उत्तर प्रदेश: केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त मदरसा शिक्षकों को चार सालों से नहीं मिल रहा वेतन

केंद्र सरकार द्वारा उत्तर प्रदेश में नियुक्त किए गए 21,000 से अधिक मदरसा शिक्षकों को चार साल से अधिक समय से वेतन नहीं मिला है. ग्रेजुएट शिक्षकों को प्रति महीने 6,000 रुपये और पोस्ट ग्रेजुएट शिक्षकों को प्रति माह 12,000 रुपये का मानदेय दिया जाता है.

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लखनऊ में प्रदर्शन करते मदरसा शिक्षक (फोटोः असद रिज़वी)

केंद्र सरकार द्वारा उत्तर प्रदेश में नियुक्त किए गए 21,000 से अधिक मदरसा शिक्षकों को चार साल से अधिक समय से वेतन नहीं मिला है. ग्रेजुएट शिक्षकों को प्रति महीने 6,000 रुपये और पोस्ट ग्रेजुएट शिक्षकों को प्रति माह 12,000 रुपये का मानदेय दिया जाता है.

लखनऊ में प्रदर्शन करते मदरसा शिक्षक (फोटोः असद रिज़वी)

लखनऊः केंद्र सरकार द्वारा उत्तर प्रदेश में नियुक्त किए गए 21,000 से अधिक मदरसा शिक्षकों को बीते 53 महीनों (चार साल से अधिक) से वेतन नहीं मिला है.

इन शिक्षकों को मदरसों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान कराने की योजना के तहत नियुक्त किया गया था. यह योजना धार्मिक स्कूलों में शिक्षा प्रणाली के आधुनिकीकरण के लिए 2009 में शुरू की गई थी.

शिक्षक संघ के मुताबिक, ‘इन शिक्षकों को वित्त वर्ष 2017-2018 से केंद्र सरकार द्वारा मानदेय का भुगतान नहीं किया गया है.’

मदरसा आधुनिकीकरण शिक्षक एकता समिति के अध्यक्ष अशरफ अली उर्फ सिकंदर ने द वायर  को बताया कि उन्हें चार साल से अधिक समय से मानदेय नहीं मिला है. शिक्षक रिक्शा चलाने और वेंडिंग (छोटी-मोटी चीजों के बिक्री का काम) जैसे काम कर रहे हैं.

उत्तर प्रदेश में इस योजना के तहत 7,742 मदरसे पंजीकृत हैं. शिक्षक यहां मदरसा के पाठ्यक्रम के अलावा विभिन्न विषय भी पढ़ाते हैं. हर मदरसे में दो-तीन शिक्षक को गैर धार्मिक विषय पढ़ाते हैं.

केंद्र एवं राज्य सरकारें इन शिक्षकों की शिक्षा और उनकी योग्यता के आधार पर मानदेय का भुगतान करती हैं. शिक्षकों को दो श्रेणियों ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट में बांटा गया है.

इस योजना को 2009 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार के दौरान शुरू किया गया था. पहले यह योजना मानव एवं संसाधन विकास मंत्रालय के तहत संचालित थी, लेकिन बाद में एक अप्रैल 2021 से यह अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के तहत संचालित है.

जब यह योजना अपने शुरुआती चरण में थी तो मानदेय का भुगतान केंद्र सरकार की ओर से किया जाता था, लेकिन वित्त वर्ष 2018-2019 में फंडिंग पैटर्न में बदलाव के बाद से केंद्र सरकार मानदेय राशि का सिर्फ 60 फीसदी हिस्से का ही भुगतान कर रही है, बाकी बचे 40 फीसदी हिस्से की व्यवस्था राज्य सरकारों द्वारा की जाती है.

इस योजना को शुरू करने का कारण मदरसे और मकतब जैसे पारंपरिक संस्थानों को प्रोत्साहित करना और उनके पाठ्यक्रमों में विज्ञान, गणित, सामाजिक विज्ञान, हिंदी और अंग्रेजी जैसे विषयों को शामिल करना है. हालांकि, आधुनिकीकरण की यह प्रक्रिया स्वैच्छिक है.

ग्रेजुएट शिक्षकों को प्रति महीने 6,000 रुपये जबकि पोस्ट ग्रेजुएट शिक्षकों को प्रति माह 12,000 रुपये का मानदेय दिया जाता है.

उत्तर प्रदेश सरकार योजना के तहत अपने हिस्से के भुगतान के साथ-साथ ग्रेजुएट शिक्षकों को प्रति महीने 2,000 रुपये और पोस्ट ग्रेजुएट शिक्षकों को प्रति माह 3,000 रुपये का अतिरिक्त भुगतान भी कर रही है.

इसका मतलब है कि ग्रेजुएट शिक्षकों को 6,000 रुपये की तुलना में प्रति महीने 8,000 रुपये और पोस्ट ग्रेजुएट शिक्षकों को 12,000 रुपये प्रति महीने की तुलना में 15,000 रुपये प्रति महीना मिलता है.

मानदेय नहीं मिलने और आय के वैकल्पिक स्रोतों की कमी की वजह से इनमें से कुछ शिक्षक कठिन आर्थिक स्थितियों का सामना कर रहे हैं.

बहराइच के मसूदिया-दारुल-उलूम में हिंदी पढ़ाने वाले सिकंदर कहते हैं, ‘मैं छात्रों को पढ़ाने के लिए रोजाना 22 से 25 किलोमीटर तक की यात्रा करता हूं, लेकिन मुझे पिछले कुछ सालों से एक पैसा नहीं मिला है. क्या यह हमारी मेहनत का मजाक नहीं है?’

बलरामपुर से एक अन्य शिक्षक रामप्रकाश वर्मा ने बताया, ‘सरकार की उदासीनता की वजह से कई शिक्षकों को सालों की सेवा देने के बाद नौकरी छोड़नी पड़ी. कई वित्तीय समस्याओं का सामना करते हुए गुजर गए. इसके बावजूद सरकार मदरसा शिक्षकों पर कई ध्यान नहीं दे रही है.’

दारुल-उलूम नूर-उल-इस्लाम में सामाजिक विज्ञान पढ़ा रहे वर्मा कहते हैं, ‘भाजपा के नेतृत्व में एनडीए सरकार ने योजना के लिए बजट में कटौती की और 2016 के बाद से सरकार फंड जारी नहीं कर रही. चार सालों के संघर्ष के बाद शिक्षकों को मार्च 2021 में सिर्फ 22 दिनों का वेतन मिला था. सरकार ने हमारा मजाक बनाकर रख दिया है.’

मुस्लिम मौलवियों ने भी सरकार के अनुचित व्यवहार को उजागर किया है.

मौलाना यासूब अब्बास ने शिक्षकों का समर्थन करते हुए कहा कि सरकार को तुरंत सभी शिक्षकों का बकाया वेतन जारी करना चाहिए. यासूब ने कहा, ‘सरकार मदरसे से पल्ला नहीं झाड़ सकती, क्योंकि देश के स्वतंत्रता संग्राम में इन मदरसों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है.’

हाल ही में मदरसा शिक्षकों ने लखनऊ जाकर राज्य के भाजपा मुख्यालय के पास प्रदर्शन किया था. हालांकि, पुलिस ने प्रदर्शनकारी शिक्षकों को वहां से हटा दिया था और उन्हें ईको पार्क भेज दिया था..

शिक्षकों ने जल्द ही बकाया वेतन मिलने के मदरसा बोर्ड के अधिकारियों के आश्वासन के बाद प्रदर्शन रद्द कर दिया था. अब शिक्षकों ने मांगें पूरी नहीं होने पर राज्य में बड़े पैमाने पर आंदोलन शुरू करने का फैसला किया है.

उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड ने स्वीकार किया कि केंद्र सरकार ने बीते कुछ सालों से राज्य में मदरसा शिक्षकों को उनके मानदेय का भुगतान नहीं किया है.

बोर्ड के रजिस्ट्रार आरपी सिंह ने द वायर को बताया, ‘बीते वित वर्ष में 2016-2017 के लिए केंद्र सरकार से 189 करोड़ रुपये मिले थे, जिनमें से लगभग 90 करोड़ रुपये राज्य ने मार्च 2021 तक के अपने हिस्से के रूप में दिया था.’

उन्होंने कहा, ‘इतनी कम धनराशि के साथ बोर्ड ने जहां तक संभव हो सका, इन शिक्षकों के वेतन भत्तों के भुगतान को मंजूरी दी.’

उन्होंने कहा, ‘राज्य प्रशासन ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर कहा है कि शिक्षकों का वेतन अभी भी बकाया है. हालांकि, बजट प्रावधान में कटौती की गई है तो ऐसे में बोर्ड शिक्षकों को मानदेय का भुगतान करने में असमर्थ है.’

(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

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