वादी जिस भाषा में पक्ष रखे, उसी भाषा में जवाब दे केंद्र सरकार: मद्रास हाईकोर्ट

मद्रास हाईकोर्ट ने माकपा सांसद एस. वेंकटेशन की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को संघ या राज्य में इस्तेमाल होने वाली किसी भी भाषा में पक्ष रखने का अधिकार है. सांसद ने अपनी याचिका में केंद्र को यह निर्देश देने का अनुरोध किया था कि उसे केंद्र तथा राज्य सरकारों के बीच सभी पत्राचारों में अंग्रेज़ी भाषा का इस्तेमाल करना चाहिए. 

मद्रास हाईकोर्ट. (फोटो साभार: फेसबुक/@Chennaiungalkaiyil)

मद्रास हाईकोर्ट ने माकपा सांसद एस. वेंकटेशन की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को संघ या राज्य में इस्तेमाल होने वाली किसी भी भाषा में पक्ष रखने का अधिकार है. सांसद ने अपनी याचिका में केंद्र को यह निर्देश देने का अनुरोध किया था कि उसे केंद्र तथा राज्य सरकारों के बीच सभी पत्राचारों में अंग्रेज़ी भाषा का इस्तेमाल करना चाहिए.

मद्रास हाईकोर्ट. (फोटो साभार: फेसबुक/@Chennaiungalkaiyil)

मदुरै: मद्रास हाईकोर्ट ने राजभाषा अधिनियम का उल्लेख करते हुए केंद्र को निर्देश दिया है कि यदि कोई वादी अंग्रेजी भाषा में पक्ष रखता है तो उसे उसी भाषा में जवाब दिया जाए. अदालत ने कहा कि ऐसा करना केंद्र सरकार का कर्तव्य है.

जस्टिस एन. किरुबाकरन और जस्टिस एम. दुरईसामी ने मदुरै से माकपा सांसद एस. वेंकटेशन की जनहित याचिका पर कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को संघ या राज्य में इस्तेमाल होने वाली किसी भी भाषा में पक्ष रखने का अधिकार है.

उन्होंने बृहस्पतिवार को कहा कि राजभाषा अधिनियम भी यही कहता है. पीठ ने कहा, ‘अगर अंग्रेजी भाषा में पक्ष रखा गया है तो केंद्र सरकार का कर्तव्य है कि उसी भाषा में जवाब दिया जाए.’

सांसद ने अपनी याचिका में केंद्र को यह निर्देश देने का अनुरोध किया था कि उसे केंद्र तथा राज्य सरकारों के बीच सभी पत्राचारों में अंग्रेजी भाषा का इस्तेमाल करना चाहिए. उन्हें तमिलनाडु में सीआरपीएफ भर्ती के लिए परीक्षा केंद्र बनाने से संबंधित एक प्रश्न का केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से जवाब हिंदी में मिला था.

वेंकटेशन ने ट्वीट किया कि अदालत ने निर्देश दिया था कि अगर जनप्रतिनिधि केंद्र को अंग्रेजी में लिखते हैं, तो जवाब भी उसी भाषा में दिया जाना चाहिए.

न्यू इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, पीठ ने केंद्र सरकार के इस स्पष्टीकरण पर भी गौर किया कि सांसद के पत्र का जवाब अनजाने में सिर्फ हिंदी में दिया गया था और यह उल्लंघन जान-बूझकर नहीं किया गया. इसे नोट करते हुए पीठ ने केंद्र सरकार और उसके सभी सहयोगियों को राजभाषा अधिनियम, 1963, विशेष रूप से अधिनियम की धारा 3, जिसमें कहा गया है कि आधिकारिक दस्तावेजों के लिए हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं का उपयोग किया जाना चाहिए और आधिकारिक भाषा नियम, 1976 का सख्ती से पालन करने का निर्देश दिया.

जस्टिस किरुबाकरन ने कहा कि सूचना और संचार के युग में भाषा महत्वपूर्ण है. उन्होंने कहा, ‘भारत में ऐसी कई भाषाएं हैं, जो सैकड़ों या हजारों साल पुरानी हैं. सरकारों को भाषाओं के संरक्षण के लिए प्रयास करने चाहिए. मातृभाषा को भी अंग्रेजी की तरह महत्व दिया जाना चाहिए, क्योंकि मातृभाषा को समझे बिना ज्ञान अधूरा होगा.’

उन्होंने कहा कि भाषा के महत्व को कोई भी समझ सकता है, क्योंकि राज्यों को भाषा के आधार पर पुनर्गठित किया गया था. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी का प्रयोग जारी रखना चाहिए, जो जोड़ने का कार्य कर सकता है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)