केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने संसद में कहा था कि हाथ से मैला साफ-सफाई के कारण किसी व्यक्ति की मौत नहीं हुई है. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि हाथ से मैला ढोना पहले से ही अमानवीय है. सरकार सम्मान के मौलिक अधिकार से इनकार कर रही है. इन लोगों और मौतों की गिनती तक नहीं कर रही है. यह अस्पृश्यता का एक आधुनिक रूप है. एक दलित के जीवन की अनदेखी है.
नई दिल्ली: केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा संसद में दिए गए इस जवाब को लेकर तीखी प्रतिक्रियाएं मिली हैं कि हाथ से मैला साफ-सफाई के कारण किसी व्यक्ति की मौत नहीं हुई है. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि ऐसे लोगों की मौत के बाद भी उनकी गरिमा छीन ली गई.
राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्यमंत्री रामदास अठावले ने कहा है कि हाथ से मैला उठाने वाले 66,692 लोगों की पहचान हुई है.
यह प्रश्न किए जाने पर कि हाथ से मैला ढोने वाले ऐसे कितने लोगों की मौत हुई है, उन्होंने कहा, ‘हाथ से सफाई के कारण किसी की मौत होने की सूचना नहीं है.’
सरकार हाथ से मैला सफाई के कारण मौत को मान्यता नहीं देती और इसके बजाय इसे खतरनाक तरीके से शौचालय टैंक एवं सीवर की सफाई के कारण मौत बताती है.
संसद के पिछले सत्र के दौरान 10 मार्च को अठावले ने कहा था, ‘हाथ से मैला साफ करने के कारण किसी की मौत नहीं हुई. बहरहाल, शौचालय टैंक या सीवर की सफाई के दौरान लोगों की मौत की खबर है.’
कार्यकर्ताओं ने सरकार के जवाब को पूरी तरह संवदेनहीन करार दिया. सफाई कर्मचारी आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक बेजवाड़ा विल्सन ने कहा कि मंत्री ने खुद ही स्वीकार किया था कि सीवर की सफाई के दौरान 340 लोगों की मौत हुई है.
यह संगठन हाथ से मैला सफाई उन्मूलन के लिए काम करता है.
उन्होंने कहा, ‘वह तकनीकी रूप से बयान दे रहे हैं और हाथ से मैला सफाई को सूखा शौच बता रहे हैं. इसलिए उन्हें अपने बयान में स्पष्ट रूप से जिक्र करना चाहिए कि सूखे शौच से लोगों की मौत नहीं हो सकती है, बल्कि शौचालय के टैंक के कारण लोगों की मौत होती है. सरकार हर चीज से इनकार कर रही है और इसी तरह हाथ से मैला सफाई के कारण होने वाली मौत से भी इनकार कर रही है.’
विल्सन ने कहा, ‘यह सरकार की ओर से उचित नहीं है. जब हम इन लोगों को मारते हैं तो हमें यह कहने का साहस होना चाहिए कि यह किसी प्रकार की गलती के कारण हुआ है, जिसे हम रोकने जा रहे हैं. सरकार सम्मान के मौलिक अधिकार से इनकार कर रही है. इन लोगों और मौतों की गिनती तक नहीं कर रही है. यह अस्पृश्यता का एक आधुनिक रूप है- एक दलित के जीवन की अनदेखी है.’
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, विल्सन ने कहा कि हाथ से मैला ढोने की परिभाषा स्पष्ट है और केंद्र इसमें हेरफेर करने की कोशिश कर रहा है. उन्होंने कहा कि इसमें मानव मल को साफ करने वाले सभी आते हैं, इसलिए इसमें स्वाभाविक रूप से वे लोग शामिल हैं जिन्हें इसे साफ करने के लिए मैनहोल और टैंकों में प्रवेश करना पड़ता है.
उन्होंने कहा, ‘हाथ से मैला ढोना पहले से ही अमानवीय है. डेटा छिपाना और भी अमानवीय है. ये सबसे कमजोर, और चुप रहने वाले लोग हैं. यह कहने के बजाय कि कोई डेटा उपलब्ध नहीं है, उन्होंने दावा किया कि पिछले पांच वर्षों में कोई मौत नहीं हुई है.’
दलित आदिवासी शक्ति अधिकार मंच के सचिव संजीव कुमार ने कहा कि मौत की संख्या की सूचना छिपाई जा रही है और सरकार इससे पूरी तरह इनकार कर रही है जो काफी निंदनीय है.
उन्होंने कहा, ‘दिल्ली में ही कई मौतें हुई हैं. यह काफी दुखद है कि सरकार उनकी मौत का संज्ञान नहीं ले रही है. जिन लोगों की मौत हुई है, उनकी गरिमा मृत्यु के बाद भी छीन ली गई.’
मालूम हो कि देश में पहली बार 1993 में मैला ढोने की प्रथा पर प्रतिबंध लगाया गया था. इसके बाद 2013 में कानून बनाकर इस पर पूरी तरह से बैन लगाया गया. हालांकि आज भी समाज में मैला ढोने की प्रथा मौजूद है.
बता दें कि इससे पहले बीते फरवरी महीने में केंद्र सरकार ने बताया कि देश में हाथ से मैला ढोने वाले (मैनुअल स्कैवेंजर) 66,692 लोगों की पहचान कर ली गई है. इनमें से 37,379 लोग उत्तर प्रदेश के हैं.
राज्यसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में सामाजिक न्याय व अधिकारिता राज्यमंत्री रामदास अठावले ने कहा था कि पिछले पांच सालों में नालों और टैंकों की सफाई के दौरान 340 लोगों की जान गई है.
उन्होंने बताया था कि जिन 340 लोगों की मौत हुई है, उनमें से 217 को पूरा मुआवजा दिया जा चुका है, जबकि 47 को आंशिक रूप से मुआवजा दिया गया है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)