अमेरिका: संशोधित मुक़दमे में प्रमुख हिंदू संगठन पर कई मंदिरों में जबरन मज़दूरी करवाने का आरोप

मई में भारतीय श्रमिकों के एक समूह ने बोचासनवासी अक्षर पुरुषोत्तम स्वामीनारायण संस्था के ख़िलाफ़ मानव तस्करी एवं मजदूरी क़ानून के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए एक मुक़दमा दायर किया था. इसमें पिछले महीने किए गए संशोधन में कहा गया है कि संस्था ने भारत से आए सैकड़ों श्रमिकों को लालच देकर अपने मंदिरों में कम मज़दूरी पर काम करने के लिए मजबूर किया.

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न्यू जर्सी के रॉबिंसविले में बीएपीएस का स्वामीनारायण मंदिर. (फोटो साभार: baps.org)

मई में भारतीय श्रमिकों के एक समूह ने बोचासनवासी अक्षर पुरुषोत्तम स्वामीनारायण संस्था के ख़िलाफ़ मानव तस्करी एवं मजदूरी क़ानून के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए एक मुक़दमा दायर किया था. इसमें पिछले महीने किए गए संशोधन में कहा गया है कि संस्था ने भारत से आए सैकड़ों श्रमिकों को लालच देकर अपने मंदिरों में कम मज़दूरी पर काम करने के लिए मजबूर किया.

न्यू जर्सी के रॉबिंसविले में बीएपीएस का स्वामीनारायण मंदिर. (फोटो साभार: baps.org)

न्यूयॉर्क: अमेरिका में एक प्रमुख हिंदू संगठन को एक अपडेटेड मुकदमे में नए आरोपों का सामना करना पड़ रहा है कि उसने भारत से आए मजदूरों को लालच दिया और सैकड़ों श्रमिकों को देश भर में अपने मंदिरों में कम मजदूरी पर काम करने के लिए मजबूर किया.

इस साल मई में भारतीय श्रमिकों के एक समूह ने बोचासनवासी अक्षर पुरुषोत्तम स्वामीनारायण संस्था (बीएपीएस) के खिलाफ मानव तस्करी एवं मजदूरी कानून के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए अमेरिकी जिला न्यायालय में एक मुकदमा दायर किया था.

इसमें कहा गया था कि उन्हें रोका गया और न्यू जर्सी में विशाल स्वामीनारायण मंदिर के निर्माण के लिए लगभग एक डॉलर की मजदूरी पर काम करने के लिए मजबूर किया गया.

न्यूयॉर्क टाइम्स’ ने बुधवार को एक खबर में बताया गया कि न्यू जर्सी संघीय अदालत में दायर वाद में पिछले महीने संशोधन किया गया था.

इसमें बीएपीएस पर भारत से मजदूरों को अटलांटा, शिकागो, ह्यूस्टन और लॉस एंजिलिस के आसपास के और न्यू जर्सी के रॉबिन्सविले के मंदिरों में महज 450 डॉलर प्रति माह की मजदूरी पर काम कराने के लिए फुसलाकर लाए जाने का आरोप है.

खबर में कहा गया, ‘संशोधित मुकदमे में देश भर के मंदिरों को शामिल करने के आरोपों को और व्यापक किया गया जिसमें कुछ और लोगों ने कहा कि उन्हें भी काम पर भेजा गया था. वाद में आरोप है कि सैकड़ों श्रमिकों का संभवत: शोषण किया गया.’

न्यूयॉर्क टाइम्स की मई की खबर में कहा गया था कि शिकायत में उन छह लोगों के नाम हैं जो धार्मिक वीजा ‘आर-1 वीजा’ पर 2018 की शुरुआत से अमेरिका लाए गए करीब 200 भारतीय नागरिकों में शुमार थे.

इसमें कहा गया था कि ‘न्यू जर्सी वाले मंदिर निर्माण स्थल पर इन लोगों से अक्सर खतरनाक परिस्थितियों में कई घंटों’ तक काम कराया जाता था.

इंडिया सिविल वॉच इंटरनेशनल (आईसीडब्ल्यूआई) संगठन ने मई में पीटीआई को दिए एक बयान में कहा था कि 11 मई को तड़के एफबीआई नीत छापेमारी में न्यू जर्सी के रॉबिंसविले में स्वामीनारायण मंदिर परिसर से लगभग 200 श्रमिकों को निकाला गया, जिनमें से ज्यादातर दलित, बहुजन और आदिवासी थे. यह अमेरिका का सबसे बड़ा हिंदू मंदिर माना जाता है.

खबर में बताया गया कि संशोधित शिकायत में बीएपीएस के अधिकारियों पर, देश के श्रम कानूनों तथा धोखाधड़ी युक्त एवं भ्रष्ट संगठन निषेध कानून के उल्लंघन का आरोप लगाया गया है.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, शिकायत में जबरन श्रम, जबरन श्रम के संबंध में तस्करी, दासता, साजिश और विदेशी श्रम अनुबंध में धोखाधड़ी में शामिल होने के इरादे से आव्रजन दस्तावेजों को जब्त करने के साथ-साथ न्यूनतम मजदूरी का भुगतान करने में विफलता के आरोपों को सूचीबद्ध किया गया है.

आईसीडब्ल्यूआई ने कहा कि श्रमिकों को 1.2 अमेरिकी डॉलर प्रति घंटे का भुगतान किया जा रहा है, जो वर्तमान अमेरिकी संघीय न्यूनतम वेतन 7.25 डॉलर प्रति घंटे से काफी कम है, यहां तक ​​कि 1963 के न्यूनतम वेतन से भी कम है.

रिपोर्ट में कहा गया कि रॉबिन्सविले में काम के मानक घंटे और छुट्टी के समय श्रमिक अदृश्य ट्रेलरों में रहते थे और उन्हें मंदिर बनाने में मदद करने के लिए नौकरियों का वादा किया गया था.

हालांकि, श्रमिकों से साइट पर दिन में लगभग 13 घंटे काम कराया जाता था. इस दौरान बड़े पत्थरों को उठाना, क्रेन और अन्य भारी मशीनरी का संचालन करना, सड़कों और सीवरों का निर्माण करना, खाई खोदना और जमी बर्फ हटाने जैसे काम दिए जाते थे.

इसके लिए उन्हें 450 डॉलर प्रति माह दिया जाता था. शिकायत में कहा गया था कि उन्हें सिर्फ 50 डॉलर का नकद भुगतान किया जाता था और रकम भारत में उनके खातों में जमा करा दिया जाता था.

बीएपीएस के अधिकारियों ने किसी भी तरह की गड़बड़ी से इनकार किया था. मई में बीएपीएस के प्रवक्ता लेनिन जोशी ने आरोपों को खारिज करते हुए कहा था कि श्रमिकों ने भारत में हाथ से तराशी गई पत्थरों को जोड़ने का जटिल काम किया है.

जोशी ने कहा था, ‘हम इस प्रकार की घटनाओं से पूरी तरह हिल गए हैं और हमें भरोसा है कि पूरी जानकारी सामने आने के बाद हम जवाब दे पाएंगे और यह बता पाएंगे कि ये आरोप बिना किसी आधार के लगाए गए.’

स्क्रोल डॉट इन के मुताबिक, बोचासनवासी अक्षर पुरुषोत्तम स्वामीनारायण संस्था ने किसी भी गलत काम से इनकार किया है. संप्रदाय का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील पॉल जे. फिशमैन ने दावा किया कि संघीय सरकार ने नियमित रूप से पत्थर के कारीगरों को आर -1 वीजा के लिए अर्हता प्राप्त करने की अनुमति दी है.

उन्होंने कहा कि एजेंसियों ने नियमित रूप से उन सभी निर्माण परियोजनाओं का निरीक्षण किया, जिन पर उन कारीगरों ने स्वेच्छा से काम किया था.

बोचासनवासी अक्षर पुरुषोत्तम स्वामीनारायण संस्था अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर खुद को ‘वेदों में इसकी जड़ों के साथ एक सामाजिक-आध्यात्मिक हिंदू संगठन’ के रूप में वर्णित करती है.

अमरीकी दैनिक की रिपोर्ट के मुताबिक, स्वामीनारायण संस्था का भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी भाजपा के साथ मजबूत संबंध हैं. साल 2016 में अमेरिका में बीएपीएस को सबसे बड़ा हिंदू संप्रदाय बनाने वाले धार्मिक गुरु प्रमुख स्वामी महाराज के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कह चुके हैं कि वह उनके गुरु थे. प्रमुख स्वामी महाराज का साल 2016 में निधन हो गया था.

नरेंद्र मोदी ने उनके अंतिम संस्कार के दौरान एक भाषण दिया था और अबू धाबी में बीएपीएस के मंदिर की आधारशिला भी रखी थी. संगठन ने भी मोदी के चुनावी वादों में से सबसे महत्वपूर्ण अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए आर्थिक मदद का वादा किया गया था.

फरवरी में बोचासनवासी अक्षर पुरुषोत्तम स्वामीनारायण संस्था ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए 2.11 करोड़ रुपये का दान दिया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)