अफगानिस्तान: तालिबान ने काबुल के निकट प्रांत पर किया कब्जा, उत्तरी शहर पर हमला किया

अफगानिस्तान से अमेरिका की पूरी वापसी में तीन सप्ताह से भी कम समय शेष बचा है और ऐसे में तालिबान ने उत्तर, पश्चिम और दक्षिण अफगानिस्तान के अधिकतर हिस्सों पर कब्जा कर लिया है. भारत सहित 12 देशों ने कहा है कि वे ऐसी किसी भी सरकार को मान्यता नहीं देंगे जो सैन्य बल के माध्यम से थोपी जाएगी.

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(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

अफगानिस्तान से अमेरिका की पूरी वापसी में तीन सप्ताह से भी कम समय शेष बचा है और ऐसे में तालिबान ने उत्तर, पश्चिम और दक्षिण अफगानिस्तान के अधिकतर हिस्सों पर कब्जा कर लिया है. भारत सहित 12 देशों ने कहा है कि वे ऐसी किसी भी सरकार को मान्यता नहीं देंगे जो सैन्य बल के माध्यम से थोपी जाएगी.

(फोटो: रॉयटर्स)

काबुल: तालिबान ने शनिवार तड़के काबुल के दक्षिण में स्थित एक प्रांत पर कब्जा कर लिया और देश के उत्तर में स्थित प्रमुख शहर मजार-ए-शरीफ पर चौतरफा हमला शुरू कर दिया. अफगान अधिकारियों ने यह जानकारी दी.

लोगार से सांसद होमा अहमदी ने बताया कि तालिबान ने पूरे प्रांत पर कब्जा कर लिया है, जिसमें उनकी राजधानी भी शामिल है और तालिबान शनिवार को पड़ोसी काबुल प्रांत के एक जिले में पहुंच गया. तालिबान राजधानी काबुल के दक्षिण में 80 किलोमीटर से भी कम दूरी पर पहुंच चुका है.

अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की पूरी तरह वापसी में तीन सप्ताह से भी कम समय शेष बचा है और ऐसे में तालिबान ने उत्तर, पश्चिम और दक्षिण अफगानिस्तान के अधिकतर हिस्सों पर कब्जा कर लिया है.

इस बीच उत्तरी बल्ख प्रांत में प्रांतीय गवर्नर के प्रवक्ता मुनीर अहमद फरहाद ने बताया कि तालिबान ने शनिवार तड़के शहर पर कई दिशाओं से हमला किया. इसके कारण इसके बाहरी इलाकों पर भीषण लड़ाई शुरू हो गई. उन्होंने हताहतों के बारे में फिलहाल कोई जानकारी नहीं दी.

अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी शहर के बचाव की कोशिशों के तहत बुधवार को मजार-ए-शरीफ गए थे और उन्होंने सरकार से संबद्ध कई मिलिशिया कमांडरों के साथ बैठक की थी.

तालिबान ने हालिया दिनों में तेजी से किए गए हमलों के बाद दक्षिणी अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया है, जिसके कारण पूरे देश पर उसके कब्जे की आशंका बढ़ने लगी है. उसके तेजी से आगे बढ़ने के कारण पश्चिम समर्थित सरकार का नियंत्रण काबुल और मजार-ए-शरीफ के साथ-साथ केवल मध्य एवं पूर्व में स्थित प्रांतों पर शेष रह गया है.

विदेशी बलों की वापसी और वर्षों में अमेरिका से मिली सैकड़ों अरब डॉलर की मदद के बावजूद अफगानिस्तान से बलों के पीछे हटने के कारण यह आशंका बढ़ गई है कि तालिबान फिर से देश पर कब्जा कर सकता है या देश में गृह युद्ध की स्थिति पैदा हो सकती है.

अफगानिस्तान में तालिबान के तेजी से पैर पसारने के बीच अमेरिकी दूतावास को आंशिक रूप से खाली करने में मदद करने के लिए अमेरिका की मरीन बटालियन का 3,000 कर्मियों का दस्ता बीते शुक्रवार को यहां पहुंचा था. शेष जवानों के रविवार को पहुंचने की संभावना है.

हालांकि, अतिरिक्त सैनिकों के अफगानिस्तान पहुंचने से यह सवाल खड़ा हो गया है कि क्या अमेरिका सैनिकों की वापसी का काम 31 अगस्त की समयसीमा के भीतर पूरा कर पाएगा या नहीं.

इस बीच, तालिबान ने शनिवार को कंधार में एक रेडियो स्टेशन पर कब्जा कर लिया. तालिबान ने एक वीडियो जारी किया जिसमें एक अज्ञात ने शहर के मुख्य रेडियो स्टेशन को कब्जे में लेने की घोषणा की. रेडिया का नाम बदलकर ‘वॉइस ऑफ शरिया’ कर दिया गया है.

उसने कहा कि सभी कर्मचारी यहां मौजूद हैं, वे समाचार प्रसारित करेंगे, राजनीतिक विश्लेषण करेंगे और कुरान की आयतें पढ़ेंगे. ऐसा लगता है कि स्टेशन पर अब संगीत नहीं बजाया जाएगा.

तालिबान कई वर्षों से सचल रेडियो स्टेशन संचालित करता आ रहा है, लेकिन प्रमुख शहर में उसका रेडियो स्टेशन पहले कभी नहीं रहा. वह ‘वॉइस ऑफ शरिया’ नाम का स्टेशन चलाता था जिसमें संगीत पर पाबंदी थी.

‘अफगानिस्तान में ताकत के बल पर थोपी गई सरकार को मान्यता नहीं देंगे’

भारत, जर्मनी, कतर, तुर्की और कई अन्य देशों ने पुष्टि की है कि वे अफगानिस्तान में ऐसी किसी भी सरकार को मान्यता नहीं देंगे जिसे सैन्य बल के माध्यम से थोपा जाता है. इन देशों ने युद्धग्रस्त देश में हिंसा एवं हमलों को तुरंत समाप्त करने की अपील की.

दोहा में अफगानिस्तान को लेकर दो अलग-अलग बैठक के बाद कतर द्वारा बीते शुक्रवार को जारी बयान के अनुसार बैठक में हिस्सा लेने वाले देश इस बात से सहमत थे कि अफगान शांति प्रक्रिया में तेजी लाने की जरूरत है क्योंकि यह ‘काफी जरूरी’ मामला है.

यह बयान तब आया है जब तालिबान ने पिछले कुछ दिनों में कंधार और हेरात सहित कई मुख्य शहरों पर कब्जा कर लिया है और देश में वह बड़े हिस्से पर कब्जा करता जा रहा है.

इसने कहा कि हिस्सा लेने वाले देशों ने तालिबान और अफगान सरकार से अपील की कि विश्वास बनाएं और राजनीतिक समाधान तक पहुंचने का प्रयास करें और जल्द से जल्द संघर्ष विराम हो.

कतर के विदेश मंत्रालय ने बताया कि पहली बैठक में चीन, उज्बेकिस्तान, अमेरिका, पाकिस्तान, ब्रिटेन, कतर, संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय संघ ने हिस्सा लिया.

इसने कहा कि 12 अगस्त को हुई दूसरी बैठक में जर्मनी, भारत, नॉर्वे, कतर, तजाकिस्तान, तुर्की, तुर्कमेनिस्तान, अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया.

कतर की तरफ से आयोजित दूसरी बैठक में विदेश मंत्रालय में पाकिस्तान-अफगानिस्तान-ईरान शाखा के संयुक्त सचिव जेपी सिंह ने हिस्सा लिया.

कतर के विदेश मंत्रालय ने कहा, ‘हिंसा, काफी संख्या में नागरिकों के मारे जाने और न्यायेत्तर हत्याओं, व्यापक मानवाधिकार उल्लंघनों, प्रांतीय राजधानियों एवं शहरों पर हो रहे हमलों को लेकर बैठक में शामिल प्रतिभागियों ने गंभीर चिंता जताई.’

इसने कहा कि देशों ने पुष्टि की कि वे सैन्य ताकत से अफगानिस्तान में थोपी गई सरकार को मान्यता नहीं देंगे.

बयान में बताया गया, ‘भाग लेने वाले देशों ने स्वीकार्य राजनीतिक समाधान पर पहुंचने के बाद अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में सहयोग करने की प्रतिबद्धता जताई.’

अफगानिस्तान नियंत्रण से बाहर हो रहा है: संयुक्त राष्ट्र प्रमुख

वहीं संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस ने इस बात पर चिंता जताते हुए कि अफगानिस्तान में हालात ‘नियंत्रण से बाहर हो रहे हैं’, तालिबान से फौरन हमले रोकने को कहा है.

उन्होंने कहा कि सैन्य ताकत के जरिए सत्ता छीनना एक ‘असफल कदम’ है और यह सिर्फ और सिर्फ लंबे समय तक गृहयुद्ध चलने का और युद्धग्रस्त राष्ट्र के पूरी तरह से अलग-थलग होने का कारण बन सकता है.

तालिबान ने देश के दूसरे और तीसरे सबसे बड़े शहर – हेरात और कंधार पर कब्जा कर लिया है. तालिबानी चरमपंथी अफगानिस्तान में तेजी से अपने पैर जमाते जा रहे हैं, वहीं कुछ का कहना है कि देश का 60 प्रतिशत हिस्सा उनके नियंत्रण में चला गया है.

इस बात को लेकर चिंता बढ़ती जा रही है कि काबुल भी जल्द ही तालिबान के हाथों में जाने वाला है.

गुतारेस ने बीते शुक्रवार को कहा, ‘ऐसा देश जो दुखद रूप से पीढ़ियों से संघर्षों के लिए जाना जाता है, अफगानिस्तान एक बार फिर अराजक एवं हताशा भरे दौर का सामना कर रहा है- जो लंबे समय से पीड़ित उसके लोगों के लिए अविश्वसनीय त्रासदी है.’

उन्होंने देश में ‘गंभीर स्थिति’ पर चिंता जाहिर करते हुए कहा, ‘अफगानिस्तान नियंत्रण से बाहर हो रहा है.’

संयुक्त राष्ट्र प्रमुख ने देश भर की प्रांतीय राजधानियों पर तेजी से कब्जा कर रहे तालिबान से तत्काल हमले रोकने की और अफगानिस्तान और उसके लोगों के हित में ‘ईमानदारी से बातचीत’ करने की अपील की.

गुतारेस ने कहा, ‘युद्ध के मार्ग पर चल रहे लोगों को अंतरराष्ट्रीय समुदाय का संकेत स्पष्ट है: सैन्य ताकत से सत्ता हासिल करना एक विफल कदम है. यह केवल लंबे समय तक गृहयुद्ध या अफगानिस्तान के पूर्ण अलगाव का कारण बनेगा.’

उन्होंने कहा कि नागरिकों के खिलाफ हमले करना अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून का गंभीर उल्लंघन है और युद्ध अपराध के बराबर है. उन्होंने अपराधियों को जवाबदेह ठहराने का आह्वान किया.

संयुक्त राष्ट्र प्रमुख ने कहा कि वह इन शुरुआती संकेतों को लेकर भी ‘बहुत परेशान’ हैं कि तालिबान अपने नियंत्रण वाले क्षेत्रों में मानवाधिकारों पर, खासकर महिलाओं और पत्रकारों को निशाना बनाते हुए गंभीर प्रतिबंध लगा रहा है.

उन्होंने कहा, ‘अफगान लड़कियों और महिलाओं के कड़ी मेहनत से जीते गए अधिकारों को उनसे छीने जाने की खबरें देखना विशेष रूप से भयावह और हृदयविदारक है.’

गुतारेस ने आशा व्यक्त की कि अफगानिस्तान और तालिबान के प्रतिनिधियों के बीच दोहा में चर्चा जो क्षेत्र और व्यापक अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा समर्थित है, बातचीत के जरिए संघर्ष के समाधान का मार्ग बहाल करेगी.

गृह मंत्री से काबुल से हिंदुओं, सिखों को सुरक्षित निकालने का अनुरोध

वर्ल्ड पंजाबी ऑर्गेनाइजेशन ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से अफगानिस्तान में बदतर होते सुरक्षा हालात के मद्देनजर 257 अफगान सिख और हिंदू परिवारों को काबुल से जल्द से जल्द निकालने की अपील की है.

संगठन के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष विक्रमजीत सिंह साहनी ने एक बयान में कहा कि अफगान मूल के सिखों और हिंदुओं को सुरक्षित वापस लाना जरूरी है क्योंकि उनकी जान खतरे में है.

बयान के अनुसार संगठन अफगानिस्तान से आने वालों के पुनर्वास के लिए आवश्यक सहयोग करने को तैयार है और उन्हें नि:शुल्क रोजगारोन्मुखी प्रशिक्षण प्रदान किया जाएगा.

साहनी ने पिछले साल काबुल, गजनी, जलालाबाद से और अफगानिस्तान के अन्य इलाकों से 500 हिंदू तथा सिख परिवारों को निकालने के लिए तीन चार्टर्ड विमान भेजे थे.

बयान के मुताबिक उन्होंने भारत आ चुके लोगों को दीर्घकालिक वीजा देने के लिए गृह मंत्री का आभार जताया और उनसे अनुरोध किया कि पिछले साल लागू नागरिकता संशोधन अधिनियम के तहत ऐसे लोगों को नागरिकता प्रदान की जाए.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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