धनबाद के अतिरिक्त ज़िला एवं सत्र न्यायाधीश उत्तम आनंद की मौत के मामले में झारखंड हाईकोर्ट ने सीबीआई निदेशक को पेश होने के लिए कहते हुए कहा कि एजेंसी ने जांच पूरी करने और आरोप-पत्र दाख़िल करते हुए ‘बाबूओं’ की तरह काम किया. ऐसा लगता है कि यह केवल औपचारिकता पूरी करने के लिए दाख़िल किया गया है.
रांची: झारखंड उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को धनबाद के न्यायाधीश की हत्या मामले में ‘घिसा-पिटा’ आरोप-पत्र दाखिल करने के लिए केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को फटकार लगाई.
अदालत ने सीबीआई निदेशक को इस मामले में वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से पेश होने का आदेश दिया.
अदालत ने कहा कि ऐसा जान पड़ता है कि एजेंसी ने जांच पूरी करने और आरोप-पत्र दाखिल करते हुए ‘बाबूओं’ की तरह काम किया.
मामले की सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश रवि रंजन और जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की खंडपीठ ने धनबाद के अतिरिक्त जिला न्यायाधीश उत्तम आंनद की हत्या के मामले की सीबीआई जांच को लेकर कहा कि दाखिल किया गया आरोप-पत्र आरोपी के खिलाफ लगाए गए आरोपों की पुष्टि नहीं कर सकता.
पीठ ने इस मामले में सीबीआई निदेशक को वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से पेश होने का आदेश दिया.
न्यायाधीशों ने कहा कि आरोप-पत्र नियमित तरीके से दाखिल किया गया और ऐसा लगता है कि यह केवल औपचारिकता पूरी करने के लिए दाखिल किया गया है.
पीठ ने कहा कि आरोप-पत्र आईपीसी की धारा 302 के अंतर्गत दाखिल किया गया है. हालांकि, इसमें ऐसा कोई तथ्य नहीं है, जो कि इस अपराध में आरोपी की तरफ उंगली उठाता हो. पीठ ने कहा कि आरोप-पत्र अस्पष्ट है.
गौरतलब है कि धनबाद के 49 वर्षीय जिला एवं सत्र न्यायाधीश उत्तम आनंद बीते 28 जुलाई की सुबह टहलने निकले थे, जब रणधीर चौक के पास एक ऑटो रिक्शा उनकी ओर मुड़ा और उन्हें पीछे से टक्कर मारकर भाग गया.
पहले इस घटना को हिट एंड रन केस माना जा रहा था, लेकिन घटना का सीसीटीवी फुटेज सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद पता चला कि ऑटो रिक्शा चालक ने कथित तौर पर जान-बूझकर जज को टक्कर मारी थी.
इससे पहले हाईकोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए फॉरेंसिक स्टेट लेबोरेटरी और राज्य सरकार से लैब में रिक्तियों को लेकर सवाल उठाया था.
लैब टेक्नीशियन की अनुपस्थिति के कारण धनबाद में अपराध स्थल से एकत्र किए गए नमूने जांच के लिए राज्य से बाहर भेजे गए थे.
उच्च न्यायालय राज्य सरकार को कुंभकरण की तरह सोने के लिए फटकार लगाई थी और झारखंड राज्य को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था कि फोरेंसिक लैब में सभी नियुक्तियां तीन महीने के भीतर पूरी हो जाएं.
30 जुलाई को शीर्ष अदालत ने स्वत: संज्ञान लिया था और जांच पर झारखंड के मुख्य सचिव और डीजीपी से एक सप्ताह के भीतर स्थिति रिपोर्ट मांगी थी और कहा था कि खबरें और वीडियो क्लिप से संकेत मिलता है कि ‘यह साधारण सड़क दुर्घटना का मामला नहीं था.’
जिला एवं सत्र न्यायाधीश उत्तम आनंद की मौत मामले में गिरफ्तार ऑटो चालक लखन कुमार वर्मा धनबाद के सुनार पट्टी का रहने वाला है, जबकि दूसरा आरोपित राहुल वर्मा भी स्थानीय निवासी है.
लखन कुमार वर्मा ने स्वीकार किया है कि घटना के वक्त ऑटो वही चला रहा था. उसकी गिरफ्तारी गिरिडीह से हुई, जबकि दूसरे आरोपित राहुल वर्मा की गिरफ्तारी धनबाद स्टेशन से हुई.
दोनों को घटना के अगले दिन बीते 29 जुलाई को गिरफ्तार किया गया था.
पुलिस ने शुरू में न्यायाधीश की मौत के मामले की जांच शुरू की थी. धनबाद के एसएसपी और डीजीपी ने अदालत को त्वरित जांच का आश्वासन दिया था, हालांकि बीते 31 जुलाई को झारखंड सरकार ने मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी थी.
इसके बाद सीबीआई ने बीते चार अगस्त से इस मामले की जांच कर रही है और हाईकोर्ट जांच में प्रगति की निगरानी कर रहा है. केंद्रीय एजेंसी मामले की जांच की स्थिति पर अदालत को सीलबंद रिपोर्ट सौंपती रही है.
सितंबर महीने की शुरुआत में मामले की सुनवाई करते हुए अदालत ने कहा था कि घटना के पांच सप्ताह बाद भी तीन संदिग्धों की अभी तक पहचान नहीं हो पाई है, जबकि सीसीटीवी फुटेज में वे स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं, यह निराशाजनक है.
बीते 23 सितंबर को सीबीआई ने बताया था कि ऑटो चालक ने न्यायाधीश को जान-बूझकर टक्कर मारी थी और यह कोई हादसा नहीं था. घटना के पीछे के षड्यंत्र की जांच की जा रही है.
अदालत ने कहा था कि ऐसा पहली बार हुआ है, जब किसी न्यायिक अधिकारी की हत्या की गई है. इस घटना से न्यायिक अधिकारियों का मनोबल कम हुआ है और अगर इस मामले का जल्द से जल्द खुलासा नहीं किया गया तो यह न्यायिक व्यवस्था के लिए सही नहीं होगा.
बीते अगस्त माह में सीबीआई द्वारा जांच अपने हाथ में लेने के बाद पहली बार इस मामले की सुनवाई करते हुए झारखंड हाईकोर्ट ने जांच का उचित अपडेट नहीं दे पाने के लिए एजेंसी के जांच अधिकारी की खिंचाई करते हुए कहा था कि उन्हें विवरण के साथ मामले की पूरी जानकारी होनी चाहिए.