आज़ादी का अमृत महोत्सव: सुप्रीम कोर्ट के ईमेल में प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीर पर विवाद

अगले साल स्वतंत्रतता के 75 वर्ष पूरे होने के मौके पर ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ नाम के कार्यक्रम का केंद्र सरकार देशभर में प्रचार कर रही है. सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री की ओर से महोत्सव को लेकर वकीलों को भेजे गए ईमेल के निचले हिस्से में प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीर लगी थी. इस पर एक वकील की ओर से कहा गया था कि यह तस्वीर स्वतंत्र निकाय के रूप में सुप्रीम कोर्ट की स्थिति और सरकार का हिस्सा न होने के अनुरूप प्रतीत नहीं होती है.

(प्रतीकात्मक तस्वीर साभार: https://amritmahotsav.nic.in/)

अगले साल स्वतंत्रतता के 75 वर्ष पूरे होने के मौके पर ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ नाम के कार्यक्रम का केंद्र सरकार देशभर में प्रचार कर रही है. सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री की ओर से महोत्सव को लेकर वकीलों को भेजे गए ईमेल के निचले हिस्से में प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीर लगी थी. इस पर एक वकील की ओर से कहा गया था कि यह तस्वीर स्वतंत्र निकाय के रूप में सुप्रीम कोर्ट की स्थिति और सरकार का हिस्सा न होने के अनुरूप प्रतीत नहीं होती है.

(प्रतीकात्मक तस्वीर साभार: https://amritmahotsav.nic.in/)

नई दिल्लीः अगले साल स्वतंत्रतता के 75 वर्ष पूरे होने के मौके पर ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ अभियान के छह महीने पहले लॉन्च होने के साथ ही केंद्र सरकार देशभर में इस आयोजन का प्रचार कर रही है. लेकिन इस कार्यक्रम के विज्ञापनों में प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीर लगी होने को लेकर विवाद खड़ा हो गया है.

दरअसल सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री की ओर से वकीलों को भेजे गए ईमेल के फुटर (निचले हिस्से) में प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीर लगी है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, कई वकीलों ने पुष्टि की है कि प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीर भेजे गए ईमेल के फुटर में इस्तेमाल किया गया है, जिसने न्यायपालिका और कार्यपालिका को अलग करने वाली रेखा को धुंधला कर दिया है.

इसके बाद रजिस्ट्री ने बीते 17 सितंबर को देर शाम बयान जारी कर कहा कि सुप्रीम कोर्ट को ईमेल सेवा मुहैया कराने वाले राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (नेशनल इंफॉरमेटिक्स सेंटर- एनआईसी) को ईमेल के फुटर में उपयोग में लाई गई तस्वीर को हटाने का निर्देश दिया गया है.

बयान में कहा गया, ‘इसके बजाय सुप्रीम कोर्ट की तस्वीर का इस्तेमाल करने का निर्देश दिया गया. एनआईसी तब से निर्देशों का पालन कर रहा है.’

सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन के वॉट्सऐप ग्रुप पर एक संदेश में एक वकील द्वारा विज्ञापनों पर की गई टिप्पणी के बाद यह बयान जारी किया गया.

संदेश में कहा गया था, ‘सर, मुझे रजिस्ट्री से यह नोटिस मिला है, जिसमें प्रधानमंत्री की तस्वीर लगी है. यह स्वतंत्र निकाय के रूप में सुप्रीम कोर्ट की स्थिति और सरकार का हिस्सा न होने के अनुरूप प्रतीत नहीं होती है. आपसे अनुरोध है कि इसका विरोध करते हुए मामले को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के समक्ष उठाएं.’

सुप्रीम कोर्ट के महासचिव संजीव एस. कलगांवकर ने कहा कि वह इस तरह की घटनाओं से वाकिफ नहीं हैं.

एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन के सचिव जोसेफ एरिस्टोटल ने कहा कि वकीलों से औपचारिक शिकायत मिलने के बाद आगे की कार्रवाई की योजना बनाई जाएगी.

एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड (एओआर) ऐसे वकील होते हैं जो सुप्रीम कोर्ट में पैरवी करने के योग्य होते हैं. केवल एओआर ही सुप्रीम कोर्ट में मामला दर्ज कर सकता है. रजिस्ट्री अदालत के बैंक-एंड संचालन को संभालती है और मामलों की स्थिति पर एओआर के साथ संवाद करती है.

इस संबंध में बात करने पर एनआईसी के एक अधिकारी ने बताया, ‘इस स्क्रिप्ट का उपयोग एनआईसी के सभी प्लेटफार्मों में किया जाता है. आज हमने इसे सुप्रीम कोर्ट के प्लेटफॉर्म से हटाने के लिए कदम उठाए हैं. इसके पहले गांधी जयंती से संबंधित एक मैसेज का इस्तेमाल किया जा रहा था.’

इसके कुछ घंटों बाद रजिस्ट्री ने बयान जारी कर कहा, ‘देर शाम इसे रजिस्ट्री के संज्ञान में लाया गया था कि सुप्रीम कोर्ट के आधिकारिक ईमेल में फुटर के रूप में एक तस्वीर थी, जिसका न्यायपालिका के कामकाज से कोई संबंध नहीं है.’

ईमेल में विज्ञापनों के बारे में पूछे जाने पर वरिष्ठ अधिवक्ता चंदर उदय सिंह ने इसे अत्यधिक आपत्तिजनक बताया.

सिंह ने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट और भारत की अन्य सभी अदालतें सरकारी कार्यालय नहीं हैं और सरकार के प्रचार तंत्र के रूप में इस्तेमाल करने के लिए नहीं होती हैं.’

एक अन्य वकील ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट को न केवल स्वतंत्र होना चाहिए बल्कि स्वतंत्र रूप में देखा भी जाना चाहिए. लोगों के मन में अगर न्यायपालिका की छवि राजनीति से अलग होने की बनाए रखना है, तो इस तरह के किसी भी जुड़ाव को टालना होगा.’

मालूम हो कि यह पहली बार नहीं है जब आजादी के अमृत महोत्सव अभियान को लेकर विवाद की स्थिति पैदा हुई है. इससे पहले बीते अगस्त माह में ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ के संबंध में भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद द्वारा जारी एक तस्वीर में देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की तस्वीर न होने पर विवाद मच गया था.

परिषद द्वारा जारी तस्वीर में महात्मा गांधी, बाबा साहब आंबेडकर, सरदार पटेल, नेताजी सुभाषचंद्र बोस, राजेंद्र प्रसाद, भगत सिंह, मदनमोहन मालवीय और विनायक दामोदर सावरकर के चित्र थे, लेकिन नेहरू की तस्वीर नहीं शामिल की गई थी.

परिषद के इस कदम की कांग्रेस नेताओं ने आलोचना की थी. राहुल गांधी ने पूछा था कि नेहरू को लोगों के दिल से कैसे निकालोगे.

इस विवाद के बाद भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद सफाई देते हुए कहा था कि हमने केवल अमृत महोत्सव का पहला पोस्टर जारी किया है. कई और पोस्टर अभी जारी किए जाने हैंण् प्रारंभिक पोस्टर के आधार पर इस तरह से प्रतिक्रिया करना जल्दबाजी है.

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