प्रख्यात लेखक और कथाकार मन्नू भंडारी का निधन

मन्नू भंडारी को ‘नई कहानी’ आंदोलन के अग्रदूतों में से एक माना जाता था, जो एक हिंदी साहित्यिक आंदोलन था. वह स्वतंत्रता बाद के उन लेखकों में से एक थीं, जिन्होंने महिलाओं के बारे में लिखा तथा अपने लेखन में मज़बूत और स्वतंत्र व्यक्ति के रूप में उन पर एक नई रोशनी डाली थी. अपने लेखन से उन्होंने महिलाओं के यौन, भावनात्मक, मानसिक और वित्तीय शोषण को भी चुनौती दी थी.

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मन्नू भंडारी. (फोटो साभार: विकिपीडिया)

मन्नू भंडारी को ‘नई कहानी’ आंदोलन के अग्रदूतों में से एक माना जाता था, जो एक हिंदी साहित्यिक आंदोलन था. वह स्वतंत्रता बाद के उन लेखकों में से एक थीं, जिन्होंने महिलाओं के बारे में लिखा तथा अपने लेखन में मज़बूत और स्वतंत्र व्यक्ति के रूप में उन पर एक नई रोशनी डाली थी. अपने लेखन से उन्होंने महिलाओं के यौन, भावनात्मक, मानसिक और वित्तीय शोषण को भी चुनौती दी थी.

मन्नू भंडारी. (फोटो साभार: विकिपीडिया)

नई दिल्ली: हिंदी की प्रख्यात लेखक मन्नू भंडारी का सोमवार को हरियाणा में गुड़गांव के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया है. वह 91 वर्ष की थीं.

‘महाभोज’ और ‘आपका बंटी’ जैसे प्रसिद्ध उपन्यासों की रचनाकार मन्नू भंडारी पिछले कुछ दिनों से बीमार थीं. उनकी बेटी रचना यादव ने बताया, ‘वह करीब 10 दिन से बीमार थीं. उनका हरियाणा के एक अस्पताल में इलाज चल रहा था, जहां आज दोपहर को उन्होंने अंतिम सांस ली.’

रचना ने बताया कि मन्नू भंडारी का अंतिम संस्कार मंगलवार को दिल्ली के लोधी रोड स्थित श्मशान घाट में किया जाएगा.

तीन अप्रैल 1931 को मध्य प्रदेश के भानपुरा में जन्मीं भंडारी प्रसिद्ध साहित्यकार राजेंद्र यादव की पत्नी थीं. वह राजस्थान के अजमेर शहर में पली-बढ़ीं. उनके पिता एक स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने अंग्रेजी से हिंदी और अंग्रेजी से मराठी के शुरुआती शब्दकोशों में से एक की रचना की थी.

उन्होंने अजमेर में अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की और फिर कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की. आगे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से हिंदी में एमए की डिग्री हासिल की थी.

मन्नू भंडारी ने अपने करिअर की शुरुआत एक हिंदी प्रोफेसर के रूप में की थी. 1952-1961 तक उन्होंने कोलकाता के बालीगंज शिक्षा सदन, 1961-1965 में कोलकाता के रानी बिड़ला कॉलेज, 1964-1991 में दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस कॉलेज में पढ़ाया और 1992-1994 तक उन्होंने उज्जैन के विक्रम विश्वविद्यालय में प्रेमचंद सृजनपीठ का निदेशक पद संभाला था.

2008 में भंडारी को उनकी आत्मकथा ‘एक कहानी ये भी’ के लिए केके बिड़ला फाउंडेशन द्वारा स्थापित व्यास सम्मान से सम्मानित किया गया था. यह पुरस्कार हर साल हिंदी में उत्कृष्ट साहित्यिक उपलब्धियों के लिए दिया जाता है.

भंडारी का पहला उपन्यास ‘एक इंच मुस्कान’ 1961 में प्रकाशित हुआ था. इसके सह-लेखक उनके पति, लेखक और संपादक राजेंद्र यादव थे.

मन्नू भंडारी ने अपनी दो रचनाओं के फिल्म रूपांतरण के लिए पटकथाएं भी लिखी थीं. इसमें बासु चटर्जी की फिल्म ‘रजनीगंधा’ (उनकी कहानी ‘यही सच है’ पर आधारित) और ‘जीना यहां’ (उनकी कहानी ‘एखाने आकाश नेई’ पर आधारित) शामिल हैं. इसके अलावा उन्होंने फिल्म ‘स्वामी’ के लिए पटकथा भी लिखी, जो शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के एक उपन्यास पर आधारित थी.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, भंडारी को ‘नई कहानी’ आंदोलन के अग्रदूतों में से एक माना जाता था, जो एक हिंदी साहित्यिक आंदोलन था, जिसे निर्मल वर्मा, राजेंद्र यादव, भीष्म साहनी, कमलेश्वर जैसे प्रसिद्ध लेखकों द्वारा शुरू किया गया था.

50 और 60 के दशक में बदलाव के मामले में समाज थोड़ा परिवर्तन के दौर से गुजर रहा था. शहरीकरण और औद्योगीकरण की शुरुआत हो रही थी, इसने और अधिक साहित्यिक बहस और चर्चा का अवसर खोल दिया था.

इसलिए भंडारी और कई अन्य लेखकों ने नई कहानी आंदोलन के हिस्से के रूप में अपने विचार प्रस्तुत किए. उन्होंने मानवीय भावनाओं पर, लैंगिक असमानता से निपटने वाले आख्यानों और कामकाजी और शिक्षित महिलाओं के एक नए वर्ग के उदय के बारे में लिखा.

मन्नू भंडारी आगे की सोच रखने वाली लेखक थीं और स्वतंत्रता के बाद के उन लेखकों में से एक थीं, जिन्होंने महिलाओं के बारे में लिखा तथा अपने लेखन में एक मजबूत और स्वतंत्र व्यक्ति के रूप में उन पर एक नई रोशनी डाली थी.

अपने लेखन के माध्यम से उन्होंने महिलाओं के यौन, भावनात्मक, मानसिक और वित्तीय शोषण को चुनौती दी, अपनी कहानियों में ऐसी महिला पात्रों का निर्माण किया, जिन्हें एक बुद्धिमान और मजबूत व्यक्तित्व के रूप में देखा गया.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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