योगी सरकार ने हाईकोर्ट में बताया, क़फ़ील ख़ान के ख़िलाफ़ पुन: जांच के आदेश को वापस लिया गया

साल 2017 में गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में कथित तौर पर ऑक्सीजन की कमी से एक सप्ताह के भीतर 60 से ज़्यादा बच्चों की मौत मामले में डॉ. क़फ़ील ख़ान को निलंबित कर दिया गया था और वह लगभग नौ महीने तक जेल में भी रहे थे. ख़ान ने एक याचिका दायर कर बच्चों की मौत के संबंध में 22 अगस्त, 2017 को उनके निलंबन के आदेश को चुनौती दी है.

डॉ. कफील. (फोटो साभार: फेसबुक/drkafeelkhanofficial)

साल 2017 में गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में कथित तौर पर ऑक्सीजन की कमी से एक सप्ताह के भीतर 60 से ज़्यादा बच्चों की मौत मामले में डॉ. क़फ़ील ख़ान को निलंबित कर दिया गया था और वह लगभग नौ महीने तक जेल में भी रहे थे. ख़ान ने एक याचिका दायर कर बच्चों की मौत के संबंध में 22 अगस्त, 2017 को उनके निलंबन के आदेश को चुनौती दी है.

डॉ. कफील. (फोटो साभार: फेसबुक/drkafeelkhanofficial)

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट को बताया है कि गोरखपुर के बाबा राघवदास (बीआरडी) मेडिकल कॉलेज से निलंबित बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. कफील खान के खिलाफ पिछले साल शुरू की गई विभागीय पुन: जांच के आदेश वापस ले लिया गया है. अब सरकार तीन महीने में उनके निलंबन पर फैसला ले सकती है.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक अतिरिक्त महाधिवक्ता मनीष गोयल ने बीते छह अगस्त को हाईकोर्ट को बताया, ‘इस याचिका में लगाए गए 24 फरवरी 2020 के आदेश को वापस ले लिया गया है.’

खान द्वारा दायर एक याचिका में गोरखपुर बीआरडी मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन की कथित कमी के कारण कई बच्चों की मौत के संबंध में 22 अगस्त, 2017 को उनके निलंबन को चुनौती दी गई थी. पिछले साल 24 फरवरी को अनुशासनात्मक प्राधिकरण ने खान के खिलाफ एक और जांच का आदेश दिया था.

हाईकोर्ट ने 29 जुलाई को याचिका पर सुनवाई की और सरकार से जवाब मांगा था. इस पर सरकारी वकील ने कहा कि तीन महीने की अवधि के भीतर अनुशासनात्मक कार्यवाही (डॉ. खान के खिलाफ) को समाप्त करने के लिए सभी प्रयास किए जाएंगे.

मालूम हो कि दो सितंबर 2017 को डॉ. कफील खान को गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में कथित तौर पर ऑक्सीजन की कमी से नवजातों की मौत के मामले में गिरफ्तार किया गया था. वह लगभग नौ महीने तक जेल में रहे थे. वह इस मामले में नौ आरोपियों में से एक थे.

नवजातों की मौत के दो साल बाद 27 सितंबर 2019 को कफील खान को मामले में सभी आरोपों से बरी कर दिया गया था. अस्पताल की आंतरिक जांच समिति ने उन्हें मामले में आरोप मुक्त कर दिया था.

जस्टिस यशवंत वर्मा ने कहा कि अब अदालत को 22 अगस्त 2017 को पारित एक आदेश के आधार पर याचिकाकर्ता के निलंबन को जारी रखने के औचित्य पर विचार करना होगा.

अदालत के आदेश में कहा गया है, ‘रिट याचिका के पैराग्राफ 54 से पता चलता है कि उस आदेश के तहत शुरू में नौ लोगों के खिलाफ कार्यवाही की गई थी. याचिकाकर्ता के साथ निलंबित किए गए लोगों में से सात को अनुशासनात्मक कार्यवाही समाप्त होने तक बहाल कर दिया गया है.’

इस मामले की अगली सुनवाई 10 अगस्त को होगी.

बता दें कि कफील खान ने 12 दिसंबर 2019 को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएए) के विरोध में हुए प्रदर्शनों के दौरान भाषण दिया था, जिसके बाद उनके खिलाफ भड़काऊ भाषण देने के आरोप में एफआईआर दर्ज की गई थी. इसके बाद उत्तर प्रदेश विशेष कार्यबल ने उन्हें मुंबई में गिरफ्तार भी किया था, जहां कफील सीएए विरोधी प्रदर्शनों में हिस्सा लेने गए थे.

अलीगढ़ की एक अदालत ने उन्हें जमानत दी थी, लेकिन उन्हें जेल से रिहा नहीं किया गया था, क्योंकि उत्तर प्रदेश पुलिस ने उन पर राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) के तहत मामला दर्ज किया गया था.

पिछले साल सितंबर में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एनएसए के तहत कफील की हिरासत को रद्द कर दिया था और सरकार को उन्हें तुरंत रिहा करने के निर्देश दिए थे.

यहां तक कि तत्कालीन चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था.

डॉ. खान 2017 में उस समय सुर्खियों में आए थे जब बीआरडी मेडिकल कॉलेज, गोरखपुर में एक सप्ताह के भीतर 60 से ज्यादा बच्चों की मौत कथित तौर पर ऑक्सीजन की कमी से हो गई थी.

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