कोर्ट ने ईडी निदेशक के सेवा विस्तार को बरक़रार रखा, कहा- अब कार्यकाल न बढ़े

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सेवानिवृत्ति की आयु में पहुंच चुके अधिकारियों के कार्यकाल में विस्तार दुर्लभ और अपवाद वाले मामलों में किया जाना चाहिए. ईडी के निदेशक के तौर पर संजय कुमार मिश्रा के साल 2018 के नियुक्ति आदेश में पूर्व प्रभावी बदलाव को शीर्ष अदालत में चुनौती दी गई थी.

संजय कुमार मिश्रा. (फोटो साभार: ट्विटर/IRS Association)

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सेवानिवृत्ति की आयु में पहुंच चुके अधिकारियों के कार्यकाल में विस्तार दुर्लभ और अपवाद वाले मामलों में किया जाना चाहिए. ईडी के निदेशक के तौर पर संजय कुमार मिश्रा के साल 2018 के नियुक्ति आदेश में पूर्व प्रभावी बदलाव को शीर्ष अदालत में चुनौती दी गई थी.

संजय कुमार मिश्रा. (फोटो साभार: ट्विटर/IRS Association)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने संजय कुमार मिश्रा को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) का निदेशक नियुक्त करने के साल 2018 के आदेश में पूर्व प्रभावी बदलाव को चुनौती देने वाली एक गैर सरकारी संगठन की याचिका बीते बुधवार को खारिज कर दी.

न्यायालय ने कहा कि जिन मामलों की जांच चल रही है उन्हें पूरा करने के लिए उचित सेवा विस्तार दिया जा सकता है. हालांकि इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया कि मिश्रा के कार्यकाल में और विस्तार नहीं किया जा सकता है.

केंद्र के फैसले को बरकरार रखते हुए जस्टिस एल. नागेश्वर राव और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया कि सेवानिवृत्ति की आयु में पहुंच चुके अधिकारियों के कार्यकाल में विस्तार दुर्लभ और अपवाद वाले मामलों में किया जाना चाहिए.

न्यायालय ने कहा कि केंद्रीय सतर्कता कानून की धारा 25 के तहत गठित समिति द्वारा वजहों को दर्ज करने के बाद ही जिन मामलों की जांच चल रही है, उन्हें पूरा करने के लिए उचित सेवा विस्तार दिया जा सकता है.

पीठ ने कहा, ‘सेवानिवृत्ति की आयु में पहुंचने के बाद ईडी के निदेशक पद पर बैठे व्यक्तियों के कार्यकाल में विस्तार कम अवधि के लिए किया जाना चाहिए. हम इस मामले में दूसरे प्रतिवादी के पद में हस्तक्षेप नहीं करना चाहते, क्योंकि कार्यकाल नवंबर 2021 में खत्म हो रहा है. हम यह स्पष्ट करते हैं कि दूसरे प्रतिवादी को और सेवा विस्तार नहीं दिया जाए.’

गैर सरकारी संगठन ‘कॉमन कॉज’ ने प्रवर्तन निदेशालय के निदेशक के तौर पर मिश्रा के साल 2018 के नियुक्ति आदेश में पूर्व प्रभावी बदलाव को शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी.

इससे पहले उच्चतम न्यायालय ने इस याचिका पर केंद्र, केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) से जवाब मांगा था.

भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी मिश्रा को 19 नवंबर 2018 में एक आदेश जारी कर दो साल की अवधि के लिए ईडी का निदेशक नियुक्त किया गया और बाद में 13 नवंबर 2020 को एक आदेश के जरिये केंद्र सरकार ने नियुक्ति पत्र में पूर्व प्रभावी बदलाव किया और उनके दो साल के कार्यकाल को बढ़ाकर तीन साल कर दिया गया.

एनजीओ की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने कहा था कि मिश्रा को कोई सेवा विस्तार नहीं दिया जा सकता, क्योंकि वह मई 2020 में 60 वर्ष के हो गए और ऐसे गैरकानूनी विस्तार का असर निदेशक कार्यालय की स्वतंत्रता को ‘नष्ट करने’ पर हो सकता है.

13 नवंबर 2020 के कार्यालय आदेश को रद्द करने का अनुरोध करते हुए एनजीओ ने केंद्रीय वित्त मंत्रालय को पारदर्शी तरीके और केंद्रीय सतर्कता आयोग कानून, 2003 की धारा 25 को सख्ती से लागू करते हुए ईडी में निदेशक नियुक्त करने का निर्देश देने का भी अनुरोध किया था.

सरकार के 2018 के आदेश में बदलाव करने और मिश्रा का कार्यकाल एक और साल तक बढ़ाने का फैसला करने के तुरंत बाद एनजीओ ने उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था.

ईडी दो केंद्रीय कानूनों- मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम (पीएमएलए) और विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा) को लागू करता है.

यह एजेंसी सीबीआई द्वारा दर्ज कई हाई प्रोफाइल बैंक फ्रॉड और काला धन के मामलों की जांच कर रही है. इसके अलावा ईडी राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा दर्ज टेरर फंडिंग जैसे मामलों को लेकर संपत्ति जब्त करने का भी काम करता है.

मिश्रा ने आईपीएस ऑफिसर करनाल सिंह के रिटायर होने के बाद इस पद का कार्यभार संभाला था.

नवंबर 2020 में द वायर ने रिपोर्ट कर बताया था कि किस तरह मिश्रा की अगुवाई में ईडी विपक्षी नेताओं के खिलाफ कई मामलों की जांच कर रही है. इसमें ऐसे तमाम मामलों का विवरण दिया गया था.

ईडी के अधीन सबसे हाई-प्रोफाइल मामलों में से एक महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक (एमएससीबी) में 2,500 करोड़ रुपये का ऋण धोखाधड़ी का मामला है. इसे लेकर मुंबई पुलिस ने बॉम्बे हाईकोर्ट के निर्देश पर अगस्त 2019 में एफआईआर दर्ज की थी. पहले इस केस की जांच आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) द्वारा किया जा रहा था.

एजेंसी ने बैंक के निदेशक अजीत पवार, जो राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) प्रमुख शरद पवार के भतीजे और महाराष्ट्र के पूर्व उपमुख्यमंत्री हैं, और बैंक के 70 पूर्व पदाधिकारियों के खिलाफ आरोपों के संबंध में शरद पवार को समन भेजा था.

ईडी का एक बेहद हाई प्रोफाइल केस आईएमएक्स मीडिया मामला है, जो फेमा के तहत विदेशी लेन-देन के उल्लंघन से जुड़ा हुआ है. सीबीआई ने इस मामले में पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम को गिरफ्तार किया था. चिदंबरम के बेटे कार्ति चिदंबरम भी इस मामले में आरोपी हैं.

ईडी मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में कर्नाटक कांग्रेस प्रमुख डॉ. डीके शिवकुमार के भी पीछे लगी हुई है. सीबीआई द्वारा चिदंबरम को गिरफ्तार किए जाने के दो हफ्ते बाद ईडी ने सितंबर 2019 में शिवकुमार को भी गिरफ्तार किया था.

इसे लेकर आयकर विभाग ने उनके घर पर छापा भी मारा था और घर से कैश बरामद करने का दावा किया था. चिदंबरम और शिवकुमार को दिल्ली के तिहाड़ जेल में बंद किया गया था.

चिदंबरम की गिरफ्तारी को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा बदला लेने के रूप में देखा गया, क्योंकि जब चिदंबरम गृह मंत्री थे, तब जुलाई 2010 में सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ मामले में शाह को गिरफ्तार किया गया था.

हीं शिवकुमार ने कर्नाटक कांग्रेस को पुनर्जीवित करने प्रमुख भूमिका निभाई है और भविष्य में उन्हें मुख्यमंत्री का प्रबल दावेदार के रूप में देखा जा रहा है.

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वाड्रा भी कई जमीन खरीद मामले में कथित अनियमितताओं के आरोप  की जांच ईडी की निगरानी में हैं. ईडी ने वाड्रा की स्काइलाइट हॉस्पिटैलिटी पर कम से कम आठ बार छापा मारा है और उनकी संपत्ति को अटैच किया है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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