मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने कहा कि कई अदालतों में पर्याप्त सुविधाएं नहीं हैं. वे जर्जर इमारतों में काम कर रही हैं. सिर्फ़ पांच प्रतिशत अदालत परिसरों में ही मूलभूत चिकित्सा सुविधाएं हैं. वहीं 26 प्रतिशत अदालत परिसरों में महिलाओं के लिए अलग शौचालय नहीं हैं और 16 प्रतिशत में पुरुषों के लिए शौचालय नहीं हैं. उन्होंने कहा कि केवल 54 प्रतिशत अदालत परिसरों में स्वच्छ पेयजल की व्यवस्था है.
नई दिल्ली: भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने बीते शनिवार को कहा कि न्याय तक पहुंच में सुधार लाने के लिए न्यायिक बुनियादी ढांचा महत्वपूर्ण है, लेकिन यह ध्यान देने वाली बात है कि देश में इसमें सुधार और इसका रखरखाव अस्थायी और अनियोजित तरीके से किया जा रहा है.
प्रभावी न्यायपालिका के अर्थव्यवस्था में मददगार होने का उल्लेख करते हुए सीजेआई ने कहा कि विधि द्वारा शासित किसी भी समाज के लिए न्यायालय बेहद आवश्यक हैं.
सीजेआई रमना बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद पीठ के उपभवन की दो शाखाओं के उद्घाटन के मौके पर बोल रहे थे. इस अवसर पर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे, केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री किरेन रिजीजू और अन्य लोग उपस्थित रहे.
उन्होंने कहा कि आज की सफलता के कारण हमें मौजूदा मुद्दों के प्रति आंखें नहीं मूंदनी चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘हम कई मुश्किलों का सामना कर रहे हैं जैसे कि कई अदालतों में पर्याप्त सुविधाएं नहीं हैं. कई अदालतें जर्जर इमारतों में काम कर रही हैं. न्याय तक पहुंच में सुधार लाने के लिए न्यायिक बुनियादी ढांचा जरूरी है.’
जस्टिस रमना ने कहा, ‘यह चौंकाने वाली बात है कि न्यायिक बुनियादी ढांचे में सुधार और उसका रखरखाव अस्थायी और अनियोजित तरीके से किया जा रहा है.’
उन्होंने कहा कि शनिवार को औरंगाबाद में जिस इमारत का उद्घाटन किया गया, उसकी परिकल्पना 2011 में की गई थी.
सीजेआई रमना ने कहा, ‘इस योजना को लागू करने में 10 साल का समय लग गया, यह बड़ी चिंता की बात है. एक प्रभावी न्यायपालिका अर्थव्यवस्था की वृद्धि में मदद कर सकती है.’
न्यायाधीश ने कहा, ‘भारत में अदालतों के लिए अच्छा बुनियादी ढांचा हमेशा बाद वाला विचार रहा है. इस मानसिकता के कारण भारत में अदालतें अब भी जर्जर इमारतों से काम कर रही हैं, जिससे उनके लिए प्रभावी तरीके से काम करना मुश्किल हो गया है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘न्यायिक बुनियादी ढांचा न्याय तक पहुंच में सुधार करने और जनता की बढ़ती मांगों को पूरा करने के लिए महत्वपूर्ण है, जनता अपने अधिकारों को लेकर अधिक जागरूक है और उसका आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक रूप से विकास हो रहा है. एक प्रभावी न्यायपालिका से अर्थव्यवस्था की प्रभावी वृद्धि में मदद मिल सकती है.’
सीजेआई ने साल 2018 में प्रकाशित एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन का भी हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि समय पर न्याय देने में विफलता का देश पर वार्षिक जीडीपी के नौ प्रतिशत जितना असर पड़ता है.
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि उन्होंने राष्ट्रीय न्यायपालिका बुनियादी ढांचा प्राधिकरण स्थापित करने का प्रस्ताव केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री को भेजा है तथा उन्हें सकारात्मक जवाब की उम्मीद है और संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में इस मुद्दे पर विचार किया जाएगा.
सीजेआई ने कहा कि सामाजिक क्रांति के कई विचार जिनके कारण स्वतंत्रता हासिल हुई, उन्हें हम सभी आज हल्के में लेते हैं, वे इस उर्वर और प्रगतिशील भूमि से पैदा हुए.
उन्होंने कहा, ‘चाहे असाधारण ज्योतिराव फुले रहे हों या अग्रणी नारीवादी सावित्री फुले या दिग्गज डॉ. भीमराव आंबेडकर हों, उन्होंने हमेशा एक समतावादी समाज के लिए प्रेरित किया, जहां प्रत्येक व्यक्ति की प्रतिष्ठा के अधिकार का सम्मान किया जाए. उन्होंने एक साथ मिलकर एक अपरिवर्तनीय सामाजिक बदलाव को गति दी, जो अंतत: हमारे संविधान में बदला.’
उन्होंने कहा कि यह आम धारणा है कि केवल अपराधी और पीड़ित ही अदालतों का रुख कर सकते हैं और लोग गर्व महसूस करते हैं कि वे कभी अदालत नहीं गए या उन्होंने अपने जीवन में कभी अदालत का मुंह नहीं देखा.
उन्होंने कहा, ‘अब वक्त आ गया है कि हम इस भ्रांति को खत्म करें. आम आदमी अपने जीवन में कई कानूनी मुद्दों का सामना करता है. हमें अदालत जाने से हिचकिचाना नहीं चाहिए. आखिरकार न्यायपालिका में लोगों का भरोसा लोकतंत्र की बड़ी ताकत में से एक है.’
न्यायाधीश रमना ने कहा कि अदालतें किसी भी ऐसे समाज के लिए अत्यधिक आवश्यक हैं, जो विधि द्वारा शासित हैं, क्योंकि ये न्याय के संवैधानिक अधिकार को सुनिश्चित करते हैं.
उन्होंने कहा कि देश में न्यायिक अधिकारियों की स्वीकृत संख्या 24,280 है और अदालत कक्षों की संख्या 20,143 है.
उन्होंने कहा, ‘26 प्रतिशत अदालत परिसरों में महिलाओं के लिए अलग शौचालय नहीं हैं और 16 प्रतिशत में पुरुषों के लिए शौचालय नहीं हैं.’
उन्होंने कहा कि केवल 54 प्रतिशत अदालत परिसरों में स्वच्छ पेयजल की व्यवस्था है. पांच प्रतिशत अदालत परिसरों में ही मूलभूत चिकित्सा सुविधाएं हैं.
सीजेआई ने कहा कि सिर्फ 32 प्रतिशत अदालत कक्षों में अलग रिकॉर्ड कक्ष हैं. वहीं 51 प्रतिशत में पुस्तकालय है. केवल 27 प्रतिशत अदालत कक्षों में न्यायाधीशों की मेज पर कम्प्यूटर रखे हुए हैं, जिनमें वीडियो कांफ्रेंस की सुविधा है//.
इस कार्यक्रम में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, ‘अभी तक महाराष्ट्र में 48 लाख से अधिक मुकदमे लंबित हैं, जिनमें से करीब 21,000 मामले तीन दशक से भी ज्यादा पुराने हैं. हमारे सामने ये कुछ समस्याएं हैं. इसके लिए आत्मावलोकन की आवश्यकता है.’
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि औरंगाबाद की इमारत महाराष्ट्र के इतिहास में एक मील का पत्थर है. उन्होंने कहा कि यह भवन महाराष्ट्र के लोकाचार का प्रतीक है. उन्होंने कहा कि यह इस राज्य में यह विविधता, सहिष्णुता और सांस्कृतिक बहुलता के मूल्यों का प्रतिनिधित्व करती है.
न्यायिक अवसंरचना में सुधार के लिये केंद्र ने विभिन्न कदम उठाए हैं: रिजिजू
वहीं केंद्रीय विधि और न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने लोकतंत्र को सफल बनाने के लिए एक मजबूत न्यायपालिका को अत्यंत महत्वपूर्ण बताते हुए केंद्र द्वारा बुनियादी न्यायिक ढांचे में सुधार के लिए किए गए विभिन्न फैसलों को रेखांकित किया.
कानून मंत्री ने कहा कि यह सुनिश्चित करना केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है कि न्यायपालिका को न केवल पूर्ण समर्थन दिया जाए, बल्कि उसे मजबूत भी बनाया जाए.
उन्होंने न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका के बीच ‘सामंजस्यपूर्ण संबंध’ का भी आह्वान किया.
उन्होंने कहा, ‘हमारे लोकतंत्र को सफल बनाने के लिए एक मजबूत न्यायपालिका का अत्यधिक महत्व है. हमने (न्यायिक) बुनियादी ढांचे को समर्थन प्रदान करने के लिए कई निर्णय लिए हैं, जो अहम है.’
मंत्रिमंडल की पिछली बैठक में केंद्र ने कई फैसले लिए हैं. रिजिजू ने कहा कि महत्वपूर्ण फैसलों में से एक निचली न्यायपालिका के बुनियादी ढांचे के विकास के लिए 9,000 करोड़ रुपये मंजूर करना था.
उन्होंने कहा कि इस बजट में जिला एवं अधीनस्थ न्यायालयों में सभी न्यायिक अधिकारियों के लिए 3,800 अदालत कक्ष और 4,000 आवासीय इकाइयों के निर्माण समेत अन्य फैसलों को मंजूरी दी गई है.
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार राज्य सरकारों के साथ मिलकर न्यायिक अवसंरचना के विकास के लिए रकम (9000 करोड़ रुपये) जुटाएगी.
कानून मंत्री ने कहा, ‘केंद्र 3,800 अदालत कक्ष और न्यायिक अधिकारियों के लिए 4,000 आवासीय इकाइयों के निर्माण के लिए 5,357 करोड़ रुपये प्रदान करेगा. हमने 1,450 वकीलों के कक्ष के लिए प्रावधान किया है. सरकार 1,450 शौचालय परिसरों का निर्माण करेगी और 3,800 डिजिटल कंप्यूटर कक्ष बनाएं जाएंगे.’
उन्होंने कहा कि ग्राम न्यायालयों की बेहतरी के लिये भी प्रावधान किए गए हैं. कानून मंत्री ने कहा कि एक आम नागरिक को न्याय पाने के लिए संघर्ष नहीं करना चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘यह सुनिश्चित करना हम सभी की जिम्मेदारी है कि न्याय और आम आदमी के बीच की खाई को जितना हो सके कम किया जाए.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)