सुप्रीम कोर्ट का निर्देश, सुपरटेक के 40 मंज़िला दो टावरों को तीन महीने के भीतर गिराएं

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इन दोनों टावरों का निर्माण सुपरटेक और नोएडा प्राधिकरण की सांठगांठ से अवैध तरीके से किया गया. अदालत ने सुपरटेक से इन टावरों में फ्लैट बुक कर चुके खरीददारों का पैसा बुकिंग के समय से 12 फीसदी ब्याज सहित लौटाने का निर्देश दिया है. इन दोनों टावर में लगभग 1,000 फ्लैट हैं.

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(फोटो साभार: इकोनॉमिक टाइम्स)

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इन दोनों टावरों का निर्माण सुपरटेक और नोएडा प्राधिकरण की सांठगांठ से अवैध तरीके से किया गया. अदालत ने सुपरटेक से इन टावरों में फ्लैट बुक कर चुके खरीददारों का पैसा बुकिंग के समय से 12 फीसदी ब्याज सहित लौटाने का निर्देश दिया है. इन दोनों टावर में लगभग 1,000 फ्लैट हैं.

(फोटो साभार: इकोनॉमिक टाइम्स)

नयी दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने नोएडा में सुपरटेक की एमेरल्ड कोर्ट परियोजना के 40 मंजिला दो टावरों को नियमों का उल्लंघन कर निर्माण करने के कारण गिराने के सोमवार को निर्देश दिए.

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने कहा कि इन टावरों का निर्माण विभिन्न नियमों और कानूनों का उल्लंघन करते हुए हुआ है.

अदालत ने कंपनी को अपने खर्चे पर तीन महीने के भीतर इन टावरों को ध्वस्त करने का आदेश दिया. बता दें कि इन दोनों टावरों में लगभग 1,000 फ्लैट हैं.

अदालत ने यह भी आदेश दिया है कि रियल एस्टेट कंपनी इन दोनों टावरों में फ्लैट बुक कर चुके खरीददारों का पैसा बुकिंग के समय से 12 फीसदी ब्याज सहित लौटाएं. साथ ही रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन को दो टावरों के निर्माण से हुई परेशानी के लिए दो करोड़ रुपये दिए जाएं.

सुपरटेक लिमिटेड ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद इन दोनों टावरों के निर्माण का बचाव करते हुए कहा कि इनका निर्माण अवैध तरीके से नहीं किया गया.

सुपरटेक ने कहा कि जब इस योजना को मंजूरी दी गई और टावरों का निर्माण कार्य शुरू किया गया, उस समय एमरेल्ड कोर्ट ऑनर रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन अस्तित्व में ही नहीं था.

पीठ ने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के 11 अप्रैल 2014 के फैसले में किसी तरह के हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है.

इससे पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी 2017 के अपने फैसले में सुपरटेक के इन दोनों टावरों को अवैध घोषित करते हुए इसे गिराने के निर्देश दिए थे. इसके साथ ही बिल्डर को नोएडा के सेक्टर 93ए में एमेरल्ड कोर्ट परियोजना के तहत तैयार किए गए इन दोनों टावरों में फ्लैट खरीददारों को पैसा रिफंड करने का भी आदेश दिया था.

इसके बाद बिल्डर ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था, जिसने टावरों को गिराए जाने पर रोक लगा दी थी, लेकिन कंपनी को खरीददारों का पैसा रिफंड करने का निर्देश दिया था.

जब सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई हुई तो नोएडा प्राधिकरण ने कहा कि निर्माण अवैध तरीके से नहीं किया गया, यह मंजूरी दिए गए प्लान के अनुसार ही हुआ है.

रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन ने अदालत के समक्ष कहा कि दोनों टावरों का निर्माण और उसे मिली मंजूरी यूपी अपार्टमेट्स एक्ट का पूर्ण उल्लंघन है और नए टावरों के निर्माण के लिए योजना में बदलाव से पहले मंजूरी नहीं ली गई थी.

वहीं, अदालत ने अपने फैसले में एसोसिएशन की याचिका को स्वीकार कर लिया और नोएडा एवं बिल्डर की याचिका को खारिज कर दिया.

सुप्रीम कोर्ट ने टावरों के अवैध निर्माण के लिए बिल्डर के साथ सांठगांठ से काम करने के लिए प्राधिकरण को भी फटकार लगाई.

अदालत ने कहा कि सुपरटेक के 915 फ्लैट और दुकानों वाले 40 मंजिला दो टावरों का निर्माण नोएडा प्राधिकरण के साथ सांठगांठ कर किया गया है और हाईकोर्ट का विचार सही था.

पीठ ने कहा कि दो टावरों को नोएडा प्राधिकरण और विशेषज्ञ एजेंसी की निगरानी में तीन माह के भीतर गिराया जाए और इसका पूरा खर्च सुपरटेक लिमिटेड उठाएगा.

सुप्रीम कोर्ट ने का कि उसने हाल में देखा है कि मेट्रोपॉलिटन इलाकों में योजना प्राधिकारों के सांठगांठ से अनाधिकृत निर्माण तेजी से बढ़ा है और इससे सख्ती से निपटा जाना चाहिए.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)
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