केरल ने मुल्लापेरियार बांध के पास तमिलनाडु को दी गई पेड़ काटने की अनुमति पर रोक लगाई

पिछले सप्ताह केरल के वन विभाग द्वारा तमिलनाडु जल संसाधन विभाग को दी गई अनुमति को निरस्त करना उस आलोचना के मद्देनज़र आया है, जिसमें कहा जा रहा है कि इस क़दम से मौजूदा 126 साल पुराने मुल्लापेरियार बांध के बदले एक नए बांध की केरल की मांग कमज़ोर हो जाएगी. केरल की मांग है कि एक नया बांध बनाया जाना चाहिए और तमिलनाडु कह रहा है कि एक नए बांध की आवश्यकता नहीं है.

(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

पिछले सप्ताह केरल के वन विभाग द्वारा तमिलनाडु जल संसाधन विभाग को दी गई अनुमति को निरस्त करना उस आलोचना के मद्देनज़र आया है, जिसमें कहा जा रहा है कि इस क़दम से मौजूदा 126 साल पुराने मुल्लापेरियार बांध के बदले एक नए बांध की केरल की मांग कमज़ोर हो जाएगी. केरल की मांग है कि एक नया बांध बनाया जाना चाहिए और तमिलनाडु कह रहा है कि एक नए बांध की आवश्यकता नहीं है.

मुल्लापेरियार बांध. (फाइल फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: केरल सरकार ने मुल्लापेरियार जलाशय में बेबी बांध के रास्ते में 15 पेड़ों को काटे जाने के लिए वन विभाग द्वारा तमिलनाडु को दी गई अनुमति पर रविवार को रोक लगा दी. केरल सरकार की ओर से कहा गया है कि यह ‘गंभीर चूक’ थी तथा उन अधिकारियों के विरूद्ध कार्रवाई करने का फैसला किया, जिन्होंने यह आदेश दिया था.

यह घटनाक्रम तब सामने आया है, जब तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने एक दिन पहले ही पेड़ों की कटाई की अनुमति देने को लेकर केरल के अपने समकक्ष पिनराई विजयन को धन्यवाद दे दिया था.

केरल के वन मंत्री एके ससींद्रन ने मीडिया से कहा कि यह आदेश ‘असामान्य’ था तथा प्रधान वन (वन्यजीव) संरक्षक एवं मुख्य वन्यजीव वार्डन की ओर से गंभीर चूक है, जिन्होंने मंजूरी संबंधी आदेश जारी किया था.

ससींद्रन ने इससे पहले कहा था कि मुख्यमंत्री कार्यालय, सिंचाई मंत्री के कार्यालय या उनके कार्यालय की जानकारी के बगैर ही यह आदेश जारी किया गया था.

स्टालिन ने रविवार को मुल्लापेरियार में बेबी बांध के अनुप्रवाह में 15 पेड़ों को काटे जाने के लिए अनुमति दिए जाने को लेकर विजयन को धन्यवाद दिया था.

उन्होंने कहा था कि जल संसाधन विभाग के उनके अधिकारियों ने उन्हें बताया कि मुल्लापेरियार जलाशय के बेबी बांध के अनुप्रवाह में 15 पेड़ों को काटने की अनुमति केरल के वन विभाग ने दे दी है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले सप्ताह राज्य के वन विभाग द्वारा तमिलनाडु जल संसाधन विभाग को दी गई अनुमति को निरस्त करना उस आलोचना के मद्देनजर आया है, जिसमें कहा जा रहा है कि इस कदम से मौजूदा 126 साल पुराने बांध के बदले एक नए बांध की केरल की मांग कमजोर हो जाएगी.

दोनों राज्य बांध की स्थिरता को लेकर आमने-सामने हैं. केरल की मांग है कि एक नया बांध बनाया जाना चाहिए और तमिलनाडु कह रहा है कि एक नए बांध की आवश्यकता नहीं है.

केरल में आलोचकों को यह भी डर है कि बेबी बांध की संरचना को नीचे की ओर मजबूत करके तमिलनाडु मुल्लापेरियार जलाशय में भंडारण स्तर को 142 फीट के मौजूदा स्तर से बढ़ाकर 152 फीट कर देगा, जबकि केरल संरचनात्मक स्थिरता का हवाला देते हुए बांध में जल स्तर बढ़ाने के खिलाफ रहा है.

केरल के इडुक्की जिले में स्थित मुल्लापेरियार बांध का प्रबंधन तमिलनाडु सरकार द्वारा किया जाता है.

रिपोर्ट के अनुसार, पिछले हफ्ते तमिलनाडु के मंत्रियों के एक प्रतिनिधिमंडल ने बेबी बांध का दौरा किया था और पेड़ों को काटने की अनुमति की मांग उठाई थी. इससे पहले तमिलनाडु ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष भी इस मुद्दे को उठाया था, जो बांध पर अंतर-राज्यीय विवाद की सुनवाई कर रहा है.

बहरहाल पेड़ काटने की अनुमति रद्द करने पर केरल के वन मंत्री ससींद्रन ने कहा, ‘मुख्य वन संरक्षक की ओर से गंभीर चूक हुई है. उक्त आदेश पर रोक लगा दी गई है. ऐसा अधिकारियों की चूक के कारण हुआ है. हमने इस संबंध में आगे की कार्रवाई करने का फैसला किया है.’

उन्होंने कहा, ‘किसी भी परिस्थिति में ऐसे महत्वपूर्ण निर्णय नौकरशाही स्तर पर नहीं लिए जा सकते हैं. यह असामान्य आदेश है. हम ऐसे आदेश को जारी किए जाने की जांच करेंगे और जरूरी कार्रवाई करेंगे.’

स्टालिन ने अपने आभार संदेश में ‘मुल्लापेरियार बांध को और मजबूत करने के लिए सभी जरूरी कदम उठाने’ तथा केरल में नदी के निचले हिस्से में रह रहे लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के प्रति तमिलनाडु की कटिबद्धता दोहरायी थी.

लेकिन इसने केरल में विवाद का रूप ले लिया है क्योंकि राज्य में मुल्लापेरियार में नए बांध की मांग की जा रही है, न कि बेबी बांध को मजबूत करने की. विपक्षी कांग्रेस एवं भाजपा ने इस आदेश को वापस लेने की मांग करते हुए सरकार पर निशाना साधा.

केरल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के. सुधाकरन ने आरोप लगाया कि यह आदेश मुख्यमंत्री की जानकारी से जारी किया गया और उन्होंने वन मंत्री के इस्तीफे की मांग करने के अलावा मामले की न्यायिक जांच की भी मांग की.

पूर्व मंत्री एवं यूडीएफ विधायक पीजे जोसेफ ने कहा कि विश्वास नहीं होता कि किसी नौकरशाह ने ऐसा आदेश जारी किया. उन्होंने कहा , ‘तब मंत्री को अपने पद पर बने रहने का हक नहीं है. उक्त आदेश को वापस लिया जाना चाहिए.’

प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के. सुरेंद्रन ने भी इसका विरोध करते हुए कहा कि इस मुद्दे पर राज्य सरकार की योजना अधिकारियों को बलि का बकरा बनाने की है.

मुल्लापेरियार बांध पर केरल के साथ गतिरोध के बीच तमिलनाडु के जल संसाधन मंत्री दुरईमुरुगम ने बीते शुक्रवार को कहा था कि बेबी बांध मजबूत करने के बाद जलाशय में जलस्तर 152 फुट तक बढ़ाया जाएगा, जो कि पहले 142 फुट था.

ऐसा कोई निर्णय नहीं लेंगे जिससे मुल्लापेरियार की सुरक्षा को नुकसान पहुंचे: केरल सरकार

इस मामले को लेकर केरल के विधानसभा मे बीते सोमवार को शोर-शराबा हुआ और विपक्षी संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा (यूडीएफ) ने इस मुद्दे की न्यायिक जांच की मांग की तथा बाद में सदन से बहिर्गमन किया.

वहीं दूसरी ओर केरल सरकार ने आज स्पष्ट किया कि वह कभी भी ऐसा कोई निर्णय नहीं लेगी, जो मुल्लापेरियार बांध की सुरक्षा को खतरे में डाले या राज्य के लोगों की सुरक्षा को नुकसान पहुंचाए.

सरकार ने सदन को बताया, ‘केरल के लिए सुरक्षा और तमिलनाडु के लिए पानी’ मुल्लापेरियार मुद्दे में राज्य सरकार की घोषित नीति है और वह इस रुख से कभी भी पीछे नहीं हटेगी.’

कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्ष ने कहा कि प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) और मुख्य वन्यजीव वार्डन द्वारा पांच नवंबर को जारी किया गया आदेश, मुल्लापेरियार मुद्दे पर राज्य द्वारा अपनाए गए रुख का उल्लंघन है.

हालांकि, सरकार ने आश्वासन दिया कि राज्य के हितों के खिलाफ कोई कार्रवाई करने का कोई सवाल ही नहीं है और कहा कि इस मुद्दे पर उसकी मजबूत स्थिति मुल्लापेरियार मामले के संबंध में उच्चतम अदालत में दायर जवाबी हलफनामे में स्पष्ट की गई थी.

इस मुद्दे पर स्थगन प्रस्ताव की मांग वाले नोटिस का जवाब देते हुए वन मंत्री एके ससींद्रन ने कहा कि सरकार इस संबंध में राज्य के हितों के खिलाफ लिए गए नौकरशाही के फैसले को कभी स्वीकार नहीं करेगी.

उन्होंने कहा कि तमिलनाडु जल संसाधन विभाग के मुख्य कार्यकारी अभियंता ने बेबी बांध स्थल के पास से 23 पेड़ों को काटने की अनुमति मांगी थी.

उन्होंने कहा, ‘केरल के लिए सुरक्षा और तमिलनाडु के लिए पानी मुल्लापेरियार मुद्दे में राज्य सरकार की घोषित नीति है. राज्य विधानसभा ने इस संबंध में सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित किया था. इस रुख से पीछे नहीं हटा जाएगा.’

उन्होंने यह भी कहा कि सरकार उन परिस्थितियों की जांच कर रही है, जिसके कारण पड़ोसी राज्य को बांध स्थल से पेड़ गिराने की अनुमति देने का आदेश जारी किया गया, जो सरकारी रुख का उल्लंघन है.

ससींद्रन ने कहा कि विवादास्पद आदेश छह नवंबर को सरकार के संज्ञान में आया था. उन्होंने कहा कि छुट्टी होने के बावजूद अगले दिन ही इसे रोकने के लिए तत्काल कार्रवाई की गई थी.

उन्होंने कहा कि केरल सरकार ने अपने जवाबी हलफनामे में बांध स्थल के पास पेड़ काटने के पड़ोसी राज्य के अनुरोध की अनुमति नहीं देने के कारणों का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया था.

मंत्री ने कहा कि केरल सरकार शीर्ष अदालत में लंबित मामलों में एक नए बांध के निर्माण के लिए अपने रुख पर अड़ी हुई है.

इससे पहले कांग्रेस विधायक एवं पूर्व गृह मंत्री तिरुवन्चूर राधाकृष्णन ने शून्यकाल के दौरान यह मुद्दा उठाते हुए स्थगन प्रस्ताव पेश करना चाहा और कहा कि सदन अन्य कामकाज को रोक कर इस पर चर्चा करे.

हालांकि विधानसभा अध्यक्ष एमबी राजेश ने इस मुद्दे पर स्थगन प्रस्ताव की मांग नहीं करने का सुझाव दिया, लेकिन विपक्ष अपने रुख पर अड़ा रहा.

विपक्षी सदस्यों ने कहा कि यह एक ‘गंभीर मामला’ है. न्यायिक जांच की मांग के अलावा कांग्रेस नीत यूडीएफ विपक्ष यह भी जानना चाहता था कि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के नेतृत्व वाली सरकार ने आदेश अभी तक रद्द क्यों नहीं किया.

अध्यक्ष ने मंत्री के जवाब के आधार पर प्रस्ताव के लिए अनुमति को खारिज कर दिया और इसके बाद विपक्ष ने अपना विरोध दर्ज कराते हुए सदन से बहिर्गमन किया.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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