डाबर का ‘करवा चौथ’ वाला विज्ञापन ‘जनता की असहिष्णुता के चलते वापस लिया गया: जस्टिस चंद्रचूड़

‘विधि जागरूकता के ज़रिये महिलाओं का सशक्तिकरण’ कार्यक्रम के उद्घाटन में वर्चुअल तरीके से शामिल सुप्रीम कोर्ट जज डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि जागरूकता केवल महिलाओं का मुद्दा नहीं है. महिलाओं को अधिकारों से वंचित करने का समाधान तलाशना है तो उसके पैदा होने की मानसिकता को बदलना होगा.

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जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़. (फोटो: पीटीआई)

‘विधि जागरूकता के ज़रिये महिलाओं का सशक्तिकरण’ कार्यक्रम के उद्घाटन में वर्चुअल तरीके से शामिल सुप्रीम कोर्ट जज डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि जागरूकता केवल महिलाओं का मुद्दा नहीं है. महिलाओं को अधिकारों से वंचित करने का समाधान तलाशना है तो उसके पैदा होने की मानसिकता को बदलना होगा.

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने ‘जनता की असहिष्णुता’ की वजह से समलैंगिक जोड़े को प्रदर्शित करने वाले ‘करवा चौथ’ का विज्ञापन वापस लेने पर नाराजगी जताई और कहा कि पुरुषों और महिलाओं को मानसिकता बदलने की जरूरत है.

न्यायाधीश भारतीय कंपनी डाबर के ‘करवा चौथ’ पर जारी विज्ञापन का संदर्भ दे रहे थे. करवाचौथ को लेकर डाबर कंपनी ने अपने उत्पाद ‘फेम क्रीम गोल्ड ब्लीच’ का करवाचौथ का विज्ञापन कुछ लोगों के निशाने पर आ गया था.

इस विज्ञापन को 22 अक्टूबर को लॉन्च किया गया था, जिसमें दो महिलाओं को करवाचौथ की तैयारी करते दिखाया गया था. इस विज्ञापन के अंत में पता चला था कि दोनों महिलाओं ने एक-दूसरे के लिए व्रत रखा था. दोनों को एक-दूसरे को छलनी से देखते हुए भी दिखाया गया था. यह त्योहार सामान्य तौर पर उत्तर भारत में पत्नी अपने पति की सलामती और लंबी उम्र के लिए रखती हैं.

सोशल मीडिया पर इसकी आलोचना के बाद मध्य प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने विज्ञापन नहीं हटाने पर कार्रवाई की बात कही थी, जिसके बाद डाबर इंडिया ने इसे वापस लेते हुए माफी मांग ली थी.

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘केवल दो दिन पहले, सभी को पता चला कि इस विज्ञापन को कंपनी को वापस लेना पड़ा. यह समलैंगिक जोड़े के लिए करवा चौथ का विज्ञापन था. इसे जनता की असहिष्णुता के आधार पर वापस लिया गया.’

जस्टिस ने यह बात शनिवार को वाराणसी में राष्ट्रव्यापी विधि जागरूकता कार्यक्रम ‘विधि जागरूकता के जरिये महिलाओं का सशक्तिकरण’ कार्यक्रम के उद्घाटन अवसर को डिजिटल तरीके से संबोधित करते हुए कही.

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि महिलाओं के अधिकारों के प्रति जागरूकता का तभी अर्थ होगा जब यह युवा पीढ़ी के पुरुषों में पैदा की जाए.

उन्होंने कहा, ‘जागरूकता केवल महिलाओं का मुद्दा नहीं है. मेरा मानना है कि महिलाओं को अधिकारों से वंचित करने की समस्या का हमें समाधान तलाशना है तो उसके पैदा होने के केंद्र की मानसिकता को बदलना होगा, पुरुष और महिलाओं दोनों की. महिलाओं की वास्तविक स्वतंत्रता, वास्तव में विरोधाभासी है.’

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में महिलाओं के लिए सशस्त्र बलों में शामिल होने के रास्ते खोले हैं, लेकिन एक महिला सशस्त्र बलों तक कैसे पहुंचती है? वह सशस्त्र बलों का हिस्सा कैसे बनती है? वह न्यायिक अधिकारी कैसे बनती है? इसलिए महिलाओं के कार्यस्थल में प्रवेश करने के इन रास्तों के बारे में कानूनी जागरूकता फैलानी होगी।’

इस साल फरवरी में सेना में महिला अधिकारियों को उनके पुरुष समकक्षों के बराबर स्थायी कमीशन देने का निर्देश जस्टिस चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ द्वारा दिया गया था. इसी कड़ी में बीते अक्टूबर में जस्टिस चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली एक अन्य पीठ ने केंद्र को 39 महिला सेना अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने का निर्देश दिया है.

जागरूकता अभियान राष्ट्रीय विधि सेवा प्राधिकरण के जरिये चलाय जा रहा है और इसका नेतृत्व सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश यूयू ललित कर रहे हैं. इस अभियान में राष्ट्रीय महिला आयोग और उत्तर प्रदेश राज्य विधि सेवा प्राधिकरण सहयोग कर रहा है.

यह कार्यक्रम वाराणसी में आयोजित किया गया जिसमें उच्चतम न्यायालय के जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस कृष्ण मुरारी, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल भी मौजूद रहे.

उल्लेखनीय है कि बीते रविवार को मध्य प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने मशहूर फैशन एवं आभूषण डिजाइनर सब्यसाची मुखर्जी की नई आभूषण शृंखला के विज्ञापन को वापस लेने के लिए  24 घंटे का अल्टीमेटम देते हुए इसे अश्लील और आपत्तिजनक बताया था. इसके तुरंत बाद इस विज्ञापन को वापस ले लिया गया.

सब्यसाची के आधिकारिक इंस्टाग्राम पेज से कुछ तस्वीरें पोस्ट की गई थीं, जो उनके नए मंगलसूत्र कलेक्शन का विज्ञापन थीं. विज्ञापन के लिए कई तस्वीरें जारी की गईं. इनमें से दो तस्वीरों में महिला को ब्रा के साथ मंगलसूत्र पहने दिखाया गया था. एक तस्वीर में महिला अकेली है, जबकि दूसरे में वह एक टॉपलेस शख्स के साथ है. इन तस्वीरों को लेकर सोशल मीडिया पर लोगों में नाराजगी दिखाई.

इससे पहले विश्व स्तर के सफल ब्रांड और भारत सरकार के ‘मेड इन इंडिया’ कैंपेन को चरितार्थ करने वाली कंपनी ‘फैबइंडिया’ को दिवाली के कपड़ों के एक संग्रह का नाम ‘जश्न-ए-रिवाज़’ रख देने से आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था.

कपड़ों के लोकप्रिय ब्रांड फैबइंडिया ने बीते नौ अक्टूबर को ट्विटर पर जश्न-ए-रिवाज़ नाम से नए कलेक्शन की प्रमोशनल पोस्ट की थी, जिसकी आलोचना करते हुए भाजपा नेताओं सहित कई यूजर्स ने कंपनी पर हिंदुओं के त्योहार दिवाली को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया था. विवाद के बाद ब्रांड ने इस ट्वीट को डिलीट कर यह विज्ञापन वापस ले लिया था.

इसी तरह बीते सितंबर माह में अभिनेत्री आलिया भट्ट द्वारा किया गया ‘मान्यवर ब्रांड’ के कपड़ों के एक विज्ञापन पर भी बवाल मच गया था. इस विज्ञापन में आलिया कहती हुई नजर आ रही हैं कि विवाह में ‘कन्यादान’ की जगह ‘कन्यामान’ को स्वीकृति मिलनी चाहिए. विज्ञापन का मतलब था कि लड़की कोई ‘दान’ देने की चीज नहीं, तो बेहतर होगा उसे दान देने के बजाय ‘मान’ दें और दूसरा परिवार उसे कन्या मान लें.

कुछ लोगों ने इस विज्ञापन को हिंदू धर्म और हिंदू रीति-रिवाजों के खिलाफ बताया था. इन लोगों का मानना था कि बार-बार इस तरह की चीजें बनती और प्रसारित होती हैं, जो हिंदुओं की मान्यताओं के खिलाफ हैं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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