2002 के एक एनकाउंटर मामले में राज्य पुलिस का बचाव करने पर सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को फटकारा

उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर ज़िले में 2002 में हुए एक कथित एनकाउंटर मामले में एक दशक से अधिक समय तक सिर्फ़ एक पुलिसकर्मी की गिरफ़्तारी के बाद कोई और गिरफ़्तारी नहीं हुई थी. इतना ही नहीं एक फ़रार आरोपी पुलिसकर्मी इस दौरान सेवानिवृत्त भी हो गया, लेकिन उसे सेवानिवृत्ति का बकाया और अन्य लाभ बेरोक-टोक मिल रहे थे. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दो दशकों से न्याय से इनकार किया गया है.

(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर ज़िले में 2002 में हुए एक कथित एनकाउंटर मामले में एक दशक से अधिक समय तक सिर्फ़ एक पुलिसकर्मी की गिरफ़्तारी के बाद कोई और गिरफ़्तारी नहीं हुई थी. इतना ही नहीं एक फ़रार आरोपी पुलिसकर्मी इस दौरान सेवानिवृत्त भी हो गया, लेकिन उसे सेवानिवृत्ति का बकाया और अन्य लाभ बेरोक-टोक मिल रहे थे. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दो दशकों से न्याय से इनकार किया गया है.

(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने 2002 में मुठभेड़ में मारे गए एक व्यक्ति के मामले में आरोपी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज करने में ढिलाई बरतने को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार को फटकार लगाई है.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस विनीत सरन और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने मृतक के पिता की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि अपने बेटे के लिए न्याय सुनिश्चित करने के लिए याचिकाकर्ता दर-दर भटके हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दो दशकों से न्याय से इनकार किया गया है.

अदालत की ओर से कहा गया, ‘आम तौर पर हम सीधे इस न्यायालय में दायर याचिकाओं पर विचार करने में धीमे होते हैं, लेकिन इस मामले की असाधारण परिस्थितियों में हमने यह सुनिश्चित करने के लिए इस याचिका पर विचार किया है कि याचिकाकर्ता को न्याय दिया जाए, जिसे लगभग दो दशकों से इनकार किया गया है.’

अदालत ने उत्तर प्रदेश सरकार पर सात लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है और एक हफ्ते के भीतर जुर्माने की इस राशि को अदालत की रजिस्ट्री के पास जमा करने का आदेश दिया है. इस राशि के जमा होने पर इसे याचिकाकर्ता को दिया जाएगा.

उत्तर प्रदेश सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने यह फटकार ऐसे समय लगाई है, जब बीते 27 सितंबर को कानपुर के एक डीलर की गोरखपुर में चेकिंग के दौरान राज्य पुलिस द्वारा की गई कथित तौर पर पिटाई के बाद मौत हो गई थी.

इस मामले में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ने छह पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया है.

2002 एनकाउंटर मामले की पृष्ठभूमि

यह कथित मुठभेड़ 19 साल पहले 2002 में उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले के सिकंदराबाद में हुई थी. इसके तुरंत बाद पुलिस ने मामले की जांच को लेकर क्लोजर रिपोर्ट दायर की थी.

द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, इस रिपोर्ट को हालांकि जनवरी 2005 में निचली अदालत ने खारिज कर दिया था.

रिपोर्ट खारिज किए जाने और अदालत द्वारा कार्यवाही पर रोक नहीं लगाए जाने के बावजूद इस मामले में अक्टूबर 2005 तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई. बाद में केवल एक ही आरोपी को गिरफ्तार किया गया.

मालमे में एक दशक से अधिक समय तक कोई और गिरफ्तारी नहीं हुई. उस समय इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मामले को रद्द करने से इनकार कर दिया था, लेकिन आरोपी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई.

वहीं, निचली अदालतों ने आरोपी पुलिस अधिकारियों के वेतन के भुगतान को रोकने के लिए 2018 और 2019 में लगातार आदेश दिए, लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार ने एक आरोपी के मामले को छोड़कर बाकी अन्य के मामले में इन आदेशों का पालन नहीं किया.

इस मामले में गुरुवार (30 सितंबर) को हुई सुनवाई के दौरान अदालत को बताया गया कि आरोपी पुलिस अधिकारियों में से एक अधिकारी, जो फरार है, वह 2019 में सेवानिवृत्त हो गया और उसे उसकी सेवानिवृत्ति का बकाया और अन्य लाभ बेरोक-टोक मिल रहे हैं.

मौजूदा रिट याचिका को लेकर नोटिस भेजने के बाद ही राज्य सरकार द्वारा कोई कार्रवाई की गई, जिसके तहत दो आरोपियों को गिरफ्तार किया गया और एक ने आत्मसमर्पण किया, जबकि एक अभी भी फरार हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘राज्य सरकार के इस तरह के आचरण को समझा नहीं जा सकता. मौजूदा मामले में राज्य सरकार ने जो ढिलाई की है, उससे पता चलता है कि किस तरह स्टेट मशीनरी अपने पुलिस अधिकारियों को बचा रही है.’

यह जानना दिलचस्प है कि अदालत का यह फैसला चीफ जस्टिस एनवी रमना के उस बयान के बाद आया है, जिसमें सीजेआई रमना ने उच्च न्यायालयों के चीफ जस्टिस की अध्यक्षता में स्थायी समिति का गठन बनाने के विचार को लेकर की थी, ताकि नौकरशाहों विशेष रूप से पुलिस अधिकारियों के खिलाफ शिकायतों की जांच की जा सके.

चीफ जस्टिस एनवी रमना ने यह टिप्पणी उस समय की, जब सुप्रीम कोर्ट की पीठ छत्तीसगढ़ के निलंबित अतिरिक्त डीजी गुरजिंदर पाल सिंह के खिलाफ राजद्रोह, भ्रष्टाचार और जबरन वसूली के आरोप में राज्य सरकार द्वारा दर्ज तीन एफआईआर के संबंध में तीन अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी.

इससे पहले बीते 26 अगस्त को गुरजिंदर पाल सिंह की गिरफ्तारी से संरक्षण की याचिका पर सुनवाई के दौरान सीजेआई रमना ने कहा था कि यह परेशान करने वाली प्रवृत्ति था कि पुलिस सत्तारूढ़ दल का पक्ष लेती है.

सीजेआई रमना ने कहा था, ‘देश में हालात बहुत दुखद हैं. जब एक राजनीतिक दल सत्ता में होता है तो पुलिस अधिकारी उस विशेष दल का पक्ष लेते हैं, लेकिन जब एक नई पार्टी सत्ता में आती है तो सरकार उन पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर देती है. यह एक नया चलन है, जिसके रोके जाने की जरूरत है.’

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq