केंद्र ने राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण, आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण और सशस्त्र बल अधिकरण में विभिन्न पदों के लिए नियुक्ति की है. ये नियुक्तियां ऐसे समय में भी हुई हैं जब सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए चिंता जताई है कि केंद्र सरकार कर्मचारियों की कमी का सामना कर रहे न्यायाधिकरणों में नियुक्ति न करके उन्हें ‘निष्क्रिय’ कर रही है.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न न्यायाधिकरणों में रिक्तियों को लेकर चिंता जताने के बीच सरकार ने एनसीएलटी और आईटीएटी में 31 लोगों को न्यायिक, तकनीकी और लेखाकार सदस्यों के रूप में नियुक्त किया है. इसके अलावा सशस्त्र बल अधिकरण (एएफटी) में छह सदस्यों की नियुक्ति हुई है.
राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) मुख्य रूप से कंपनी कानून और दिवाला कानून से संबंधित मामलों को देखता है, जबकि आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण (आईटीएटी) आयकर मामलों से संबंधित है.
ये नियुक्तियां ऐसे समय में भी हुई हैं जब सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए चिंता जताई है कि केंद्र सरकार कर्मचारियों की कमी का सामना कर रहे अर्ध-न्यायिक निकायों में अधिकारियों की नियुक्ति न करके उन न्यायाधिकरणों को ‘निष्क्रिय’ कर रही है.
गौरतलब है कि एनसीएलटी, ऋण वसूली न्यायाधिकरण (डीआरटी), दूरसंचार विवाद समाधान एवं अपील अधिकरण (टीडीएसएटी) और एसएटी (सैट) जैसे विभिन्न प्रमुख न्यायाधिकरणों और अपीलीय न्यायाधिकरणों में लगभग 250 पद खाली पड़े हैं.
मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति के फैसलों के आधार पर कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग द्वारा 11 सितंबर को जारी अलग-अलग आदेश के अनुसार, एनसीएलटी में आठ न्यायिक और 10 तकनीकी सदस्यों को नियुक्त किया गया है, जबकि आईटीएटी में छह न्यायिक और सात लेखाकार सदस्यों को नियुक्त किया गया है.
आंध्र हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस टी. रजनी, बॉम्बे हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश प्रदीप नरहरि देशमुख, मद्रास हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश एस. रामतिलगम और जिला न्यायालय के न्यायाधीश दीपचंद्र जोशी एनसीएलटी में नियुक्त किए गए आठ न्यायिक सदस्यों में शामिल हैं.
एनसीएलटी के नवनियुक्त 10 तकनीकी सदस्यों में प्रधान आयकर आयुक्त अजय दास मेहरोत्रा, एनएचपीसी के सेवानिवृत्त सीएमडी बलराज जोशी, पंचायती राज मंत्रालय के सेवानिवृत्त सचिव राहुल प्रसाद भटनागर, सेवानिवृत्त प्रधान आयकर महानिदेशक सुब्रत कुमार दास, उपभोक्ता कार्य विभाग के सेवानिवृत्त सचिव अविनाश के. श्रीवास्तव और भारतीय स्टेट बैंक के सेवानिवृत्त मुख्य महाप्रबंधक श्रीप्रकाश सिंह सहित अन्य शामिल हैं.
वहीं आईटीएटी में नियुक्त किए गए छह न्यायिक सदस्यों में अधिवक्ता संजय सरमा, एस. सीतालक्ष्मी एवं टीआर सेंथिल कुमार, अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश- शतिन गोयल एवं अनुभव शर्मा, और भारतीय स्टेट बैंक के कानून अधिकारी मनोहर दास शामिल हैं.
आईटीएटी में नियुक्त किए गए सात लेखाकार सदस्यों में चार्टर्ड एकाउंटेंट भागीरथ मल बियाणी, बालकृष्णन एस, जेडी बट्टुली, पद्मावती एस, अरुण खोडपिया एवं आरके जयंतभाई, और आयकर आयुक्त आरडी पांडुरंग शामिल हैं.
एनसीएलटी में नियुक्तियां पदभार संभालने की तारीख से पांच साल की अवधि तक या 65 साल की आयु तक या अगले आदेश तक के लिए होंगी. वहीं आईटीएटी में नियुक्तियां चार साल की अवधि के लिए की गई हैं.
इसी तरह एएफटी में नियुक्त किए गए व्यक्तियों में जस्टिस बाला कृष्णा नारायणा, जस्टिस शशिकांत गुप्ता, जस्टिस राजीव नारायण रैना, जस्टिस के. हरिलाला, जस्टिस धरम चंद चौधरी और जस्टिस अंजना मिश्रा शामिल हैं.
ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स एक्ट, 2021 के तहत इनका कार्यकाल चार सालों या 67 साल की उम्र तक रखा गया है.
मालूम हो कि इस मामले की पिछली सुनवाई (छह सितंबर) के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा था कि केंद्र न्यायाधिकरणों में अधिकारियों की नियुक्ति न करके इन अर्द्ध न्यायिक संस्थाओं को ‘शक्तिहीन’ कर रहा है.
न्यायालय ने कहा था कि न्यायाधिकरण पीठासीन अधिकारियों, न्यायिक सदस्यों एवं तकनीकी सदस्यों की गंभीर कमी से जूझ रहे हैं.
मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एल. नागेश्वर राव की तीन सदस्यीय विशेष पीठ ने इस बात पर जोर दिया था कि वह केंद्र सरकार के साथ किसी तरह का टकराव नहीं चाहती, लेकिन वह चाहती है कि बड़ी संख्या में रिक्तियों का सामना कर रहे न्यायाधिकरणों में केंद्र नियुक्तियां करे.
सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर भी नाराजगी जताई कि मोदी सरकार ने न्यायाधिकरण सुधार अधिनियम, 2021 के जरिये उन प्रावधानों को भी बहाल कर दिया है, जिसे पूर्व में सर्वोच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया था.
कोर्ट ने कहा था कि एक न्यायाधिकरण के अध्यक्ष का कार्यकाल पांच वर्ष या जब तक वह 70 वर्ष की आयु प्राप्त नहीं कर लेता है और अधिकरण के सदस्य का कार्यकाल पांच वर्ष या उसके 67 वर्ष की आयु प्राप्त करने तक का होगा.
इसी तरह कोर्ट ने जुलाई 2021 के अपने फैसले में कहा था कि नियुक्ति के लिए न्यूनतम आयु 50 वर्ष तय करना असंवैधानिक है. हालांकि ये सारे प्रावधान नए कानून में जोड़ दिए गए हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)