औपनिवेशिक युग के क़ानूनों और उनकी व्याख्या पर ग़ौर किया जाना चाहिए: जस्टिस नरसिम्हा

शीर्ष अदालत के नौ नवनियुक्त न्यायाधीशों के अभिनंदन के लिए आयोजित एक समारोह में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश पीएस नरसिम्हा ने कहा कि भारत को औपनिवेशिक युग के क़ानूनों और उनकी व्याख्या के कारण 70 साल से अधिक समय तक प्रभावित होना पड़ा है. बड़ी संख्या में क़ानून, बड़ी संख्या में व्याख्याओं पर फ़िर से ग़ौर करने की ज़रूरत है.

सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश पीएस नरसिम्हा. (फोटो: पीटीआई)

शीर्ष अदालत के नौ नवनियुक्त न्यायाधीशों के अभिनंदन के लिए आयोजित एक समारोह में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश पीएस नरसिम्हा ने कहा कि भारत को औपनिवेशिक युग के क़ानूनों और उनकी व्याख्या के कारण 70 साल से अधिक समय तक प्रभावित होना पड़ा है. बड़ी संख्या में क़ानून, बड़ी संख्या में व्याख्याओं पर फ़िर से ग़ौर करने की ज़रूरत है.

सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश पीएस नरसिम्हा. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश पीएस नरसिम्हा ने रविवार को कहा कि भारत को औपनिवेशिक युग के कानूनों और उनकी व्याख्या के कारण 70 साल से अधिक समय तक प्रभावित होना पड़ा है और कानूनों का वि-उपनिवेशीकरण न्यायाधीशों के लिए एक संवैधानिक मिशन है.

जस्टिस नरसिम्हा 2027 में भारत के मुख्य न्यायाधीश बन सकते हैं. उन्होंने कहा कि जस्टिस बीवी नागरत्ना से पदभार ग्रहण करना उनके लिए एक बड़ा सम्मान होगा. जस्टिस नागरत्ना भारत की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश बन सकती हैं.

उच्चतम न्यायालय की महिला अधिवक्ताओं द्वारा तीन महिला न्यायाधीशों सहित शीर्ष अदालत के नौ नवनियुक्त न्यायाधीशों के सम्मान के लिए आयोजित एक समारोह को संबोधित करते हुए जस्टिस नरसिम्हा ने कहा कि उन्होंने हाल ही में एक समाचार रिपोर्ट पढ़ी है कि सीजेआई एनवी रमना ने कहीं कहा है कि भारतीय न्यायिक प्रणाली उपनिवेशवाद से प्रभावित है.

उन्होंने कहा, ‘तभी मुझे लगा कि वि-उपनिवेशीकरण वास्तव में हमारे लिए एक संवैधानिक मिशन है और मैं तुरंत स्वयं को उस दृष्टिकोण से जोड़ सकता हूं, जिसका उल्लेख सीजेआई ने किया है. बड़ी संख्या में कानून, बड़ी संख्या में व्याख्याओं पर फिर से गौर करने की जरूरत है, जिनसे हम 70 वर्षों से अधिक समय तक प्रभावित हुए हैं और मुझे यकीन है कि यह हमें एक नए परिप्रेक्ष्य में ले जाएगा.’

उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में 31 अगस्त को शपथ लेने वाले जस्टिस नरसिम्हा ने कहा कि प्रधान न्यायाधीश रमना ने 24 अप्रैल को कार्यभार संभालने के बाद से कई मुद्दों को उठाया है और जिस तरह से उन्होंने उन्हें लागू किया वह असाधारण है और इसका प्रभाव सभी को दिखाई देता है.

उन्होंने कहा, ‘नौ न्यायाधीशों, उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति और मैं शीर्ष अदालत के लिए सोमवार की वाद सूची देख रहा था, यह आश्चर्यजनक है क्योंकि 17 अदालतें हैं, जो काम कर रही हैं. अविश्वसनीय!’

जस्टिस बीवी नागरत्ना, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस हिमा कोहली के शपथ ग्रहण के साथ ही शीर्ष अदालत में अब चार महिला न्यायाधीश हैं.

मालूम हो कि शीर्ष अदालत में तीन महिलाओं सहित नौ न्यायाधीशों ने एक साथ 31 अगस्त को शपथ ली थी. सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में पहली बार एक साथ नौ न्यायाधीशों ने शपथ ली थी.

बीते 18 सितंबर को एक कार्यक्रम में बोलते हुए सीजेआई एनवी रमना ने कानूनी प्रणाली के भारतीयकरण का आह्वान किया था.

जस्टिस रमना ने कहा था, ‘हमारी न्याय व्यवस्था कई बार आम आदमी के लिए कई अवरोध खड़े कर देती है. अदालतों के कामकाज और कार्यशैली भारत की जटिलताओं से मेल नहीं खाते. हमारी प्रणालियां, प्रक्रियाएं और नियम मूल रूप से औपनिवेशिक हैं और ये भारतीय आबादी की जरूरतों से पूरी तरह मेल नहीं खाते. समय की मांग हमारी कानूनी प्रणाली का भारतीयकरण करना है.’

इससे पहले शीर्ष अदालत के नौ नवनियुक्त न्यायाधीशों के अभिनंदन के लिए आयोजित एक समारोह में सीजेआई एनवी रमना ने महिला वकीलों का आह्वान करते हुए कहा था कि वे न्यायपालिका में 50 प्रतिशत आरक्षण के लिए जोरदार तरीके से मांग उठाएं.

वहीं, न्यायाधीश बीवी नागरत्ना ने कहा था कि न्यायपालिका में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने से व्यापक तरीकों से लैंगिक समानता की भूमिका को बढ़ावा मिलता है.

उन्होंने कहा था कि विशेष रूप से न्यायिक क्षेत्र में वरिष्ठ स्तर पर महिलाओं की नियुक्तियां लैंगिक रूढ़ियों को बदल सकती हैं, जिससे पुरुषों और महिलाओं की उचित भूमिकाओं के प्रति दृष्टिकोण और धारणा में बदलाव होगा.

जस्टिस नागरत्ना ने यह भी कहा था कि महिला न्यायाधीशों की अधिक संख्या महिलाओं की न्याय मांगने और अपने अधिकारों को लागू करने की इच्छा को बढ़ा सकती है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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