छत्तीसगढ़: विरोध के बीच केंद्र ने परसा कोयला खदान में दूसरे चरण के खनन को मंज़ूरी दी

हसदेव अरण्य जंगल के लिए आंदोलन चला रहे समूहों में से एक छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन की ओर से कहा गया है कि केंद्र और राज्य सरकारें अडानी समूह की मदद करने की कोशिश कर रही हैं, जो परसा ब्लॉक के लिए माइन डेवलेपर और ऑपरेटर हैं.आदिवासियों द्वारा उठाए गए मुद्दों को अभी तक स्वीकार नहीं किया गया है. हमारी मांग है कि इस मंज़ूरी को रद्द किया जाए.

(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

हसदेव अरण्य जंगल के लिए आंदोलन चला रहे समूहों में से एक छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन की ओर से कहा गया है कि केंद्र और राज्य सरकारें अडानी समूह की मदद करने की कोशिश कर रही हैं, जो परसा ब्लॉक के लिए माइन डेवलेपर और ऑपरेटर हैं.आदिवासियों द्वारा उठाए गए मुद्दों को अभी तक स्वीकार नहीं किया गया है. हमारी मांग है कि इस मंज़ूरी को रद्द किया जाए.

(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

रायपुरः छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य में कोयला खनन के विरोध में 300 किलोमीटर पैदल मार्च कर रायपुर पहुंचे आदिवासियों से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की मुलाकात के एक हफ्ते बाद केंद्र सरकार ने राज्य में परसा कोयला ब्लॉक में खनन के लिए दूसरे चरण की मंजूरी दे दी है.

करीब 300 किलोमीटर से अधिक का यह पैदल मार्च कोयला खनन परियोजना के विरोध के रूप में किया गया था.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, सरगुजा और कोरबा जिलों के प्रदर्शनकारियों के संयुक्त प्लेटफॉर्म हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के मुताबिक, परसा आदिवासियों के आंदोलन के बावजूद क्षेत्र में आवंटित छह कोयला ब्लॉकों में से एक है।

पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने बीते 21 अक्टूबर को एक पत्र जारी कर कहा कि यह मंजूरी राज्य सरकार की सिफारिशों पर आधारित थी.

वहीं, प्रदर्शनकारियों का दावा है कि जब उन्होंने मुख्यमंत्री से मुलाकात की थी तो उन्हें बताया गया था कि केंद्र सरकार क्षेत्र में कोयला खनन पर जोर दे रही है.

हालांकि मंत्रालय की ओर से जारी पत्र में कहा गया है, ‘राज्य सरकार ने सैद्धांतिक मंजूरी में निर्धारित शर्तों के संबंध में अनुपालन रिपोर्ट पेश की और केंद्र सरकार से अंतिम मंजूरी देने का आग्रह किया था.’

हसदेव अरण्य जंगल के लिए आंदोलन चला रहे समूहों में से एक छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के मुताबिक, इससे 841 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले एक लाख पेड़ नष्ट हो जाएंगे.

मालूम हो कि इस योजना का विरोध कर रहे आदिवासियों की मांगों में से एक 2019 में प्रदान की गई पहले चरण की पर्यावरणीय मंजूरी को रद्द करना है.

छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला ने कहा, ‘हम फर्जी ग्राम सभाओं के खिलाफ लड़ रहे हैं, जो कथित तौर पर 2017-2018 में हरिहरपुर गांव, साल्ही गांव और फतेहपुर गांव में  हुई थीं. हम 2018 से जिला कलेक्टर से और हाल ही में मुख्यमंत्री और राज्यपाल से इसकी जांच की मांग कर रहे हैं.’

शुक्ला के मुताबिक, ‘केंद्र और राज्य सरकारें अडानी समूह की मदद करने की कोशिश कर रही हैं, जो परसा ब्लॉक के लिए माइन डेवलेपर और ऑपरेटर हैं.’

शुक्ला ने कहा, ‘आदिवासियों द्वारा उठाए गए मुद्दों को अभी तक स्वीकार नहीं किया गया है. हमारी मांग है कि इस मंजूरी को रद्द किया जाए.’

पिछले महीने प्रकाशित भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद की रिपोर्ट में कहा गया है कि क्षेत्र में खनन से इलाके में पानी की उपलब्धता, यहां तक कि राज्य का बड़े जलस्रोत बांगो बांध भी प्रभावित होगा और मानव-हाथियों के बीच संघर्ष बढ़ेगा.

आदिवासी प्रदर्शनकारियों में से एक ने कहा, ‘राहुल गांधी ने चुनावों से पहले हमसे वादा किया था कि हमारे क्षेत्र को बचाया जाएगा. हालांकि, सत्ता में आने के बाद कांग्रेस आदिवासियों के खिलाफ अडानी की मदद करती दिखाई दे रही है.’

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