1965 के भारत-पाक युद्ध में वायुसेना का नेतृत्व करने वाले एयर मार्शल अर्जन सिंह नहीं रहे

वह एक अगस्त 1964 से 15 जुलाई 1969 तक भारतीय वायुसेना के प्रमुख रहे. भारतीय वायुसेना के एकमात्र ऐसे अधिकारी रहे जो पांच सितारा रैंक तक पदोन्नत हुए.

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New Delhi: File photo of Marshal of the Indian Air Force Arjan Singh, famous for his role in the the 1965 India- Pakistan war, has been hospitalised and his condition is stated to be critical.PTI Photo(PTI9_16_2017_000104B)

वह एक अगस्त 1964 से 15 जुलाई 1969 तक भारतीय वायुसेना के प्रमुख रहे. भारतीय वायुसेना के एकमात्र ऐसे अधिकारी रहे जो पांच सितारा रैंक तक पदोन्नत हुए.

New Delhi: File photo of Marshal of the Indian Air Force Arjan Singh, famous for his role in the the 1965 India- Pakistan war, has been hospitalised and his condition is stated to be critical.PTI Photo(PTI9_16_2017_000104B)
एयर मार्शल अर्जन सिंह. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: युद्ध नायक एयर मार्शल अर्जन सिंह का शनिवार देर शाम निधन हो गया. वह 98 वर्ष के थे. उन्होंने 1965 के भारत-पाक युद्ध में भारतीय वायुसेना का नेतृत्व किया था. वायुसेना के सूत्रों ने जानकारी दी कि शनिवार देर शाम साढ़े सात बजे अर्जन सिंह का निधन हो गया.

अर्जन सिंह भारतीय वायुसेना के एकमात्र ऐसे अधिकारी रहे जो पांच सितारा रैंक तक पदोन्नत हुए. यह पद भारतीय थलसेना के फील्ड मार्शल के बराबर है. रक्षा मंत्रालय ने कहा कि मार्शल को शनिवार सुबह दिल का दौरा पड़ने के बाद यहां सेना के रिसर्च एंड रेफरल अस्पताल में भर्ती कराया गया था.

इससे पहले दिन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रक्षामंत्री निर्मला सीतारमन और सेना के तीनों अंगों के प्रमुख- जनरल बिपिन रावत, एडमिरल सुनील लांबा और एअर चीफ मार्शल बीरेंद्र सिंह धनोआ, मार्शल अर्जन सिंह को देखने अस्पताल पहुंचे.

देश की सेना के इतिहास में आदर्श रहे सिंह ने 1965 में भारत-पाक युद्ध के दौरान भारतीय वायुसेना का नेतृत्व किया था. उस समय वह 44 साल के थे.

पाकिस्तान ने 1965 में ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम शुरू किया जिसमें उसने जम्मू कश्मीर के महत्वपूर्ण शहर अखनूर को निशाना बनाया, तब सिंह ने साहस, प्रतिबद्धता और पेशेवर दक्षता के साथ भारतीय वायु सेना का नेतृत्व किया.

लड़ाकू पायलट रहे सिंह ने 1965 की लड़ाई में बाधाओं के बावजूद हवाई युद्ध शक्ति का पूर्ण इस्तेमाल कर भारतीय वायुसेना को प्रेरित किया. उन्हें देश के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था.

अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत के लायलपुर में 15 अप्रैल 1919 को जन्मे अर्जन सिंह के पिता, दादा और परदादा ने सेना के घुड़सवार दस्ते में सेवा दी थी.

मांटगुमरी, ब्रिटिश भारत अब पाकिस्तान में शिक्षित अर्जन सिंह 1938 में रॉयल एअरफोर्स आरएएफ, क्रैनवेल से जुड़े थे और बाद के वर्ष में दिसंबर में वह वायुसेना में पायलट अफसर के रूप में शामिल हुए.

सिंह ने 1944 की अराकान लड़ाई में वायुसेना की एक सड्रन का नेतृत्व किया था. उन्हें उस साल विशिष्ट फ्लाइंग क्रॉस डीएफसी से नवाजा गया था. वह एक अगस्त 1964 से 15 जुलाई 1969 तक भारतीय वायुसेना के प्रमुख रहे.

थलसेना के फील्ड मार्शल सैम मानेकशा और केएम करिअप्पा दो अन्य अधिकारी थे जिन्हें पांच सितारा पदोन्नति मिली. वायुसेना से सेवानिवृत्ति के बाद अर्जन सिंह को 1971 में स्विट्ज़रलैंड में भारत का राजदूत नियुक्त किया गया. इसके साथ ही उन्होंने वेटिकन में भी राजदूत के रूप में सेवा दी. वह 1974 में केन्या में उच्चायुक्त भी रहे.

त्रवह राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य तथा दिल्ली के उपराज्यपाल भी रहे. उन्हें जनवरी 2002 में वायुसेना का मार्शल बनाया गया था.

पिछले साल उनके जन्मदिन पर उनके सम्मान में पश्चिम बंगाल के पानागढ़ स्थित लड़ाकू विमान प्रतिष्ठान का नाम उनके नाम पर रखा गया था.

अर्जन सिंह: निडर पायलट और अद्भुत सैन्य नेतृत्वकर्ता

वायु सेना के एयर मार्शल अर्जन सिंह हमेशा एक युद्ध नायक के रूप में याद किए जाएंगे जिन्होंने सफलतापूर्वक 1965 के भारत-पाक युद्ध का नेतृत्व किया था.

एयर मार्शल अर्जन सिंह. (फोटो: पीटीआई)
एयर मार्शल अर्जन सिंह. (फोटो: पीटीआई)

सिंह एक निडर और अद्वितीय पायलट थे जिन्होंने 60 विभिन्न तरीके के विमान उड़ाए थे. भारतीय वायु सेना को दुनिया की सर्वाधिक सक्षम वायु सेनाओं में से एक और दुनिया की चौथी सबसे बड़ी वायु सेना बनाने में उन्होंने महती भूमिका निभाई.

आईएएफ के पूर्व उप प्रमुख कपिल काक ने कहा, भारतीय वायु सेना के लिए उनका योगदान अविस्मरणीय है. आईएएफ उनके साथ आगे बढ़ी. वह अद्भुत विवेक वाले सैन्य नेतृत्व के महारथी थे और इसलिए यह आश्चर्यजनक नहीं है कि उन्हें वायु सेना में मार्शल रैंक से सम्मानित किया गया.

सिंह को 2002 में गणतंत्र दिवस के अवसर पर मार्शल रैंक से सम्मानित किया गया था. सैम होरमुसजी फ्रामजी जमशेदजी मानेकशॉ और केएम करियप्पा ही केवल दो सैन्य जनरल थे जिन्हें फील्ड मार्शल के रैंक से सम्मानित किया गया था.

सिंह को न केवल निडर पायलट के रूप में जाना जाता था बल्कि उन्हें वायु शक्ति की काफी जानकारी थी और कई क्षेत्रों में उन्होंने इसका इस्तेमाल किया. 1965 की लड़ाई का सिंह ने नेतृत्व किया और पाकिस्तानी वायुसेना को जीत हासिल नहीं करने दी जबकि अमेरिकी सहयोग के कारण वह ज़्यादा बेहतर सुसज्जित थी.

काक ने कहा, उनका सर्वाधिक यादगार योगदान उस युद्ध में था.

युद्ध में उनकी भूमिका की प्रशंसा करते हुए तत्कालीन रक्षा मंत्री वाईबी चव्हाण ने लिखा था, एयर मार्शल अर्जन एक असाधारण व्यक्ति हैं, काफी सक्षम और दृढ़ हैं, काफी सक्षम नेतृत्व देने वाले हैं.

मार्शल ने अराकान अभियान के दौरान 1944 में जापान के ख़िलाफ़ एक सैड्रन का नेतृत्व किया था, इम्फाल अभियान के दौरान हवाई अभियान को अंजाम दिया और बाद में यांगून में अलायड फोर्सेज का काफी सहयोग किया.

उनके इस योगदान के लिए दक्षिण पूर्व एशिया के सुप्रीम अलायड कमांडर ने उन्हें विशिष्ट फ्लाइंग क्रॉस से सम्मानित किया था और वह इसे प्राप्त करने वाले पहले पायलट थे. सिंह 1938 में रॉयल एयर फोर्स के एम्पायर पायलट प्रशिक्षण पाठ्यक्रम के लिए चुने गए थे. उस समय उनकी उम्र 19 वर्ष थी. वह 1969 में सेवानिवृत्त हुए.

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