असम बेदख़ली अभियान: सांप्रदायिक टिप्पणी के आरोप में कांग्रेस विधायक गिरफ़्तार

आरोप है कि कांग्रेस विधायक शर्मन अली अहमद ने 1983 में असम आंदोलन के दौरान सिपाझार इलाके के पास राज्य के आठ युवाओं की हत्या पर विवादित बयान दिया था. उन्होंने कहा था कि आंदोलन के दौरान मारे गए आठ युवा ‘शहीद’ नहीं बल्कि ‘हत्यारे’ थे, क्योंकि वे अल्पसंख्यक समुदाय के अन्य लोगों की हत्या में शामिल थे. बीते दिनों इसी इलाके में प्रशासन की ओर से चलाए गए बेदख़ली अभियान के दौरान हिंसा में 12 साल के एक बच्चे सहित दो लोगों की मौत हो गई थी.

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शर्मन अली अहमद. (फोटो साभार: एएनआई)

आरोप है कि कांग्रेस विधायक शर्मन अली अहमद ने 1983 में असम आंदोलन के दौरान सिपाझार इलाके के पास राज्य के आठ युवाओं की हत्या पर विवादित बयान दिया था. उन्होंने कहा था कि आंदोलन के दौरान मारे गए आठ युवा ‘शहीद’ नहीं बल्कि ‘हत्यारे’ थे, क्योंकि वे अल्पसंख्यक समुदाय के अन्य लोगों की हत्या में शामिल थे. बीते दिनों इसी इलाके में प्रशासन की ओर से चलाए गए बेदख़ली अभियान के दौरान हिंसा में 12 साल के एक बच्चे सहित दो लोगों की मौत हो गई थी.

शर्मन अली अहमद. (फोटो साभार: एएनआई)

गुवाहाटीः असम पुलिस ने फरवरी 1983 में असम आंदोलन के दौरान राज्य के आठ युवाओं की मौत पर विवादित बयान देने के आरोप में शनिवार को कांग्रेस विधायक शर्मन अली अहमद को गिरफ्तार किया है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, विशेष डीजीपी जीपी सिंह ने बताया, ‘शर्मन अली को गिरफ्तार किया गया है. उचित समय पर मामले का पूरा ब्योरा साझा किया जाएगा.’

उन्होंने यह नहीं बताया कि शर्मन अली को किन धाराओं के तहत गिरफ्तार किया गया है.

पुलिस ने बताया, ‘अहमद को शनिवार शाम को पूछताछ के लिए हिरासत में लिया गया था. पूछताछ अभी भी जारी है. हमें उनके खिलाफ दर्ज कुछ एफआईआर मिली हैं.’

अहमद बारपेटा जिले के बागबर विधानसभा क्षेत्र से तीन बार विधायक रह चुके हैं. वह 2016 और 2021 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने से पहले ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) का हिस्सा रह चुके हैं.

दरअसल अहमद ने फरवरी 1983 में सिपाझार इलाके के पास असम के आठ युवाओं की मौत पर विवादित बयान दिया था. इसी इलाके में हाल ही में प्रशासन की ओर से चलाए गए बेदखली अभियान के दौरान हिंसा में 12 साल के एक बच्चे सहित दो लोगों की मौत हो गई थी.

असम के लोगों का मानना है कि असम आंदोलन के दौरान फरवरी 1983 में इन आठ युवाओं ने अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे, लेकिन अहमद ने दावा किया था कि 1983 के आंदोलन के दौरान मारे गए आठ लोग ‘शहीद’ नहीं, बल्कि ‘हत्यारे’ थे, क्योंकि वे सिपाझार क्षेत्र के अल्पसंख्यक समुदाय के अन्य लोगों को मारने में शामिल थे.

अहमद के बयान के वीडियो क्लिप में वह कथित तौर पर कहते नजर आ रहे है कि दरांग जिले के चालखोवा में 1983 में हुई हिंसा के दौरान जिन आठ लोगों की मौत हुई थी, वे ‘शहीद’ नहीं बल्कि ‘हत्यारे’ थे, क्योंकि वे मिया (बंगाली भाषी मुस्लिम) समुदाय के लोगों की हत्या के लिए जिम्मेदार थे.

इस दौरान उन्होंने असम आंदोलन के प्रदर्शनकारियों और प्रवासी समुदाय के बीच सिपाझार में हिंसा की घटना का उल्लेख किया. उन्होंने दावा किया कि मिया समुदाय ने खुद को बचाने के लिए असम के आठ युवकों की हत्या कर दी थी.

उनके इस बयान के बाद ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (एएएसयू) और भाजपा और उनकी सहयोगी पार्टी असम गण परिषद (एजीपी) सहित कई संगठनों ने शहीदों का अपमान करने के लिए अहमद की आलोचना की थी.

बता दें कि इससे पहले शनिवार को असम कांग्रेस ने पार्टी की छवि को जान-बूझकर नुकसान पहुंचाने के इरादे से सांप्रदायिक रूप से भड़काऊ बयान देने के लिए कारण बताओ नोटिस जारी किया था और उनसे स्पष्टीकरण मांगा था.

इस नोटिस पर कांग्रेस के महासचिव बबीता शर्मा के हस्ताक्षर थे और इसमें कहा गया था, ‘उनके सांप्रदायिक भड़काऊ बयानों से असम आंदोलन से जुड़ी पूर्व घटनाओं के घाव ताजा हो गए हैं, ये घाव उस पीड़ा से हुए हैं, जिन्हें असम के विभिन्न समुदायों के लोगों ने सहा है.’

बयान में कहा गया कि उनके द्वारा दिए गए असंवेदनशील बयान राज्य के सामाजिक सौहार्द को नष्ट करने वाले थे.

बता दें कि छह साल तक चला असम आंदोलन 1979 में ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन द्वारा शुरू किया गया था, जिसके तहत अवैध प्रवासियों की पहचान कर उनके निर्वासन की मांग की गई थी. आंदोलन के दौरान हिंसा की कई घटनाएं हुई, जिसमें सबसे प्रमुख 1983 का नेल्ली नरसंहार था, जिसमें अनाधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, इस दौरान 3,000 से अधिक (अधिकतर बंगाली मुस्लिम) लोगों की मौत हुई थी.

असम सरकार की वेबसाइट पर असम आंदोलन को ऐतिहासिक और आजादी के बाद के मुख्य रूप से असम के छात्रों के नेतृत्व में हुए सबसे प्रसिद्ध आंदोलनों में से एक बताया गया है.

वेबसाइट के मुताबिक, ‘इस ऐतिहासिक आंदोलन के छह सालों के दौरान 855 (बाद में ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन ने  इस संख्या को 860 बताया) लोगों ने घुसपैठ मुक्त असम की उम्मीद में अपना बलिदान दिया था.’

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