त्रिपुरा: मुख्यमंत्री बोले- अदालत की अवमानना से न डरें अधिकारी, पुलिस मेरे नियंत्रण में

त्रिपुरा सिविल सर्विस ऑफिसर्स एसोसिएशन के एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री बिप्लब देब ने कहा कि अधिकारियों का एक वर्ग इस तरह अदालत की अवमानना ​​​​का हवाला दे रहा है जैसे कि यह अवमानना कोई बाघ हो, लेकिन वास्तव में 'मैं बाघ हूं.' सरकार चलाने वाले के पास शक्ति होती है.

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Hooghly: Tripura Chief Minister Biplab Kumar Deb addresses a rally, at Arambagh in Hooghly, Tuesday, Jan. 29, 2019. (PTI Photo) (PTI1_29_2019_000073B)
बिप्लब कुमार देब. (फोटो: पीटीआई)

त्रिपुरा सिविल सर्विस ऑफिसर्स एसोसिएशन के एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री बिप्लब देब ने कहा कि अधिकारियों का एक वर्ग इस तरह अदालत की अवमानना ​​​​का हवाला दे रहा है जैसे कि यह अवमानना कोई बाघ हो, लेकिन वास्तव में ‘मैं बाघ हूं.’ सरकार चलाने वाले के पास शक्ति होती है.

Hooghly: Tripura Chief Minister Biplab Kumar Deb addresses a rally, at Arambagh in Hooghly, Tuesday, Jan. 29, 2019. (PTI Photo) (PTI1_29_2019_000073B)
बिप्लब कुमार देब. (फाइल फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब ने सरकारी अधिकारियों से कहा है कि वे अदालत की अवमानना ​​के बारे में चिंता न करें क्योंकि पुलिस उनके नियंत्रण में है और ऐसे में किसी को जेल भेजना आसान नहीं है.

देब ने त्रिपुरा सिविल सर्विस ऑफिसर्स एसोसिएशन के द्विवार्षिक सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा था कि अधिकारियों का एक वर्ग इस तरह अदालत की अवमानना ​​​​का हवाला दे रहा है जैसे कि यह अवमानना कोई बाघ हो, लेकिन वास्तव में ‘मैं बाघ हूं.’

देब की इस टिप्पणी पर विवाद खड़ा हो गया है. विपक्ष ने कहा कि उनके शासन में लोकतंत्र दांव पर है.

मुख्यमंत्री ने बीते शनिवार को राजधानी अगरतला के रवींद्र भवन में आयोजित कार्यक्रम में कहा, ‘आजकल अधिकारियों का एक वर्ग अदालत की अवमानना ​​से डरता है. वे अदालत की अवमानना ​​का हवाला देते हुए यह कहकर किसी फाइल को नहीं छूते हैं कि परेशानी खड़ी हो जाएगी. अगर मैं ऐसा करता हूं तो मुझे अदालत की अवमानना ​​के लिए जेल भेजा जाएगा.’

उन्होंने कहा, ‘समस्या कहां है? अदालत की अवमानना ​​के आरोप में अब तक कितने अधिकारियों को जेल भेजा गया है? मैं यहां हूं, आप में से किसी को भी जेल भेजे जाने से पहले मैं जेल जाऊंगा.’

देब ने कहा कि किसी को जेल भेजना आसान नहीं है क्योंकि इसके लिए पुलिस की जरूरत होती है.

देब राज्य के गृह मंत्री भी हैं. फिर उन्होंने तालियों की गड़गड़ाहट के बीच कहा, ‘और मैं पुलिस को नियंत्रित करता हूं. अधिकारी इस तरह हालात का हवाला दे रहे हैं जैसे कि अदालत की अवमानना ​​​कोई बाघ हो! मैं आप सभी को आश्वस्त करना चाहता हूं कि मैं बाघ हूं. सरकार चलाने वाले के पास शक्ति होती है.’

मुख्यमंत्री ने इस मुद्दे पर एक पूर्व मुख्य सचिव के साथ अपने अनुभव का भी जिक्र किया था.

उन्होंने मुख्य सचिव का मजाक उड़ाते हुए कहा था, ‘हमारे एक मुख्य सचिव ने कहा कि अगर वह सिस्टम से बाहर काम करते है तो उन्हें अदालत की अवमानना ​​के लिए जेल भेजा जाएगा. फिर मैंने उन्हें जाने दिया.’

विपक्षी माकपा ने कहा कि मुख्यमंत्री के बयान से पता चलता है कि वह न्यायपालिका का सम्मान नहीं करते हैं.

माकपा के राज्य सचिव जितेंद्र चौधरी ने कहा, ‘यह दर्शाता है कि वह न्यायपालिका का सम्मान नहीं करते, जो लोकतंत्र के महत्वपूर्ण स्तंभों में से एक है. उनके शासन में लोकतंत्र दांव पर है.’

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक उन्होंने कहा, ‘यह बहुत ही आश्चर्यजनक और दुर्भाग्यपूर्ण है. किसी राज्य के सर्वोच्च संवैधानिक पद की कुर्सी संभालने वाला व्यक्ति ऐसी टिप्पणी कैसे कर सकता है, जो पूरी तरह से संविधान की भावना के खिलाफ हो! यह संविधान की भावना का दुरूपयोग करना है. मुख्यमंत्री ने सीधे तौर पर अदालत और कानून के शासन को कमजोर किया है. इससे उन उपद्रवियों, असामाजिक तत्वों को प्रोत्साहन मिलेगा जो पिछले 3.5 वर्षों से शांति भंग कर रहे हैं, जो कि राज्य के लिए एक बड़ा खतरा है.’

तृणमूल कांग्रेस ने भी देब पर हमला किया और उच्चतम न्यायालय से उनकी टिप्पणियों पर संज्ञान लेने का आग्रह किया.

टीएमसी महासचिव अभिषेक बनर्जी ने ट्वीट किया, ‘बिप्लब देब पूरे देश के लिए एक अपमान हैं! वह बेशर्मी से लोकतंत्र का मज़ाक उड़ाते हैं, माननीय न्यायपालिका का मज़ाक उड़ाते हैं. क्या सर्वोच्च न्यायालय उनकी टिप्पणियों का संज्ञान लेगा?’

वैसे तो मुख्यमंत्री कार्यालय (सीएमओ) ने इस मुद्दे पर कोई औपचारिक बयान जारी नहीं किया है, हालांकि सीएम के मीडिया सलाहकार संजय मिश्रा ने बनर्जी को जवाब देते हुए ट्वीट कर कहा, ‘आपको अपना भ्रामक प्रचार फैलाने से पहले पूरा भाषण सुनना चाहिए, जो आपने अपने राजनीतिक गुरु माकपा से सीखा है. सरकारी संस्थानों के लिए आपके मन में कितना सम्मान है, यह हम सभी जानते हैं.’

पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी का हवाला देते हुए बिप्लब देब ने अपने भाषण में यह भी कहा था कि अदालत विधायिका में बने कानूनों को लागू करने वाली एजेंसी है.

उन्होंने कहा, ‘अदालत लोगों के लिए है और लोग अदालत के लिए नहीं हैं. एक बार (पूर्व) अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने यह बात तब कही थी, जब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि 11 सांसद अपने पदों पर नहीं रहेंगे. उन्होंने कहा कि वे अपने पदों पर ही रहेंगे, क्योंकि सांसदों का काम कानून बनाना है. आप (अदालत) कानून लागू करने के लिए हैं. उन्होंने कहा कि (अदालत) हमारे द्वारा बनाए गए कानूनों को लागू करने वाली एजेंसी है.’

देब ने अपनी टिप्पणियों का बचाव करते हुए कहा कि अदालत में मामले लंबित रहने के कारण लोक सेवकों की पदोन्नति रोकना उचित नहीं है क्योंकि यह सेवानिवृत्त होने वाले कर्मचारियों के साथ ‘अन्याय’ होगा. इसे करने के लिए कैबिनेट का फैसला लिया जा सकता है. हमें उनका प्रमोशन करना चाहिए.

इससे पहले उन्होंने यह दावा कर विवाद खड़ा कर दिया था कि ‘महाभारत के युग’ के दौरान इंटरनेट मौजूद था. उन्होंने यह भी कहा था कि रवींद्रनाथ टैगोर ने अंग्रेजों के विरोध में अपना नोबेल पुरस्कार लौटा दिया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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