उत्तर प्रदेश की ग़ाज़ियाबाद पुलिस द्वारा एक मुस्लिम बुज़ुर्ग के साथ कथित तौर पर मारपीट, उनकी दाढ़ी खींचने और उन्हें ‘जय श्री राम’ कहने के लिए मजबूर करने से संबंधित एक वीडियो वायरल होने को लेकर ट्विटर इंडिया के प्रबंध निदेशक मनीष माहेश्वरी को जारी किए गए नोटिस को कर्नाटक हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. ट्विटर ने अगस्त में माहेश्वरी को अमेरिका स्थानांतरित कर दिया था.
नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश में गाजियाबाद के लोनी इलाके में कुछ महीने पहले एक मुस्लिम बुजुर्ग पर किए गए हमले के संबंध में उच्चतम न्यायालय ने राज्य सरकार की याचिका पर ट्विटर के पूर्व प्रबंध निदेशक मनीष माहेश्वरी को शुक्रवार को नोटिस जारी किया.
इस याचिका में सोशल मीडिया मंच पर उपयोगकर्ता द्वारा साझा की गई कथित सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील वीडियो की जांच के सिलसिले में माहेश्वरी को व्यक्तिगत रूप से पेश होने की नोटिस रद्द करने के कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी गई है.
प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की दलीलों पर गौर करने के बाद माहेश्वरी को नोटिस जारी किया. ट्विटर ने अगस्त में माहेश्वरी को अमेरिका स्थानांतरित कर दिया था.
पीठ ने कहा, ‘हमने नोटिस जारी कर दिया. हमें मामले पर सुनवाई करने की जरूरत है.’
इससे पहले राज्य सरकार ने आठ सितंबर को याचिका पर तत्काल सुनवाई का अनुरोध किया था. याचिका गाजियाबाद के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के माध्यम से दायर कराई गई है.
कर्नाटक उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा ट्विटर के तत्कालीन प्रबंध निदेशक माहेश्वरी को भेजा गया नोटिस 23 जुलाई को रद्द कर दिया था.
उच्च न्यायालय ने अपराध प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 41 (ए) के तहत जारी नोटिस को ‘दुर्भावनापूर्ण’ करार देते हुए कहा था कि इस पर सीआरपीसी की धारा 160 के तहत गौर किया जाना चाहिए, जिससे गाजियाबाद पुलिस को उनके कार्यालय या बेंगलुरु में उनके आवासीय पते पर ऑनलाइन माध्यम से माहेश्वरी से सवाल पूछने की अनुमति मिली.
सीआरपीसी की धारा 41 (ए) पुलिस को किसी आरोपी को शिकायत दर्ज होने पर उसके सामने पेश होने के लिए नोटिस जारी करने की शक्ति देता है और यदि आरोपी नोटिस का अनुपालन करता है और सहयोग करता है, तो उसे गिरफ्तार करने की आवश्यकता नहीं होगी.
अदालत ने इस बात पर जोर दिया था कि सीआरपीसी की धारा 41 (ए) के तहत कानून के प्रावधानों को ‘उत्पीड़न के हथियार’ बनने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए और इस मामले में गाजियाबाद पुलिस ने ऐसी कोई सामग्री पेश नहीं की है, जो याचिकाकर्ता की प्रथमदृष्टया संलिप्तता को प्रदर्शित करे, जबकि पिछले कई दिनों से सुनवाई चल रही है.
बता दें कि ट्विटर पर गाजियाबाद के लोनी इलाके में एक मुस्लिम बुजुर्ग के साथ मारपीट, उनकी दाढ़ी खींचने और उन्हें जय श्री राम कहने के लिए मजबूर करने से संबंधित एक वीडियो वायरल होने के मामले में गाजियाबाद पुलिस ने मनीष माहेश्वरी 17 जून को नोटिस जारी किया था और उनसे मामले में सात दिन के भीतर लोनी बॉर्डर थाने में अपना बयान दर्ज कराने को कहा गया था.
इसके कुछ दिन बाद ही पुलिस ने उन्हें एक और नोटिस जारी कर कहा कि अगर वह 24 जून को उसके समक्ष पेश नहीं हुए और जांच में शामिल नहीं हुए तो इसे जांच में बाधा के समान माना जाएगा और कानूनी कार्रवाई की जाएगी. जिसके खिलाफ माहेश्वरी ने कर्नाटक उच्च न्यायालय का रुख किया था. उस समय वह कर्नाटक के बेंगलुरु शहर में ही रह रहे थे.
गौरतलब है कि गाजियाबाद पुलिस ने 15 जून को ट्विटर इंक, ट्विटर कम्युनिकेशंस इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (ट्विटर इंडिया), समाचार वेबसाइट द वायर, पत्रकार मोहम्मद जुबैर और राणा अयूब के अलावा कांग्रेस नेताओं- सलमान निजामी, मस्कूर उस्मानी, शमा मोहम्मद और लेखिका सबा नकवी के खिलाफ मामला दर्ज किया था.
उन पर एक वीडियो को प्रसारित करने का मामला दर्ज किया गया था, जिसमें बुजुर्ग व्यक्ति अब्दुल शमद सैफी ने पांच जून को आरोप लगाया था कि उन्हें कुछ युवकों ने पीटा था और ‘जय श्री राम’ का नारा लगाने के लिए कहा था.
पुलिस के मुताबिक, वीडियो को सांप्रदायिक अशांति फैलाने के मकसद से साझा किया गया था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)