‘मैं समलैंगिक नहीं हूं, मुझे ग़लत समझा गया’

बीएचयू की छात्रा ने ‘समलैंगिक’ होने की बात नकारते हुए कहा कि उनकी कही बात का ग़लत अर्थ लेते हुए वॉर्डन ने बिना किसी लिखित आदेश के उन्हें हॉस्टल से निकाल दिया.

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बीएचयू की छात्रा ने ‘समलैंगिक’ होने की बात नकारते हुए कहा कि उनकी कही बात का ग़लत अर्थ लेते हुए वॉर्डन ने बिना किसी लिखित आदेश के उन्हें हॉस्टल से निकाल दिया.

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फोटो: विकीमीडिया कॉमन्स

बीते दिनों बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के महिला महाविद्यालय (एमएमवी) के छात्रावास से एक छात्रा को ‘समलैंगिक’ होने के कारण निकालने की बात सामने आई थी.

अब एक वेबसाइट के माध्यम से निष्कासित छात्रा का पक्ष सामने आया है. स्क्रॉल डॉट इन की एक रिपोर्ट के अनुसार दिव्या (परिवर्तित नाम) एमएमवी के स्वस्तिकुंज हॉस्टल में रहती थीं, जहां करीब 15 छात्राओं ने दिव्या के ख़िलाफ़ ‘उत्पीड़न’ (Harassment) की शिकायत की थी, जिसके बाद वॉर्डन द्वारा उन्हें हॉस्टल से निकाल दिया गया.

हालांकि हॉस्टल कोऑर्डिनेटर नीलम अत्री का शुरू से ही कहना था कि सेक्सुअल ओरिएंटेशन या समलैंगिकता का कोई मामला ही नहीं था, लेकिन दिव्या का कहना है कि वॉर्डन ने उन्हें समलैंगिक कहते हुए साथी छात्राओं का उत्पीड़न करने की बात कहते हुए उन्हें डांटा और 1 सितंबर को उन्हें हॉस्टल से निकाल दिया गया.

यहां गौर करने वाली बात है कि हॉस्टल प्रशासन द्वारा निष्कासन के लिए कोई लिखित आदेश नहीं दिया गया.

इसके बाद दिव्या अपने घर सिद्धार्थनगर चली गईं और इसके बाद ही उनके ‘समलैंगिक’ होने के चलते हॉस्टल से निकाले जाने की ख़बर ने ज़ोर पकड़ लिया.

दिव्या ने इस वेबसाइट से बात करते हुए साफ किया कि वे समलैंगिक नहीं हैं और न ही कभी लड़कियों की ओर आकर्षित रही हैं. उनके ग्रामीण तौर-तरीकों और अंग्रेज़ी में बात न कर पाने के चलते उनकी एक साथी छात्रा से लड़ाई हुई थी, जिसका बिल्कुल ग़लत अर्थ निकाला गया.

दिव्या बताती हैं कि 24 अगस्त को उनकी एक लड़की से लड़ाई हुई थी, जिस दौरान उन्होंने कहा कि नफ़रत को प्यार से मिटाया जा सकता है. उनका कहना है कि शायद इसी बात का ग़लत अर्थ समलैंगिकता से ले लिया गया. उन्होंने यह भी साफ किया कि हिंदी में कुछ बातें अलग तरह लगती हैं, जो हो सकता है बाकी लड़कियों को असामान्य लगी हो.

दिव्या के भाई का भी यही सोचना है. उनके मुताबिक दिव्या की बात पर लड़कियां हंसी थी और अंग्रेज़ी में बात करने लगीं, जिसे दिव्या समझ नहीं सकीं.

दिव्या अंग्रेज़ी के चलते पढ़ाई के लिए साथी छात्राओं से मदद लिया करती थीं, खासकर एक लड़की पर वो खासतौर पर निर्भर थीं. नीलम अत्री का कहना है कि लड़कियां मदद करती थीं, लेकिन उनके पास हमेशा समय नहीं होता. अगर वे मना करतीं, तब दिव्या ग़ुस्सा हो जाती और आत्महत्या की धमकी देती. हमने उसको समझाया और चेतावनी भी दी लेकिन फिर भी कुछ लड़कियों को परेशानी हुई. हमने दिव्या के माता-पिता से उसका इलाज करवाने के लिए भी कहा.’

ज्ञात हो कि एक लड़की के दिव्या की शिकायत करने के बाद करीब 16 लड़कियों ने इस शिकायत का समर्थन किया था.

हालांकि दिव्या मदद न करने पर आत्महत्या की धमकी देने के आरोप से इनकार करती हैं. वो कहती हैं, ‘मैंने केवल एक बार ऐसा कहा था, जिसके लिए वॉर्डन ने 30 अगस्त को मुझे 2 घंटे तक डांटा.’ 1 सितंबर को दिव्या की मां वॉर्डन से मिलीं, जिसके बाद दिव्या को हॉस्टल छोड़कर जाने के लिए कह दिया गया. इसके लिए न ही कोई लिखित आदेश दिया गया, न ही दिव्या की ‘तथाकथित’ काउंसलिंग’ के अलावा कोई रास्ता निकालने की कोशिश की गई.

कॉलेज की लड़कियां भी दिव्या को हॉस्टल से निकाले जाने पर नाराज़ थीं. द वायर से बात करते हुए तीसरे साल की एक छात्रा ने कहा कि लड़कियां उसकी काउंसलिंग चाहती थीं, न कि ये कि उसे हॉस्टल से निकाल दिया जाए. इससे पहले भी कई बार छात्राओं की अलग-अलग मुद्दों को लेकर साथी छात्राओं से शिकायत रहती थी, पर कभी किसी को निकाला नहीं गया. और इस मामले में तो कोई लिखित आदेश भी नहीं दिया गया. ये सही नहीं है.

दिव्या अब कैंपस से बाहर किराये के एक कमरे में रह रही हैं, लेकिन उनके भाई कहते हैं कि उनकी आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं है कि लंबे समय तक ऐसा कर पाएं. वे चाहते है कि उन्हें वापस हॉस्टल में रहने दिया जाए.

दिव्या के कॉलेज लौटने के बाद से छात्राएं उन पर हंस रही हैं, उनका मज़ाक बना रही हैं. उन्हें डर है कि कहीं ये सब बंद नहीं हुआ तो उनके पिता उन्हें कॉलेज छोड़ने के लिए न कह दें.

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