पंजाब में दलित समुदाय के व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनाया जाना कांग्रेस का चुनावी हथकंडा: मायावती

बसपा सुप्रीमो मायावती ने कहा कि मीडिया के ज़रिये पता चला है कि पंजाब में आगामी विधानसभा चुनाव चरणजीत सिंह चन्नी के नेतृत्व में नहीं, बल्कि ग़ैर-दलित के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा, जिससे यह साफ़ ज़ाहिर है कि कांग्रेस को अब भी दलितों पर पूरा भरोसा नहीं है. ‘जातिवादी दल’ दलितों को जो भी दे रहे हैं, वह उनके वोट पाने के लिए और स्वार्थ सिद्धि के लिए है, न कि उनके उत्थान के लिए. दलितों को इससे सावधान रहना चाहिए.

बसपा सुप्रीमो मायावती. (फोटो: पीटीआई)

बसपा सुप्रीमो मायावती ने कहा कि मीडिया के ज़रिये पता चला है कि पंजाब में आगामी विधानसभा चुनाव चरणजीत सिंह चन्नी के नेतृत्व में नहीं, बल्कि ग़ैर-दलित के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा, जिससे यह साफ़ ज़ाहिर है कि कांग्रेस को अब भी दलितों पर पूरा भरोसा नहीं है. ‘जातिवादी दल’ दलितों को जो भी दे रहे हैं, वह उनके वोट पाने के लिए और स्वार्थ सिद्धि के लिए है, न कि उनके उत्थान के लिए. दलितों को इससे सावधान रहना चाहिए.

बसपा सुप्रीमो मायावती (फोटो: पीटीआई)

लखनऊ/नई दिल्ली: पंजाब में चरणजीत सिंह चन्नी के पहले दलित मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लिए जाने के बाद बहुजन समाज पार्टी (बसपा) अध्यक्ष मायावती ने सोमवार को इसे कांग्रेस का ‘चुनावी हथकंडा’ करार दिया और कहा कि दलितों को इससे सावधान रहना चाहिए.

पंजाब में आगामी विधानसभा चुनाव के लिए शिरोमणि अकाली दल (शिअद) से गठबंधन करने वाली बसपा की प्रमुख ने पत्रकारों से कहा कि चाहे पंजाब हो या उत्तर प्रदेश या अन्य कोई राज्य, ‘जातिवादी दल’ दलितों को जो भी दे रहे हैं, वह उनके वोट पाने के लिए और स्वार्थ सिद्धि के लिए है, न कि उनके (दलितों) उत्थान के लिए.

उन्होंने कहा, ‘पंजाब में दलित समुदाय के व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनाया जाना चुनावी हथकंडा है, इसके सिवाय कुछ नहीं है. मीडिया के जरिये मुझे आज पता चला है कि पंजाब में आगामी विधानसभा चुनाव चन्नी के नेतृत्व में नहीं, बल्कि गैर दलित के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा, जिससे यह साफ जाहिर है कि कांग्रेस को अब भी दलितों पर पूरा भरोसा नहीं है.’

सोमवार को जारी एक बयान में मायावती ने कहा, ‘पंजाब में आज करीब पांच महीने के लिए दलित वर्ग से बनाए गए मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं, लेकिन यह बेहतर होता यदि कांग्रेस पार्टी पहले ही इनको पूरे पांच वर्ष के लिए यहां का मुख्यमंत्री बना देती, किंतु अब कुछ ही समय के लिए इनको पंजाब का मुख्यमंत्री बनाना इनका कांग्रेस कोरा चुनावी हथकंडा है, इसके सिवा और कुछ भी नहीं है.’

बसपा प्रमुख ने कांग्रेस पर हमला बोलते हुए कहा, ‘दलित वर्ग के लोगों को उसके (कांग्रेस) दोहरे चाल-चरित्र से बहुत सावधान रहना चाहिए. मुझे पूरा भरोसा है कि पंजाब के दलित वर्ग के लोग इस हथकंडे में कतई नहीं आएंगे.’

उन्होंने कहा कि कांग्रेस पंजाब विधानसभा चुनाव के लिए अकाली दल व बसपा के बीच हुए गठबंधन से बहुत ज्यादा घबराई हुई है.

उल्लेखनीय है कि बसपा और अकाली दल ने पंजाब में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए गत जून में गठबंधन किया था. अकाली दल प्रमुख सुखबीर सिंह बादल ने घोषणा की थी कि यदि उनका गठबंधन जीतता है तो दलित समुदाय से उप-मुख्यमंत्री बनाया जाएगा.

उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा, ‘हकीकत यह है कि इनको (कांग्रेस) व अन्य विरोधी पार्टियों को मुसीबत में या मजबूरी में ही दलित लोग याद आते हैं.’

डॉ. भीमराव आंबेडकर का संदर्भ देते हुए मायावती ने कहा कि अंग्रेजों के भारत छोड़कर जाने के बाद ‘कांग्रेस के पास यदि कोई और ज्यादा काबिल आदमी होता तो वह किसी भी कीमत पर बाबा साहेब को भारतीय संविधान बनाने में शामिल नहीं करती.’

उन्होंने कहा, ‘दलितों, आदिवासियों, और अन्य पिछड़ा वर्ग को जो कानूनी अधिकार मिले, वे तब संभव नहीं हो पाते. यहां तक कि धार्मिक अल्पसंख्यकों, खासकर मुसलमानों को भी जो सुरक्षा मिली है, वह सिर्फ इसलिए क्योंकि आंबेडकर ने भारतीय संविधान को जाति या धर्म के आधार पर नहीं, बल्कि धर्मनिरपेक्षता के आधार पर तैयार किया.’

मायावती ने कहा कि पंजाब की तरह ही उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कुछ समय बचा है और यहां भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का ओबीसी समाज के प्रति नया प्रेम उभरा है जो ‘दिखावटी तथा हवाहवाई है.’

उन्होंने कहा, ‘अगर यह प्रेम सच्चा होता तो ये (भाजपा) केंद्र व राज्यों में अपनी सरकारें होने के कारण सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (एससी व एसटी) के बैकलॉग को भर देते और जाति आधारित जनगणना की मांग को स्वीकार कर लेते. आज भी एससी/एसटी का मामला हो या ओबीसी का, सरकारी नौकरियों में इनके पद अभी भी खाली पड़े हैं.’

बसपा अध्यक्ष ने कहा, ‘भाजपा और अन्य जातिवादी दल जाति आधारित जनगणना की बात से डरते हैं, क्योंकि उनके लोगों ने उस समय हिंसक प्रदर्शन किया था जब मंडल आयोग की सिफारिशें लागू की गई थीं.’

मायावती ने कहा, ‘दलितों की तरह अन्य पिछड़ा वर्ग के लोग भी कांग्रेस, भाजपा या किसी अन्य जातिवादी दल के झांसे में नहीं आएंगे, क्योंकि वे जानते हैं कि उन्हें जो भी मिला है, आंबेडकर के प्रयासों से मिला है.’

उन्होंने कहा कि उन्हें पूरा विश्वास है कि उत्तर प्रदेश, पंजाब या अन्य किसी राज्य में दलित या पिछड़ा समुदाय के लोग इस तरह के झांसे में नहीं आएंगे.

कांग्रेस विधायक दल के नेता चरणजीत सिंह चन्नी ने बीते  सोमवार को चंडीगढ़ स्थित पंजाब राजभवन में कांग्रेस नेता राहुल गांधी की उपस्थिति में पंजाब के 27वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. चन्नी पंजाब में मुख्यमंत्री बनने वाले दलित समुदाय के पहले व्यक्ति हैं.

बीते 18 सितंबर को अमरिंदर सिंह के इस्तीफा देने के बाद चरणजीत सिंह चन्नी को कांग्रेस विधायक दल का नया नेता चुना गया.

पंजाब के मालवा क्षेत्र के रूपनगर जिले से ताल्लुक रखने वाले चन्नी को विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले मुख्यमंत्री बनाना कांग्रेस का काफी अहम कदम है, क्योंकि राज्य की आबादी में लगभग 32 प्रतिशत लोग दलित समुदाय से हैं.

उनके साथ डेरा बाबा नानक से विधायक सुखजिंदर सिंह रंधावा और अमृतसर सेंट्रल से विधायक ओम प्रकाश सोनी ने राज्य के उप-मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. रंधावा जाट सिख और सोनी हिंदू समुदाय से आते हैं.

चन्नी पंजाब के मालवा क्षेत्र से हैं, जबकि रंधावा और सोनी दोनों राज्य के माझा क्षेत्र से हैं. एक दलित को मुख्यमंत्री, एक जाट सिंह और एक हिंदू को उप-मुख्यमंत्री बनाकर कांग्रेस ने जाति संतुलन बनाए रखने की कोशिश की है.

चन्नी दलित सिख (रामदासिया सिख) समुदाय से आते हैं और अमरिंदर सरकार में तकनीकी शिक्षा मंत्री थे. वह रूपनगर जिले के चमकौर साहिब विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं. वह इस क्षेत्र से साल 2007 में पहली बार विधायक बने और इसके बाद लगातार जीत दर्ज की.

वह शिरोमणि अकाली दल-भाजपा गठबंधन के शासनकाल के दौरान साल 2015-16 में विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी थे.

58 वर्षीय चन्नी का चुना जाना भले आश्चर्यजनक विकल्प प्रतीत होता है, लेकिन यह सुविचारित निर्णय हो सकता है, क्योंकि पार्टी को आशा है कि मुख्यमंत्री पद के लिए दलित वर्ग से नेता के चयन का विरोध नहीं होगा और अमरिंदर सिंह की नाराजगी से हुए संभावित नुकसान की भरपाई हो जाएगी.

अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले केंद्र में आई जातिवाद की राजनीति

पंजाब के मुख्यमंत्री के रूप में दलित नेता चरणजीत सिंह चन्नी के शपथ लेने के साथ ही 2022 में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले जातिवाद देश की राजनीति के केंद्र में आ गया है. चन्नी को मुख्यमंत्री बनाए जाने को न सिर्फ पंजाब बल्कि अन्य राज्यों के लिए भी महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है.

चरणजीत सिंह चन्नी. (फोटो: पीटीआई)

अगले साल की शुरुआत में पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर विधानसभा के चुनाव होने हैं.

कांग्रेस ने उत्तर भारत के किसी राज्य में पहली बार अनुसूचित जाति के व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनाकर ऐसा दांव चला है, जिसकी चर्चा राजनीतिक हलकों में हावी होती दिख रही है. लगभग सभी दलों के नेताओं ने उनकी नियुक्ति का स्वागत किया है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की अध्यक्ष मायावती, समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव, और आम आदमी पार्टी के नेता भगवंत मान ने मुख्यमंत्री बनने पर चन्नी को बधाई दी, जबकि भारतीय जनता पार्टी और बसपा ने कांग्रेस को चेताते हुए कहा कि उसका यह कदम सिर्फ दलितों का वोट हासिल करने के लिए महज राजनीतिक हथकंडा नहीं होना चाहिए.

एक दलित को मुख्यमंत्री के रूप में पेश करने के कांग्रेस के फैसले को सबसे पहली चुनौती कांग्रेस के ही भीतर से आई जब पार्टी की पंजाब इकाई के पूर्व अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने पार्टी महासचिव व राज्य के प्रभारी हरीश रावत के उस बयान पर सवाल उठा दिए, जिसमें उन्होंने कहा था कि 2022 का पंजाब विधानसभा चुनाव प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के नेतृत्व में लड़ा जाएगा.

जाखड़ ने ट्वीट किया, ‘चरणचीत सिंह चन्नी के पंजाब के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण करने के दिन, श्री रावत का ‘सिद्धू के नेतृत्व में चुनाव लड़ने का बयान’ काफी चौंकाने वाला है. यह न केवल मुख्यमंत्री के अधिकारों को कमजोर कर सकता है, बल्कि इस पद के लिए उनके चयन के कारणों को भी नकारेगा.’

जाखड़ के इस ट्वीट ने भाजपा सहित अन्य विपक्षी दलों को कांग्रेस पर हमला करने का मौका दे दिया. इन दलों ने चन्नी को मुख्यमंत्री बनाए जाने की कांग्रेस की मंशा पर ही सवाल खड़े कर दिए.

कांग्रेस पर हमला करते हुए भाजपा आईटी सेल के मुखिया अमित मालवीय ने कहा, ‘पंजाब में एक दलित को नाइट वाचमैन के रूप में मुख्यमंत्री बनाया गया है, जब तक गांधी परिवार के विश्वासपात्र नवजोत सिंह सिद्धू मुख्यमंत्री नहीं बन जाते.’

दलित को मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद ऐसा माना जा रहा है कि कांग्रेस ने अपने विरोधियों पर बढ़त बना ली है वहीं राजनीतिक जानकारों का मानना है कि देश की राजनीति में जातिगत समीकरण के महत्व को देखते हुए कांग्रेस के लिए एक दलित को शीर्ष पद से हटाना आसान नहीं होगा.

आम आदमी पार्टी ने और बसपा के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रहे शिरोमणि अकाली दल ने घोषणा की है कि यदि उनकी पार्टी या गठबंधन सत्ता में आता है तो वह किसी दलित को उप-मुख्यमंत्री बनाएंगे.

भाजपा नेता मालवीय ने आरोप लगाया कि दलित ‘कांग्रेस की कुटिल राजनीति में सिर्फ राजनीतिक मोहरे हैं’.

उन्होंने कहा कि वह दावा करती है कि उसने एक दलित को मुख्यमंत्री बनाया है, लेकिन राजस्थान में जब एक दलित युवक की भीड़ द्वारा हत्या कर दी जाती है, तब उस पर वह चुप रहती है.

कांग्रेस ने पलटवार करते हुए सवाल किया कि भाजपा ने पार्टी शासित राज्यों में किसी दलित को क्यों नहीं मुख्यमंत्री बनाया.

कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा, ‘चरणजीत सिंह चन्नी आज भारत में एकमात्र दलित मुख्यमंत्री हैं. एक दलित मुख्यमंत्री पर हमला करके भाजपा को खुशी हो रही है, लेकिन क्या वह बता सकती है कि एक दलित को मुख्यमंत्री बनाए जाने से उसके पेट में क्यों दर्द हो रहा है?’

कांग्रेस नेता ने चन्नी को मुख्यमंत्री बनाए जाने को ऐतिहासिक करार दिया और कहा कि वह जमीन से उठे नेता रहे हैं, जिन्होंने अपने पिता के साथ मैला ढोने का काम किया और आज वह पंजाब के मुख्यमंत्री हैं.

उन्होंने कहा, ‘यह दर्शाता है कि हमारे द्वार गरीबों और पिछड़ों के लिए हमेशा खुले हुए हैं.’

कांग्रेस ने साथ ही भाजपा पर आरोप लगाया कि वह उत्तर प्रदेश में धर्म की राजनीति कर रही है. सुरजेवाला ने कहा कि चन्नी मुख्यमंत्री के तौर पर और सिद्धू प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रूप में पार्टी का चेहरा होंगे.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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