आरटीआई क़ानून: सूचना आयोगों ने संभावना के बावजूद 95 फ़ीसदी मामलों में जुर्माना नहीं लगाया

आरटीआई क़ानून की 16वीं वर्षगांठ के मौके पर पारदर्शिता की दिशा में काम करने वाले संगठनों सतर्क नागरिक संगठन और ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट इस क़ानून के कार्यान्वयन की दयनीय तस्वीर पेश करते हैं. आलम ये है कि देश के 26 सूचना आयोगों में 2,55,602 अपील तथा शिकायतें लंबित हैं. इसमें कहा गया है कि आने वाले वर्षों में सबसे बड़ी चुनौती सूचना चाहने वालों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है.

(इलस्ट्रेशन: द वायर)

आरटीआई क़ानून की 16वीं वर्षगांठ के मौके पर पारदर्शिता की दिशा में काम करने वाले संगठनों सतर्क नागरिक संगठन और ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट इस क़ानून के कार्यान्वयन की दयनीय तस्वीर पेश करते हैं. आलम ये है कि देश के 26 सूचना आयोगों में 2,55,602 अपील तथा शिकायतें लंबित हैं. इसमें कहा गया है कि आने वाले वर्षों में सबसे बड़ी चुनौती सूचना चाहने वालों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है.

(इलस्ट्रेशन: द वायर)

नई दिल्ली: सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून  के तहत विभिन्न सूचना आयोगों ने पिछले वर्ष 95 फीसदी मामलों में सरकारी अधिकारियों पर जुर्माना नहीं लगाया, जबकि वे जुर्माना लगा सकते थे. यह दावा बीते सोमवार को आरटीआई कानून पर काम करने वाले एक समूह सतर्क नागरिक संगठन ने किया.

आरटीआई कानून की 16वीं वर्षगांठ की पूर्व संध्या पर यह रिपोर्ट उजागर की गई. इसमें केंद्रीय सूचना आयोग सहित 20 सूचना आयोगों पर अध्ययन किया गया है.

सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम 12 अक्टूबर, 2005 को लागू हुआ था.

‘सतर्क नागरिक संगठन’ ने बयान जारी कर बताया कि इसमें मामलों का निपटारा और उनके द्वारा लगाए गए जुर्माने के आंकड़े समाहित हैं.

समूह ने एक पूर्ववर्ती सांख्यिकीय विश्लेषण का प्रयोग किया है, जिसमें इसने दावा किया कि 59 फीसदी फैसलों में आरटीआई कानून की धारा 20 के तहत सूचीबद्ध एक या अधिक उल्लंघन किए गए. इसमें इस निष्कर्ष पर पहुंचा गया कि आयोगों ने इस दौरान 95 फीसदी मामलों में जुर्माना नहीं लगाया.

समूह ने बयान जारी कर कहा, ‘अगर 59 फीसदी मामलों का आकलन किया जाए तो 20 सूचना आयोगों द्वारा निस्तारित 69,254 मामलों में से 40,860 मामलों में जुर्माना लगाया जा सकता था. जुर्माना केवल 4.9 फीसदी मामलों में लगाया गया. इस तरह से सूचना आयोगों ने 95 फीसदी मामलों में जुर्माना नहीं लगाया, जहां जुर्माना लगाया जा सकता था.’

आरटीआई कानून के तहत 30 दिनों के अंदर आवश्यक रूप से सूचना देनी होती है और ऐसा नहीं करने पर जन सूचना अधिकारी पर प्रतिदिन 250 रुपये का जुर्माना और अधिकतम 25 हजार रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है.

कानून के मुताबिक, जनसूचना अधिकारी के वेतन से यह जुर्माना वसूला जाता है.

मालूम हो कि आज (12 अक्टूबर, 2021) भारत में आरटीआई अधिनियम के कार्यान्वयन के 16 साल पूरे हो गए. इस कानून ने लाखों लोगों को सूचना प्राप्त करने और सरकार को जवाबदेह ठहराने का अधिकार दिया है.

आरटीआई कानून के तहत सूचना आयोग अंतिम अपीलीय प्राधिकरण होते हैं. सूचना आयोग केंद्रीय स्तर (केंद्रीय सूचना आयोग- सीआईसी) और राज्यों (राज्य सूचना आयोग) में स्थापित किए गए हैं.

सतर्क नागरिक संगठन ने देश भर में सूचना आयोगों के प्रदर्शन पर आरटीआई एक्ट के तहत प्राप्त जानकारी के आधार पर ये रिपोर्ट तैयार की है. ये रिपोर्ट भारत में सभी 29 आयोगों के प्रदर्शन के बारे में है.

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं:

1. देश में तीन सूचना आयोग पूरी तरह से निष्क्रिय हैं, क्योंकि सूचना आयुक्त के पद खाली होने के बावजूद यहां किसी भी नए आयुक्त की नियुक्ति नहीं हुई है. इस समय झारखंड, त्रिपुरा और मेघालय के आयोग पूरी तरह से निष्क्रिय पड़े हुए हैं.

2. अन्य तीन सूचना आयोग (नगालैंड, मणिपुर और तेलंगाना) वर्तमान में बिना मुख्या सूचना आयुक्त के काम कर रहे हैं.

3. 25 सूचना आयोगों द्वारा एक अगस्त, 2020 और 30 जून, 2021 के बीच 1,56,309 अपीलें और शिकायतें दर्ज की गईं. इसी अवधि के दौरान 27 आयोगों द्वारा 1,35,979 मामलों का निपटारा किया गया.

4. 26 सूचना आयोगों में 30 जून, 2021 तक लंबित अपीलों और शिकायतों की संख्या 2,55,602 थी. आयोगों में अपीलों/शिकायतों का बैकलॉग लगातार बढ़ता जा रहा है. साल 2019 के आकलन में पाया गया था कि 31 मार्च, 2019 तक 26 सूचना आयोगों में कुल 2,18,347 अपीलें/शिकायतें लंबित थीं.

5. आकलन से पता चलता है कि ओडिशा सूचना आयोग को प्रति मामले को निपटाने में सबसे ज्यादा औसतन छह साल आठ महीने का समय लग रहा है. यानी कि यदि आज इस आयोग में कोई शिकायत या अपील दायर करता है तो उसका निपटारा साल 2028 में हो सकेगा.

6. इसी तरह प्रति मामले को निपटाने में गोवा के आयोग में पांच साल 11 महीने, केरल में चार साल 10 महीने और पश्चिम बंगाल में चार साल सात महीने का समय लग रहा है.

7. केंद्रीय सूचना आयोग में अपील/शिकायत के निपटारे के लिए औसतन एक साल 11 महीने का समय लग रहा है. वहीं महाराष्ट्र के आयोग में मामले के निपटारे में तीन साल छह महीने का समय लगता है.

8. आकलन से पता चलता है कि 13 आयोगों को नए मामले को निपटाने में 1 साल या उससे अधिक का समय लग रहा है.

आरटीआई आवेदकों के उत्पीड़न और हत्या के मामले बढ़ रहे हैं

आरटीआई एक्ट के कार्यान्वयन की स्थिति पर आई एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार, देश भर में आरटीआई आवेदकों के उत्पीड़न और हत्या के मामले बढ़ रहे हैं और आने वाले वर्षों में उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना सबसे बड़ी चुनौती है.

आरटीआई दिवस (12 अक्टूबर) की पूर्व संध्या पर ‘ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया’ द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले 15-16 वर्षों में कम से कम 95-100 आरटीआई आवेदकों की हत्या हुई है, जबकि 190 अन्य पर हमला किया गया.

रिपोर्ट में कहा गया है कि कई ने आत्महत्या की और उनमें से सैकड़ों ने शक्तिशाली लोगों द्वारा उन्हें परेशान किए जाने की सूचना दी.

गैर-सरकारी संगठन ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया (टीआईआई) द्वारा ‘स्टेट ट्रांसपेरेंसी रिपोर्ट 2021’ शीर्षक वाली रिपोर्ट में कहा गया है कि इतनी भयावह स्थिति होने के बावजूद सरकार देश के हित में अपनी जान गंवाने वाले आरटीआई कार्यकर्ताओं और सूचना चाहने वालों पर कोई डाटा नहीं रखती है.

इसमें कहा गया है, ‘आने वाले वर्षों में सबसे बड़ी चुनौती सूचना चाहने वालों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है, क्योंकि देशभर में आरटीआई आवेदकों के उत्पीड़न और हत्या के मामले बढ़ रहे हैं.’

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘कार्यान्वयन की स्थिति में पिछले कुछ वर्षों में सुधार हुआ है, कई जमीनी स्तर के अध्ययन अभी भी शहरी-ग्रामीण जनता के बीच अधिनियम के उपयोग में व्यापक अंतर बताते हैं.’

रिपोर्ट में कहा गया है कि सार्वजनिक प्राधिकरणों द्वारा जानकारी देने में टाल-मटोल, नागरिकों के प्रति अधिकारियों के शत्रुतापूर्ण दृष्टिकोण और जानकारी छिपाने के लिए अधिनियम के प्रावधानों की गलत व्याख्या, सार्वजनिक हित क्या है, इस पर स्पष्टता की कमी, निजता का अधिकार इत्यादि आरटीआई अधिनियम के प्रभावी कार्यान्वयन के रास्ते में खड़े हैं.

इसमें कहा गया है, ‘कई राज्य सूचना आयोग वर्षों से बिना किसी सूचना आयुक्त के चल रहे हैं, सूचना आयोग आरटीआई अधिनियम के अनुपालन पर सार्वजनिक प्राधिकरणों से जानकारी प्राप्त करने में विफल रहे हैं.’

इसमें कहा गया है कि वर्तमान में मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों के 165 पदों में से 36 पद खाली हैं.

भोपाल के एक आरटीआई कार्यकर्ता अजय दुबे ने कहा कि आरटीआई अधिनियम में शासन के तरीके को बदलने की क्षमता है.

उन्होंने कहा, ‘आरटीआई शासन में वांछित जन-हितैषी सुधार ला सकता है, यदि इस कानून को पूरी भावना के साथ लागू किया जाता है. सरकारों को यह सुनिश्चित करने के अलावा आरटीआई आवेदनों और अपीलों का समय पर निपटान सुनिश्चित करना चाहिए कि केंद्रीय और राज्य सूचना आयोग हर समय पूरी क्षमता से काम करें.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)