दिल्ली दंगा: अदालत ने कहा- विरोध करने का अधिकार मौलिक; पांच आरोपियों को दी ज़मानत

दिल्ली हाईकोर्ट ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों के दौरान दिल्ली पुलिस के हेड कॉन्स्टेबल रतन लाल की हत्या के लिए अभियोजन का सामना कर रहे पांच आरोपियों को ज़मानत देते हुए कहा कि यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि विरोध करने और असहमति जताने का अधिकार एक ऐसा अधिकार है, जो लोकतांत्रिक राज्य व्यवस्था में मौलिक दर्जा रखता है.

उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों के दौरान तैनात सुरक्षा बल. (फोटो: रॉयटर्स)

दिल्ली हाईकोर्ट ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों के दौरान दिल्ली पुलिस के हेड कॉन्स्टेबल रतन लाल की हत्या के लिए अभियोजन का सामना कर रहे पांच आरोपियों को ज़मानत देते हुए कहा कि यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि विरोध करने और असहमति जताने का अधिकार एक ऐसा अधिकार है, जो लोकतांत्रिक राज्य व्यवस्था में मौलिक दर्जा रखता है.

उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों के दौरान तैनात सुरक्षा बल. (फाइल फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों से जुड़े एक मामले में महिला सहित पांच आरोपियों को जमानत देते हुए शुक्रवार को कहा कि लोकतांत्रिक राजनीति में विरोध और असहमति जताने का अधिकार मौलिक है.

अदालत ने कहा कि विरोध करने के इस अधिकार का इस्तेमाल करने वालों को कैद करने के लिए इस कृत्य का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए.

हाईकोर्ट ने कहा कि यह सुनिश्चित करना अदालत का संवैधानिक कर्तव्य है कि राज्य की अतिरिक्त शक्ति की स्थिति में लोगों को व्यक्तिगत स्वतंत्रता से मनमाने ढंग से वंचित न किया जाए.

जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने पांच अलग-अलग फैसलों में आरोपियों- मोहम्मद आरिफ, शादाब अहमद, फुरकान, सुवलीन और तबस्सुम को जमानत दे दी. आरोपी 2020 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों के दौरान दिल्ली पुलिस के हेड कॉन्स्टेबल रतन लाल की हत्या के लिए अभियोजन का सामना कर रहे हैं.

अदालत ने कहा, ‘यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि विरोध करने और असहमति जताने का अधिकार एक ऐसा अधिकार है जो लोकतांत्रिक राज्य व्यवस्था में मौलिक दर्जा रखता है, इसलिए विरोध करने के एकमात्र कार्य को उन लोगों की कैद को सही ठहराने के लिए एक हथियार के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए, जिन्होंने इस अधिकार का प्रयोग किया है.’

अदालत ने कहा कि हालांकि सार्वजनिक गवाहों और पुलिस अधिकारियों के बयानों की निश्चितता और सत्यता को इस चरण में नहीं देखा जाना चाहिए और यह सुनवाई का मामला है. लेकिन इस अदालत की राय है कि यह याचिकाकर्ताओं के लगातार कारावास को सही ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं है.

अदालत ने कहा कि विचारणीय मुद्दा यह है कि क्या जब किसी गैरकानूनी भीड़ द्वारा हत्या का अपराध किया गया तो इस भीड़ में शामिल प्रत्येक व्यक्ति को जमानत से वंचित किया जाना चाहिए.

अदालत ने कहा कि जमानत नियम और जेल अपवाद है तथा सुप्रीम कोर्ट ने कई बार यह कहा है कि अदालतों को ‘स्पेक्ट्रम’ के दोनों छोरों तक जागरूक रहने की जरूरत है. यानी यह सुनिश्चित करना अदालतों का कर्तव्य है कि आपराधिक कानून को उचित तरीके से लागू किया जाए तथा कानून लक्षित उत्पीड़न का कोई औजार न बने.

पुलिस ने फुरकान, आरिफ, अहमद, सुवलीन और तबस्सुम को पिछले साल क्रमश: एक अप्रैल, 11 मार्च, छह अप्रैल, 17 मई और तीन अक्टूबर को गिरफ्तार किया था.

हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, पांच अलग-अलग फैसलों में जस्टिस प्रसाद ने कहा कि आरोपियों को लंबे समय तक जेल में रखने के लिए उनके खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं मिले हैं.

उन्होंने कहा कि जमानत का सिद्धांत एक आरोपी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बीच की खाई को पाटने का प्रयास करता है और यह सुनिश्चित करता है कि सार्वजनिक व्यवस्था बरकरार रहे.

उन्होंने कहा, ‘यह गंभीर और हमारे संविधान में निहित सिद्धांतों के खिलाफ है कि किसी आरोपी को मुकदमे के लंबित रहने के दौरान सलाखों के पीछे रहने दिया जाए.’

पुलिस के अनुसार, 24 फरवरी 2020 को विभिन्न हथियारों के साथ मुख्य वजीराबाद रोड पर भीड़ बुलाई गई और वहां से हटने के पुलिस के आदेशों का पालन करने से इनकार कर दिया.

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू के द्वारा पुलिस ने तर्क दिया कि भीड़ जल्द ही नियंत्रण से बाहर हो गई और अधिकारियों पर पथराव शुरू कर दिया और 50 से अधिक कर्मचारियों को चोटें आईं, जबकि दिल्ली पुलिस के हेड कॉन्स्टेबल रतन लाल की गोली मारकर हत्या कर दी गई.

उन्होंने कहा कि विरोध हिंसक हो गया और आंदोलनकारियों ने आसपास के इलाकों में वाहनों और अन्य संपत्तियों को जला दिया.

हालांकि, अदालत ने कहा कि मामले में चौथा आरोप पत्र दायर किया गया है और इस मामले में सुनवाई में लंबा समय लगने की संभावना है, इसलिए आरोपी को अनिश्चितकाल के लिए सलाखों के पीछे रखना समझदारी नहीं है.

महिला आरोपी तबस्सुम की भूमिका के बारे में हाईकोर्ट ने कहा कि रिकॉर्ड से पता चलता है कि वह विरोध स्थल के आसपास किसी भी वीडियो फुटेज में नहीं दिखाई दे रही है. यह तर्क है कि बुर्का पहने कुछ महिलाओं को पुलिस अधिकारियों के साथ मारपीट करते पकड़ा गया है. इस समय इस वीडियो का कोई महत्व नहीं है, क्योंकि क्लिप में उनकी पहचान नहीं की जा सकती है.

मालूम हो कि उत्तर-पूर्वी दिल्ली में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के समर्थकों और विरोधियों के बीच हिंसा के बाद 24 फरवरी 2020 को सांप्रदायिक झड़पें शुरू हुई थीं, जिसमें 53 लोगों की मौत हो गई थी और 700 से अधिक लोग घायल हो गए थे.

इसी दौरान हिंसा में दिल्ली पुलिस के हेड कॉन्स्टेबल रतन लाल घायल हुए थे और बाद में उनकी मौत हो गयी. वे गोकुलपुरी थाने में तैनात थे.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25