दक्षिणपंथी संगठनों के विरोध के बाद कॉलेज ने पार्क को स्टेन स्वामी का नाम देने का फ़ैसला रोका

कर्नाटक के मंगलुरु शहर का मामला. विश्व हिंदू परिषद के एक नेता ने कहा कि हम पार्क के नामकरण के ख़िलाफ़ नहीं हैं, वो इसका नाम ऑस्कर फर्नांडीस या जॉर्ज फर्नांडीस या सेंट एलॉयसियस कॉलेज के संस्थापक के नाम पर रख सकते हैं, लेकिन स्टेन स्वामी के नाम पर नहीं. वैसे तो उनकी मौत हो चुकी है, लेकिन उन पर लगे आरोपों को ख़ारिज नहीं किया गया है.

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फादर स्टेन स्वामी. (फाइल फोटो: पीटीआई)

कर्नाटक के मंगलुरु शहर का मामला. विश्व हिंदू परिषद के एक नेता ने कहा कि हम पार्क के नामकरण के ख़िलाफ़ नहीं हैं, वो इसका नाम ऑस्कर फर्नांडीस या जॉर्ज फर्नांडीस या सेंट एलॉयसियस कॉलेज के संस्थापक के नाम पर रख सकते हैं, लेकिन स्टेन स्वामी के नाम पर नहीं. वैसे तो उनकी मौत हो चुकी है, लेकिन उन पर लगे आरोपों को ख़ारिज नहीं किया गया है.

फादर स्टेन स्वामी. (फाइल फोटो: पीटीआई)

नई दिल्लीः कर्नाटक के मंगलुरु शहर स्थित सेंट एलॉयसियस कॉलेज ने अपने पार्क का नाम आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता और एल्गार परिषद मामले में आरोपी स्टेन स्वामी के नाम पर रखे जाने के फैसले को शनिवार को स्थगित कर दिया.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, दक्षिणपंथी हिंदू संगठनों ने स्टेन स्वामी को ‘अर्बन नक्सल’ कहते हुए इस निजी कॉलेज को धमकी दी थी और उनके इस फैसले का विरोध किया था, जिसके बाद कॉलेज प्रशासन ने फिलहाल इस फैसले पर रोक लगा दी है.

एल्गार परिषद मामले में जेल में बंद आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता स्टेन स्वामी की लंबी बीमारी के बाद बीते जुलाई महीने में मौत हो गई थी.

दरअसल कॉलेज अपने पार्क का नाम स्टेन स्वामी के नाम पर रखकर उन्हें श्रद्धांजलि देना चाहता था, क्योंकि उन्होंने समाज के आदिवासी और गरीब वर्गों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए जीवनभर अथक प्रयास किए.

सेंट एलॉयसियस कॉलेज प्रबंधन गरीबों और आदिवासियों के प्रति स्टेन स्वामी के योगदान को लेकर उनके नाम पर पार्क का नामकरण करना चाहता था.

रिपोर्ट के मुताबिक, सेंट एलॉयसियस संस्थानों के रेक्टर और मैंगलुरु जेसुइट एजुकेशनल सोसाइटी के उपाध्यक्ष फादर मेल्विन जोसेफ पिंटो ने कहा, हमने मिल रही धमकियों के मद्देनजर स्टेन स्वामी के नाम पर पार्क का नामकरण करने की योजना फिलहाल टाल दी है और आगे की चर्चा के बाद ही इस पर फैसला लिया जाएगा.

उन्होंने कहा, ‘हम फिलहाल इस पर फैसला लेने के लिए प्रबंधन के सदस्यों के साथ चर्चा करने जा रहे हैं. अभी हमने स्टेन स्वामी के नाम पर पार्क का नाम रखने को सुनिश्चित नहीं किया है.’

पिंटो ने इस मामले में और समय की मांग करते हुए स्टेन स्वामी पर लगे आरोपों से इनकार किया है.

उन्होंने कहा कि उन्होंने निजी तौर पर स्टेन स्वामी के साथ काम किया है, जिन्होंने देशभर में विशेष रूप से झारखंड में आदिवासी लोगों के सशक्तिकरण में व्यापक योगदान दिया है.

रिपोर्ट के मुताबिक, विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी), बजरंग दल और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) उन संगठनों में से एक हैं, जिन्होंने कॉलेज के इस फैसले का विरोध किया था.

दक्षिणपंथी संगठनों का कहना है कि स्टेन स्वामी की वैसे तो मौत हो चुकी है, लेकिन उन्हें यूएपीए के तहत गिरफ्तार किया गया था और उन पर गंभीर आरोप लगे हैं, जिनमें उन्हें क्लीनचिट नहीं मिल पाई थी.

रिपोर्ट के अनुसार, विश्व हिंदू परिषद के नेता शरण पंपवेल ने कहा, ‘स्टेन स्वामी अर्बन नक्सल थे, जिन्हें गैरकानूनी गतिविधि निवारक अधिनियम (यूएपीए) के तहत गिरफ्तार किया गया था और उन पर आतंकवाद और भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में उनकी कथित भूमिका सहित गंभीर आरोप लगे हैं.

पंपवेल ने कहा, ‘हम पार्क के नामकरण के खिलाफ नहीं हैं, वो इसका नाम ऑस्कर फर्नांडीस या जॉर्ज फर्नांडीस या सेंट एलॉयसियस कॉलेज के संस्थापक के नाम पर रख सकते हैं, जिन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में बहुत योगदान दिया है, लेकिन स्टेन स्वामी के नाम पर नहीं. वैसे तो स्वामी की मौत हो चुकी है, लेकिन उनके खिलाफ लगे आरोपों को खारिज नहीं किया गया है.’

पुलिस सूत्रों का कहना है कि कॉलेज प्रबंधन ने गुरुवार (सात अक्टूबर) को नामकरण समारोह निर्धारित किया था, लेकिन राष्ट्रपति के कर्नाटक दौरे की वजह से पुलिस की व्यस्तता के कारण इसे स्थगित करना पड़ा.

सूत्रों ने कहा कि मामले पर चर्चा निजी थी और प्रबंधन ने नामकरण को स्थगित कर दिया, लेकिन स्टेन स्वामी के नाम पर पार्क के नामकरण के फैसले पर विचार किया जा रहा है. दरअसल उन्होंने दक्षिणपंथी संगठनों से इस तरह के विरध की उम्मीद नहीं की थी.

बता दें कि एनआईए ने एल्गार परिषद मामले में स्टेन स्वामी की संलिप्तता के आरोप में उन्हें पिछले साल आठ अक्टूबर को गिरफ्तार किया गया था. इस मामले में गिरफ्तार किए गए स्वामी 16वें और सबसे उम्रदराज व्यक्ति थे.

उनकी गिरफ्तारी के समय वह कमजोर और बीमार थे और पार्किंसंस बीमारी से ग्रसित थे. उन्हें गिलास से पानी पीने में भी समस्या होती थी और वह पूरी तरह से अपने साथी कैदियों की मदद पर निर्भर थे. इसके बावजूद चिकित्सा आधार पर कई बार अनुरोध के बाद भी उन्हें जमानत नहीं दी गई.

इस साल मई में स्वामी ने उच्च न्यायालय की अवकाश पीठ को वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से बताया था कि तलोजा जेल में उनका स्वास्थ्य लगातार बिगड़ता ही रहा है.

उन्होंने उच्च न्यायालय से उस वक्त अंतरिम जमानत देने का अनुरोध किया था और कहा था कि अगर चीजें वहां ऐसी ही चलती रहीं तो वह ‘बहुत जल्द मर जाएंगे.’ वे अपने आखिरी समय में रांची में अपने लोगों के साथ रहना चाहते थे.

स्टेन स्वामी की मौत को लेकर उनके करीबियों के अलावा कई राजनीतिक दलों ने भी गहरी नाराजगी जताई थी और उनकी मौत के लिए केंद्र सरकार एवं जांच एजेंसियों को जिम्मेदार ठहराया था.

बॉम्बे हाईकोर्ट के निर्देश पर उनका इलाज मुंबई स्थित एक निजी अस्पताल (होली फैमिली हॉस्पिटल) में चल रहा था. एल्गार परिषद मामले में नवी मुंबई की तलोजा जेल में बंद रहे स्वामी को इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराने का आदेश बीते 28 मई को अदालत ने दिया था.

उन पर लगे यूएपीए के कड़े प्रावधानों की वजह से उन्हें जमानत नहीं मिल पाई थी और आखिरकार कोविड-19 से संक्रमित होने के बाद उन्होंने पांच जुलाई 2021 को जेल में दम तोड़ दिया.

एल्गार परिषद मामला पुणे में 31 दिसंबर 2017 को आयोजित संगोष्ठी में कथित भड़काऊ भाषण से जुड़ा है. पुलिस का दावा है कि इस भाषण की वजह से अगले दिन शहर के बाहरी इलाके में स्थित कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक के पास हिंसा हुई. पुलिस का दावा है कि इस संगोष्ठी का आयोजन करने वालों का संबंध माओवादियों के साथ था.