली पुलिस पर थोपा जा रहा है. इस अधिकारी के पिछले ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए इसकी आशंका है कि केंद्र सरकार राष्ट्रीय राजधानी में आतंक का राज बनाने के लिए राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों पर झूठे मामले थोपने के उद्देश्य से इसका इस्तेमाल करेगी. ऐसे विवादास्पद व्यक्ति को देश की राष्ट्रीय राजधानी में पुलिस बल का नेतृत्व नहीं करना चाहिए.’

चर्चा में भाग लेते हुए आप विधायक भूपिंदर सिंह जून ने कहा, ‘यदि केंद्र डीजीपी के पद को दिल्ली पुलिस के आयुक्त के समकक्ष नहीं मानता है, तो यह अस्थाना के लिए पदावनति (डिमोशन) है क्योंकि वह पहले ही डीजी, बीएसएफ के रूप में कार्य कर चुके हैं और यदि दिल्ली पुलिस कमिश्नर का पद डीजीपी के बराबर है, तो यह सुप्रीम कोर्ट के आदेश का स्पष्ट उल्लंघन है.’

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने उस समय कहा था कि ‘संघ लोक सेवा आयोग द्वारा डीजीपी के पद पर नियुक्ति की सिफारिश और पैनल तैयार करना विशुद्ध रूप से उन अधिकारियों की योग्यता के आधार पर होना चाहिए, जिनका कार्यकाल कम से कम छह महीने बचा हो.’

भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना द्वारा प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली उच्चस्तरीय समिति में इसी फैसले का हवाला देने के चलते अस्थाना सीबीआई निदेशक की दौड़ से बाहर हो  गए थे.

इसी तरह बुराड़ी के विधायक झा ने कहा कि अस्थाना ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आंख के तारे हैं’ और उन्हें ‘दिल्ली में विशेष मिशन’ पर भेजा गया है.

उन्होंने कहा, ‘दशकों का अनुभव वाले अधिकारियों की अनदेखी करते हुए गुजरात कैडर के एक अधिकारी को, जिसे दिल्ली के अपराध और कानून-व्यवस्था की स्थिति के बारे में कोई जानकारी नहीं है, पुलिस प्रमुख बनाया गया है. यह एजीएमयूटी (अरुणाचल प्रदेश-गोवा-मिजोरम और केंद्र शासित प्रदेश) कैडर का अपमान है.’

प्रस्ताव में यह भी कहा गया है कि दिल्ली पुलिस आयुक्त का पद भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के एजीएमयूटी कैडर का है.

इसमें कहा गया है, ‘गुजरात कैडर के एक विवादास्पद अधिकारी की नियुक्ति, जिसने अतीत में गंभीर आरोपों पर कई पूछताछ का सामना किया है, केवल दिल्ली पुलिस को विवादों में लाएगी.’

वहीं, भाजपा विधायक बिधूड़ी ने एक पुलिस अधिकारी के रूप में अस्थाना की साख पर जोर देते हुए प्रस्ताव का विरोध किया. बिधूड़ी ने कहा कि आईपीएस अधिकारी को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान सराहनीय सेवा के लिए पुलिस पदक से सम्मानित किया गया था.

बिधूड़ी ने कहा, ‘साल 2002 में 59 कारसेवकों को जला दिया गया था. अस्थाना ने मामले की जांच की और आरोपियों को जेल भेजा. उन्होंने रामभक्तों को मारने वालों को सजा दी और अगर किसी को इससे पीड़ा होती है तो कोई क्या कह सकता है? धनबाद में सीबीआई के एसपी के रूप में उन्होंने रिश्वत के आरोप में एक बहुत वरिष्ठ अधिकारी को गिरफ्तार किया था. उन्होंने चारा घोटाले का पर्दाफाश किया और बिहार के तत्कालीन सीएम के खिलाफ कार्रवाई की. उन्होंने सुशांत सिंह राजपूत मामले में ड्रग्स में लिप्त प्रभावशाली लोगों के खिलाफ भी कार्रवाई की.’

अस्थाना ने आपराधिक जांच विभाग (अपराध और रेलवे) के पुलिस उप महानिरीक्षक के रूप में गोधरा ट्रेन नरसंहार की जांच की थी. अस्थाना ने इस मामले की ‘पूर्व नियोजित साजिश’ के रूप में जांच की थी, जिसमें पहले आईएसआई, फिर सिमी और बाद में ‘नार्को-आतंकवाद’ प्लान का हिस्सा होने का आरोप लगाया गया था.

इसमें से कोई भी थ्योरी सही साबित नहीं हो पाई. साल 2011 में एक ट्रायल कोर्ट ने 94 आरोपियों में से 63 को बरी कर दिया थी, जिसमें मौलाना उमरजी भी शामिल थे जिन्हें चार्जशीट में ‘मास्टरमाइंड’ कहा गया था.

‘न्यायालय के आदेश को ताक पर रखकर अस्थाना की हुई नियुक्ति’

कांग्रेस ने राकेश अस्थाना को दिल्ली का पुलिस आयुक्त नियुक्त किए जाने के फैसले पर सवाल खड़े करते हुए बीते बुधवार को आरोप लगाया कि उच्चतम न्यायालय के आदेश और सारे नियमों को ताक पर रखकर यह नियुक्ति की गई है.

पार्टी प्रवक्ता पवन खेड़ा ने यह सवाल भी किया कि क्या एजीएमयूटी कैडर में कोई एक अधिकारी ऐसा नहीं था जिसे दिल्ली के पुलिस आयुक्त की जिम्मेदारी सौंपी जाती?

उन्होंने संवाददाताओं से कहा, ‘‘राकेश अस्थाना इस नियुक्ति के चार दिन बाद ही सेवानिवृत्ति होने वाले थे. प्रकाश सिंह के मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि किसी अधिकारी के सेवानिवृत्ति होने में छह महीने बचे हों तब उसे डीजीपी स्तर की नियुक्ति दे सकते हैं. दिल्ली पुलिस आयुक्त भी डीजीपी के स्तर का पद होता है.’

उन्होंने दावा किया कि अस्थाना के खिलाफ छह आपराधिक मामले दर्ज हैं.

खेड़ा ने आरोप लगाया, ‘इस सरकार को न यूपीएससी का सम्मान है और न ही उच्चतम न्यायालय का सम्मान है. नियमों को ताक पर रखकर यह नियुक्ति की गई है.’

उन्होंने सवाल किया, ‘ऐसे क्या राज हैं कि आप नियम-कानून ताक पर रखकर उन्हें दिल्ली पुलिस का प्रमुख बना रहे हैं? ऐसे अधिकारी को दिल्ली का पुलिस आयुक्त क्यों बनाया गया, जिसे शहरी क्षेत्र और खास महानगर में पुलिस सेवा का अनुभव नहीं है?’

कांग्रेस प्रवक्ता ने दावा किया, ‘मोदी जी कुछ अफसरों से डरते हैं और उन्हीं को महत्वपूर्ण स्थानों पर बैठा देते हैं.’

गौरतलब है कि अस्थाना की नियुक्ति 31 जुलाई को उनकी सेवानिवृत्ति से कुछ दिन पहले हुई है. उनका कार्यकाल एक साल का होगा. 1984 बैच के आईपीएस अधिकारी अस्थाना पहले केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) में विशेष निदेशक रह चुके हैं.