सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद केंद्र ने कोरोना से मृत्यु दस्तावेज़ के लिए दिशानिर्देश जारी किए

केंद्र द्वारा जारी दिशानिर्देशों के अनुसार, इसमें कोविड-19 के सिर्फ़ उन मामलों को गिना जाएगा, जिनका पता आरटी-पीसीआर जांच से, मॉलीक्यूलर जांच से, रैपिड-एंटीजन जांच से या किसी अस्पताल में क्लीनिकल तरीके से किया गया है. ज़हर का सेवन करने से मृत्यु, आत्महत्या, दुर्घटना के कारण मौत जैसे कारकों को कोविड-19 से मृत्यु नहीं माना जाएगा, भले की कोविड-19 एक पूरक कारक हो.

(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

केंद्र द्वारा जारी दिशानिर्देशों के अनुसार, इसमें कोविड-19 के सिर्फ़ उन मामलों को गिना जाएगा, जिनका पता आरटी-पीसीआर जांच से, मॉलीक्यूलर जांच से, रैपिड-एंटीजन जांच से या किसी अस्पताल में क्लीनिकल तरीके से किया गया है. ज़हर का सेवन करने से मृत्यु, आत्महत्या, दुर्घटना के कारण मौत जैसे कारकों को कोविड-19 से मृत्यु नहीं माना जाएगा, भले की कोविड-19 एक पूरक कारक हो.

(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट की कड़ी फटकार के बाद केंद्र ने उच्चतम न्यायालय से कहा है कि स्वास्थ्य मंत्रालय और भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने कोविड से संबंधित मृत्यु के मामलों में ‘आधिकारिक दस्तावेज’ के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं.

शीर्ष अदालत में दाखिल हलफनामे में केंद्र ने यह भी कहा कि भारत के महापंजीयक कार्यालय ने तीन सितंबर को मृतकों के परिजनों को मृत्यु के कारण का चिकित्सा प्रमाण-पत्र प्रदान करने के लिए परिपत्र जारी किया था.

सरकार ने अपने हलफनामे में कहा कि रीपक कंसल बनाम भारत संघ और अन्य मामलों में 30 जून, 2021 की तारीख के फैसले के सम्मानजनक अनुपालन में दिशानिर्देश और परिपत्र जारी किए गए हैं.

शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि कोविड संबंधी मृत्यु प्रमाण-पत्र जारी करने के लिए दिशानिर्देश जारी किए जाएं.

शीर्ष अदालत का ये फैसला वकील रीपक कंसल और गौरव कुमार बंसल द्वारा दायर दो अलग-अलग याचिकाओं पर आया था, जिसमें कोरोनो वायरस पीड़ितों के परिवारों को चार लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश देने की मांग की गई थी.

इस मामले को लेकर केंद्र ने कहा था कि राज्य सरकारें चार लाख रुपये का मुआवजा नहीं दे सकती हैं. सरकार ने इसे लेकर ‘व्यापक दृष्टिकोण’ अपनाने की मांग की थी.

केंद्र द्वारा जारी दिशानिर्देशों के अनुसार, इसमें कोविड-19 के उन मामलों को गिना जाएगा, जिनका पता आरटी-पीसीआर जांच से, मॉलीक्यूलर जांच से, रैपिड-एंटीजन जांच से या किसी अस्पताल में क्लीनिकल तरीके से किए गए परीक्षणों से किया गया है.

इनमें कहा गया कि जहर का सेवन करने से मृत्यु, आत्महत्या, दुर्घटना के कारण मौत जैसे कारकों को कोविड-19 से मृत्यु नहीं माना जाएगा, भले की कोविड-19 एक पूरक कारक हो.

भारत के महापंजीयक सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्य रजिस्ट्रारों को इस संबंध में जरूरी दिशानिर्देश जारी करेंगे.

आईसीएमआर के एक अध्ययन के अनुसार 95 फीसदी मौतें व्यक्ति के कोविड-19 पॉजिटिव आने के 25 दिनों के भीतर होती हैं. यह दिशानिर्देशों में उल्लेख किया गया था.

सरकार ने कहा कि कोविड रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद अगर 30 दिन के भीतर किसी मरीज की मौत हो जाती है, तो उसे कोविड मृत्यु माना जाएगा, भले ही वो मौत अस्पताल में हुई हो या घर पर. केंद्र ने यह भी कहा कि अगर किसी मरीज की मौत 30 दिन बाद होती है तो उसे भी दिशानिर्देशों के अनुसार कोरोना मौत ही माना जाएगा.

दिशानिर्देशों में कहा गया है कि ऐसे मामलों में जहां मृत्यु के कारणों का चिकित्सा प्रमाण पत्र (एमसीसीडी) उपलब्ध नहीं है या मृतक के परिजन एमसीसीडी में दी गई मौत के कारण से संतुष्ट नहीं हैं, ऐसी स्थिति में राज्य और केंद्रशासित प्रदेश जिला स्तर पर एक समिति बनाएंगे, जो मामले का समाधान करेगी.

इस समिति में एक अतिरिक्त जिला कलेक्टर, एक मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओएच), एक अतिरिक्त सीएमओएच/प्रिंसिपल या मेडिकल कॉलेज के चिकित्सा विभाग के प्रमुख (यदि कोई जिले में मौजूद है) और एक विषय विशेषज्ञ शामिल होंगे.

पीड़ित परिवार इस समिति के यहां आवेदन करेंगे, जिस पर विचार-विमर्श के बाद समिति कोविड-19 का उपयुक्त मृत्यु प्रमाण-पत्र जारी करेगी.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)