स्वतंत्रता सेनानी की पेंशन रोकना उचित नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट

एक स्वतंत्रता सेनानी की 90 वर्षीय पत्नी ने बॉम्बे हाईकोर्ट में दाख़िल याचिका में महाराष्ट्र सरकार की पेंशन योजना का लाभ देने का अनुरोध किया है. महिला के पति की 56 साल पहले मौत हो गई थी. इस याचिका पर अदालत ने सरकार से जवाब मांगा है.

बॉम्बे हाईकोर्ट (फोटो: पीटीआई)

एक स्वतंत्रता सेनानी की 90 वर्षीय पत्नी ने बॉम्बे हाईकोर्ट में दाख़िल याचिका में महाराष्ट्र सरकार की पेंशन योजना का लाभ देने का अनुरोध किया है. महिला के पति की 56 साल पहले मौत हो गई थी. इस याचिका पर अदालत ने सरकार से जवाब मांगा है.

बॉम्बे हाईकोर्ट (फोटो: पीटीआई)

मुंबई: बंबई हाईकोर्ट ने एक स्वतंत्रता सेनानी की विधवा की पेंशन रोके जाने को अनुचित बताया और महाराष्ट्र सरकार से जवाब मांगा है. स्वतंत्रता सेनानी की 90 वर्षीय पत्नी ने याचिका में सरकार की पेंशन योजना का लाभ देने का अनुरोध किया है. महिला के पति की 56 साल पहले मौत हो गई थी.

जस्टिस उज्ज्वल भुइयां और जस्टिस माधव जमादार की पीठ ने 24 सितंबर को आदेश जारी किया और इसकी एक प्रति सोमवार को उपलब्ध कराई गई.

अदालत रायगढ़ जिले की निवासी शालिनी चव्हाण की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उन्होंने ‘स्वतंत्र सैनिक सम्मान पेंशन योजना, 1980’ का लाभ देने का अनुरोध किया है, क्योंकि उनके दिवंगत पति एक स्वतंत्रता सेनानी थे.

याचिका के अनुसार, महिला के पति लक्ष्मण चव्हाण स्वतंत्रता सेनानी थे और उन्होंने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया था. चव्हाण को सजा सुनाई गई जिसके बाद उन्हें 17 अप्रैल, 1944 से 11 अक्टूबर, 1944 तक मुंबई की भायखला जेल में रखा गया. चव्हाण की 12 मार्च 1965 को मृत्यु हो गई.

याचिकाकर्ता के वकील जितेंद्र पाठाडे ने अदालत को बताया कि शालिनी चव्हाण को पेंशन योजना का लाभ इस आधार पर नहीं दिया गया कि उनके पति की गिरफ्तारी और कारावास का रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है.

पाठाडे ने दलील कि याचिकाकर्ता ने 1966 में अपने दिवंगत पति के कारावास का प्रमाण-पत्र राज्य सरकार को प्रस्तुत किया था, लेकिन इसका सत्यापन नहीं हो सका, क्योंकि भायखला जेल के पुराने रिकॉर्ड, जिसमें उनके पति के कारावास का विवरण था, नष्ट हो गया था.

अदालत ने मामले की संक्षिप्त सुनवाई के बाद कहा कि रिकॉर्ड में उपलब्ध सामग्री से लक्ष्मण चव्हाण के स्वतंत्रता सेनानी होने की स्थिति और याचिकाकर्ता के उनकी विधवा होने के संबंध में कोई विवाद नहीं लगता है.

उच्च न्यायालय ने कहा, ‘अगर ऐसा है भी तो एक स्वतंत्रता सेनानी की पेंशन को इतनी लंबी अवधि के लिए रोकना उचित नहीं है.’

पीठ ने सरकारी वकील पूर्णिमा कंथारिया को राज्य सरकार से निर्देश प्राप्त करने और 30 सितंबर को वस्तुस्थिति से अदालत को अवगत कराने का निर्देश दिया.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, अपनी याचिका में शालिनी चव्हाण ने कहा कि वह अपने बेटे की मौत के बाद बिना किसी सहारे के एक वरिष्ठ नागरिक हैं और अपनी दैनिक जरूरतों के लिए संघर्ष कर रही हैं.

याचिका के अनुसार, लक्ष्मण चव्हाण की मृत्यु के बाद उन्होंने 1966 में भायखला जेल के अधीक्षक से कारावास प्रमाण पत्र के लिए आवेदन किया था. उन्हें प्रमाण पत्र जारी होने के बाद याचिकाकर्ता ने 1993 में पेंशन और अन्य लाभों के लिए सरकार से संपर्क किया.

याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता ने सभी जरूरी दस्तावेज सरकार को सौंप दिए हैं. 2002 में याचिकाकर्ता राज्य सरकार की ‘स्वतंत्रता सेनानी उच्चाधिकार प्राप्त समिति’ के समक्ष भी पेश हुई, जहां उसे सूचित किया गया कि उसका पेंशन दावा स्वीकृत किया जाएगा.

याचिका में कहा गया है, ‘हालांकि, आज तक याचिकाकर्ता को कोई पेंशन नहीं मिली है. इसलिए उसके पास उच्च न्यायालय जाने के अलावा कोई उपाय नहीं बचा था.’

शालिनी चव्हाण ने अपनी याचिका में राज्य सरकार को 10 लाख रुपये की अनुग्रह राशि देने का निर्देश देने की भी मांग की है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)