यूपी: कॉन्स्टेबल की दाढ़ी रखने की मांग ख़ारिज, कोर्ट ने कहा- पुलिस की छवि सेकुलर होनी चाहिए

उत्तर प्रदेश पुलिस ने दाढ़ी न रखने के दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने पर अयोध्या के एक पुलिस कॉन्स्टेबल मोहम्मद फ़रमान को निलंबित कर दिया था, जिसे चुनौती देते हुए उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट में दो याचिकाएं दायर की थीं. हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने कहा कि पुलिसबल में दाढ़ी रखना संवैधानिक अधिकार नहीं है.

(फोटो साभार: ट्विटर/यूपी पुलिस)

उत्तर प्रदेश पुलिस ने दाढ़ी न रखने के दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने पर अयोध्या के एक पुलिस कॉन्स्टेबल मोहम्मद फ़रमान को निलंबित कर दिया था, जिसे चुनौती देते हुए उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट में दो याचिकाएं दायर की थीं. हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने कहा कि पुलिसबल में दाढ़ी रखना संवैधानिक अधिकार नहीं है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट. (फोटो: पीटीआई)

लखनऊः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 12 अगस्त को उत्तर प्रदेश पुलिस के एक कर्मचारी की वह याचिका खारिज कर दी, जिसमें उन्होंने कहा था कि उन्हें दाढ़ी रखने का मौलिक अधिकार है.

हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने कहा है कि पुलिसबल में दाढ़ी रखना संवैधानिक अधिकार नहीं है. यह कहकर अदालत ने उत्तर प्रदेश पुलिस में दाढ़ी रखने पर रोक के खिलाफ दाखिल याचिका को खारिज कर दिया.

अदालत ने याचिका दाखिल करने वाले सिपाही के खिलाफ जारी निलंबन आदेश व चार्जशीट में भी दखल देने से इनकार कर दिया है.

यह आदेश जस्टिस राजेश सिंह चौहान की एकल पीठ ने अयोध्या जनपद के खंडासा थाने में तैनात रहे सिपाही मोहम्मद फरमान की दो अलग-अलग याचिकाओं पर एक साथ दिया.

याचिकाकर्ता का कहना है कि संविधान में प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के तहत उसने मुस्लिम सिद्धांतों के आधार पर दाढ़ी रखी हुई है.

अदालत ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अपने फैसले में कहा कि 26 अक्टूबर 2020 का सर्कुलर एक कार्यकारी आदेश है, जो पुलिस बल में अनुशासन को बनाए रखने के लिए जारी किया गया है. पुलिस बल को एक अनुशासित बल होना चाहिए और एक कानून प्रवर्तन एजेंसी होने के कारण इसकी छवि भी सेक्युलर होनी चाहिए.

अदालत ने कहा कि एसएचओ (थाना प्रभारी) की चेतावनी के बावजूद दाढी नहीं कटवाकर याचिकाकर्ता ने गलत आचरण किया है.

फरमान के वकील अमित बोस ने तर्क दिया कि अक्टूबर 2020 का सर्कुलर दरअसल संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत याचिकाकर्ता के अधिकारों का उल्लंघन है.

इस दौरान बोस ने बिजो इमैनुअल और अन्य बनाम केरल सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी उल्लेख किया, जहां अदालत ने याचिकाकर्ता के धार्मिक विश्वास की वजह से राष्ट्रगान गाने से उनके इनकार के अधिकार का बचाव किया.

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस राजेश सिंह चौहान की एकल पीठ ने कहा कि सभी अधिकारों को उसी संदर्भ और भावना में देखा जाना चाहिए, जिसमें उन्हें संविधान के तहत रखा गया है.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, इस दौरान अदालत ने मोहम्मद जुबैर कॉरपोरल बनाम भारत सरकार मामले का उल्लेख किया, जहां वादी यह साबित नहीं कर सका कि क्या इस्लाम में बालों को काटने से रोकने या चेहरे के बालों को साफ करने पर रोक लगाने का निर्देश है.

अदालत ने कहा कि अनुशासित पुलिसबल होने की वजह से पुलिसकर्मियों को धर्मनिरपेक्ष छवि अपनाने की जरूरत है ताकि राष्ट्रीय एकता की भावना को मजबूत किया जा सके.

याचिकाकर्ता फरमान के वकील बोस ने तर्क दिया कि फरमान का अपनी दाढ़ी काटने से इनकार करना अनुचित आचरण नहीं है और इस मामले में उनके खिलाफ कोई चार्जशीट दायर नहीं की जानी चााहिए थी.

हालांकि, अदालत ने पाया कि फरमान की गतिविधियां उच्च अधिकारियों द्वारा जारी किए गए दिशानिर्देशों का उल्लंघन है और ये सिर्फ गलत ही नहीं है बल्कि कदाचार और उनकी लापरवाही के समान भी है.

अदालत ने कहा कि पुलिसबल को अनुशासित होना चाहिए और इसके लिए पुलिसकर्मियों को शारीरिक रूप से अनुशासित दिखना जरूरी है. इसके साथ ही अदालत ने जांच अधिकारी को तीन महीने के भीतर विभागीय कार्यवाही पूरी करने का निर्देश दिया है.

बता दें कि उत्तर प्रदेश पुलिस ने दाढ़ी नहीं रखने के दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने पर अयोध्या के एक पुलिस कॉन्स्टेबल मोहम्मद फरमान को निलंबित कर दिया था, जिसे चुनौती देते हुए फरमान ने हाईकोर्ट में दो याचिकाएं दायर की थी.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)