कोर्ट ने आईटी नियमों के दो प्रावधानों पर लगाई रोक, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन बताया

बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि लोकतंत्र में असहमति का होना महत्वपूर्ण है. राज्य में सुशासन के लिए देश में जनसेवा में जुटे लोगों की स्वस्थ्य आलोचना/समीक्षा होनी चाहिए, ताकि ढांचागत विकास हो सके, लेकिन नए नियमों के लागू होने के बाद किसी को भी ऐसे किसी व्यक्ति की आलोचना करने से पहले दोबार सोचना पढ़ेगा, फिर चाहे किसी लेखक/संपादक/प्रकाशक के पास इसके लिए उचित कारण ही क्यों न हो.

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बॉम्बे हाईकोर्ट (फोटो : पीटीआई)

बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि लोकतंत्र में असहमति का होना महत्वपूर्ण है. राज्य में सुशासन के लिए देश में जनसेवा में जुटे लोगों की स्वस्थ्य आलोचना/समीक्षा होनी चाहिए, ताकि ढांचागत विकास हो सके, लेकिन नए नियमों के लागू होने के बाद किसी को भी ऐसे किसी व्यक्ति की आलोचना करने से पहले दोबार सोचना पढ़ेगा, फिर चाहे किसी लेखक/संपादक/प्रकाशक के पास इसके लिए उचित कारण ही क्यों न हो.

बॉम्बे हाईकोर्ट (फोटो : पीटीआई)

मुंबई: असहमति को लोकतंत्र के लिए महत्वपूर्ण बताते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने डिजिटल मीडिया के लिए नैतिकता संहिता के अनुपालन से जुड़े नए सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) नियमों, 2021 की धारा 9 (1) और 9 (3) के क्रियान्वयन पर शनिवार को अंतरिम रोक लगा दी.

नए नियम के प्रावधान 9 के उप-प्रावधानों 1 और 3 के संदर्भ में मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस जीएस कुलकर्णी की पीठ ने कहा कि नैतिकता संहिता का इस तरह का अनिवार्य अनुपालन याचिकाकर्ताओं को संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का हनन है.

पीठ ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि ये धाराएं संविधान के अनुच्छेद-19 के तहत प्रदत अभिव्यक्ति के अधिकार का हनन कर रही हैं.

पीठ ने कहा, ‘लोकतंत्र में असहमति का होना महत्वपूर्ण है. राज्य में सुशासन के लिए देश में जनसेवा में जुटे लोगों की स्वस्थ्य आलोचना/समीक्षा होनी चाहिए, ताकि ढांचागत विकास हो सके, लेकिन नए नियमों के लागू होने के बाद, किसी को भी ऐसे किसी व्यक्ति की आलोचना करने से पहले दो बार सोचना पढ़ेगा, फिर चाहे किसी लेखक/संपादक/प्रकाशक के पास इसके लिए उचित कारण ही क्यों ना हो.’

पीठ ने कहा कि नियम के तहत प्रस्तावित समिति अगर ऐसे किसी व्यक्ति की आलोचना को मान्यता/मंजूरी नहीं देती है तो आलोचना करने वाले व्यक्ति को सजा दी जा सकती है.

पीठ ने यह भी कहा कि धारा 9 खुद ही सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) अधिनियम के दायरे से बाहर जाती है.

हाईकोर्ट ने आदेश पर रोक लगाने के केंद्र सरकार के अनुरोध को भी खारिज कर दिया. दरअसल, केंद्र ने अपील दायर करने के लिए आदेश पर रोक लगाने का अनुरोध किया था.

हालांकि, अदालत ने आईटी नियमों की धारा 14 और 16 पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, जो एक अंतर-मंत्रालयी समिति के गठन और ऐसी परिस्थिति में सामग्री (कंटेंट) पर रोक लगाने से संबद्ध है.

कानूनी विषयों के समाचार पोर्टल द लीफलेट और पत्रकार निखिल वागले ने याचिकाएं दायर कर नए नियमों को चुनौती देते हुए कहा था कि संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदत्त अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार पर इनका गंभीर प्रभाव पड़ने की संभावना है.

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, हालांकि, अदालत ने संकेत दिया कि यह राहत केवल इन्हीं दो याचिकाकर्ताओं को दी गई है.

गौरतलब है कि शुक्रवार को पीठ ने केंद्र सरकार से सवाल किया था कि 2009 में प्रभावी हुए मौजूदा आईटी नियमों को निष्प्रभावी किए बगैर हाल में अधिसूचित सूचना प्रौद्योगिकी नियमों, 2021 को लाने की क्या जरूरत थी.

केंद्र की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलीसीटर जनरल अनिल सिंह ने दलील दी थी कि ‘फर्जी खबरों’ के प्रसार पर रोक लगाने के लिए नए नियमों को लाने की जरूरत पड़ी.

बता दें कि सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 (आईटी नियम) को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं दिल्ली और मद्रास हाईकोर्ट सहित विभिन्न उच्च न्यायालयों में लंबित हैं.

याचिकाएं आईटी नियमों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देती हैं, जिसमें विशेष रूप से नियमों के भाग III को चुनौती दी गई है, जो डिजिटल मीडिया प्रकाशनों को विनियमित करना चाहता है.

याचिकाओं का तर्क है, नियमों का भाग III आईटी अधिनियम (जिसके तहत नियमों को फ्रेम किया गया है) द्वारा निर्धारित अधिकार क्षेत्र से परे है और यह संविधान के विपरीत भी है.

कई व्यक्तियों और संगठनों- जिनमें द वायर, द न्यूज मिनट की धन्या राजेंद्रन, द वायर के एमके वेणु, द क्विंट, प्रतिध्वनि और लाइव लॉ अपने-अपने राज्यों में विशेष रूप से महाराष्ट्र, केरल, दिल्ली और तमिलनाडु के उच्च न्यायालयों का रुख कर चुके हैं.

वहीं, डिजिटल न्यूज में बड़ी हिस्सेदारी रखने वाले 13 परंपरागत अखबार और टेलीविजन मीडिया की कंपनियों ने भी डिजिटल न्यूज पब्लिशर्स एसोसिएशन (डीएनपीए) के तहत मद्रास हाईकोर्ट में एक रिट याचिका दायर करते हुए इंफॉरमेशन टेक्नोलॉजी (इंटरमीडियरी गाइडलाइंस एंड डिजिटल मीडिया एथिक्स कोड) रूल्स, 2021 को संविधान विरोधी, अवैध और संविधान के अनुच्छेद 14, अनुच्छेद 19 (1) क और अनुच्छेद 19 (1) छ का उल्लंघन करने वाला घोषित करने की मांग की है.

मद्रास हाईकोर्ट ने 23 जून को याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था.

कर्नाटक संगीतकार, लेखक और कार्यकर्ता टीएम कृष्णा ने भी आईटी नियमों के खिलाफ एक याचिका के साथ मद्रास हाईकोर्ट का भी रुख किया है.

पत्रकार निखिल वागले और वेबसाइट द लीफलेट ने नियमों को बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी है. कन्नड समाचार आउटलेट प्रतिध्वनि ने कर्नाटक उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है. भारत की सबसे बड़ी समाचार एजेंसी प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया (पीटीआई) ने भी नियमों के खिलाफ दिल्ली उच्च न्यायालय का रुख किया है.

बीते 9 जुलाई को लाइव लॉ को दी गई इसी तरह की सुरक्षा का हवाला देते हुए केरल उच्च न्यायालय ने यह भी आदेश दिया कि सरकार द्वारा आईटी नियमों के तहत न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (एनबीए) के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जा सकती है. एनबीए कई समाचार चैनलों का प्रतिनिधित्व करता है.

इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने आईटी नियमों को चुनौती देने वाले मामलों की विभिन्न हाईकोर्टों में चल रही कार्यवाही पर रोक लगाने से इनकार कर दिया

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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