असम-मिज़ोरम विवाद के बाद केंद्र सैटेलाइट इमेजिंग के ज़रिये पूर्वोत्तर का सीमांकन करेगा

उत्तर पूर्वी अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र, अंतरिक्ष विभाग और उत्तर पूर्वी परिषद द्वारा संयुक्त रूप से ये कार्य किया जाएगा. पिछले महीने असम और मिज़ोरम के बीच हुए झड़प में असम के छह पुलिसकर्मियों और एक नागरिक की मौत हो गई थी.

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उत्तर पूर्वी अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र, अंतरिक्ष विभाग और उत्तर पूर्वी परिषद द्वारा संयुक्त रूप से ये कार्य किया जाएगा. पिछले महीने असम और मिज़ोरम के बीच हुए झड़प में असम के छह पुलिसकर्मियों और एक नागरिक की मौत हो गई थी.

नई दिल्ली: केंद्र ने अंतर-राज्यीय सीमा विवादों को निपटाने के लिए सैटेलाइट इमेजिंग के माध्यम से पूर्वोत्तर राज्यों की सीमाओं का सीमांकन करने का निर्णय लिया है, जिसके कारण कई बार विवाद उत्पन्न होता है और स्थिति हिंसा तक पहुंच जाती है.

दो वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों ने कहा कि यह कार्य उत्तर पूर्वी अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र (एनईएसएसी), अंतरिक्ष विभाग (डीओएस) और उत्तर पूर्वी परिषद (एनईसी) द्वारा संयुक्त रूप से किया जाएगा.

एनईएसएसी उन्नत अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी सहायता प्रदान करके पूर्वोत्तर क्षेत्र में विकास प्रक्रिया को बढ़ाने में मदद करता है.

असम-मिजोरम सीमा पर एक बार फिर से गंभीर विवाद खड़ा हो गया है, जहां कई झड़पों में असम पुलिस के छह जवानों और एक नागरिक की मौत हुई है.

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कुछ महीने पहले सैटेलाइट इमेजिंग के माध्यम से अंतर-राज्यीय सीमाओं के सीमांकन का विचार रखा था.

शाह ने पूर्वोत्तर क्षेत्र में अंतर-राज्यीय सीमाओं और जंगलों के मानचित्रण और राज्यों के बीच सीमाओं के वैज्ञानिक सीमांकन के लिए एनईएसएसी को शामिल करने का सुझाव दिया था.

शिलॉन्ग स्थित एनईएसएसी पहले से ही इस क्षेत्र में बाढ़ प्रबंधन के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग कर रहा है.

सरकारी पदाधिकारियों ने कहा कि चूंकि बॉर्डर के सीमांकन में वैज्ञानिक तरीके शामिल होंगे, इसलिए किसी भी विसंगति की कोई गुंजाइश नहीं होगी और राज्यों द्वारा सीमा समाधान को सहज स्वीकार किया जा सकेगा.

उन्होंने कहा कि एक बार सैटेलाइट मैपिंग हो जाने के बाद पूर्वोत्तर राज्यों की सीमाएं खींची जा सकती हैं और विवादों को स्थायी रूप से सुलझाया जा सकता है.

एनईएसएसी के प्रमुख उद्देश्य- क्षेत्र में विकास, प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन और आधारभूत संरचना योजनाओं के लिए रिमोट सेंसिंग और भौगोलिक सूचना प्रणाली प्रदान करना है.

यह शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, आपदा प्रबंधन सहायता और विकासात्मक संचार के में क्षेत्र में सैटेलाइट संचार सेवाएं प्रदान करता है.

बता दें कि पिछले महीने 26 जुलाई को मिजोरम और असम के बीच हुई झड़प में छह असम पुलिसकर्मियों और एक नागरिक की मौत हो गई थी और एक पुलिस अधीक्षक सहित 50 से अधिक घायल हो गए थे.

दरअसल दोनों राज्य एक दूसरे पर उनकी सीमाओं में अतिक्रमण का आरोप लगाते हैं. सीमा विवाद का ये मसला मिजोरम के असम से अलग होने के साथ ही शुरू हो गया था. साल 1972 में एक केंद्र शासित प्रदेश के रूप में अलग किए जाने से पहले मिजोरम, असम राज्य का हिस्सा था. उस वक्त मिजोरम को असम के एक हिस्से लुशाई हिल्स के नाम से जाना जाता था.

20 फरवरी 1987 को तत्कालीन भूमिगत मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) और केंद्र के बीच मिजोरम समझौते के बाद यह (मिजोरम) भारत का 23वां राज्य बना था और इसके साथ ही राज्य में 20 साल का विद्रोह समाप्त हो गया था.

ये विवाद 1875 की एक अधिसूचना से उपजा है, जो लुशाई हिल्स को कछार के मैदानी इलाकों से अलग करता है, जबकि 1933 की एक अन्य अधिसूचना ने उस विवाद को बढ़ाने का काम किया, जिसके तहत लुशाई हिल्स और मणिपुर के बीच एक सीमा निर्धारित कर दी गई.

दोनों राज्यों की क्षेत्रीय सीमा को लेकर अलग-अलग व्याख्याएं हैं. मिजोरम का मानना है कि उसकी सीमा तराई क्षेत्र के लोगों के प्रभाव से आदिवासियों को बचाने के लिए 1875 में खींची गई इनर लाइन तक है, जबकि असम 1930 के दशक में किए गए जिला रेखांकन सर्वेक्षण को मानता है.

असम के बराक घाटी के जिले कछार, करीमगंज और हैलाकांडी, पड़ोसी राज्य मिजोरम के तीन जिलों- आइजोल, कोलासिब और मामित के साथ 164 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करते हैं.

साल 2018 में बड़े पैमाने पर संघर्ष के बाद पिछले साल अगस्त और फिर इस साल फरवरी में दोनों राज्यों के बीच सीमा-विवाद का मामला फिर से उभरा था. हालांकि केंद्र के हस्तक्षेप के बाद बढ़ते तनाव को सफलतापूर्वक समाप्त कर दिया गया था.

हालांकि इस साल पांच जून को मिजोरम-असम सीमा पर दो घरों को अज्ञात व्यक्तियों द्वारा जला दिया गया, जिसके चलते अंतर-राज्य सीमा विवाद फिर से उठ खड़ा हुआ है.

(समाचार एजेंसी पीटीआई से इनपुट के साथ)

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