कृषि क़ानून: सुप्रीम कोर्ट की समिति के सदस्य ने सीजेआई से रिपोर्ट सार्वजनिक करने का आग्रह किया

कृषि क़ानूनों पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त समिति के सदस्यों में से एक अनिल घानवत ने यह भी कहा कि कहा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य को क़ानूनी गारंटी बनाने और एमएसपी पर सभी कृषि फसलों की खरीद सुनिश्चित करने की किसानों की मांग ‘असंभव है और लागू करने योग्य नहीं है.’

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शेतकरी संगठन के अध्यक्ष अनिल घानवत. (फोटो: पीटीआई)

कृषि क़ानूनों पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त समिति के सदस्यों में से एक अनिल घानवत ने यह भी कहा कि कहा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य को क़ानूनी गारंटी बनाने और एमएसपी पर सभी कृषि फसलों की खरीद सुनिश्चित करने की किसानों की मांग ‘असंभव है और लागू करने योग्य नहीं है.’

शेतकरी संगठन के नेता अनिल घानवत. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: कृषि कानूनों पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त समिति के सदस्यों में से एक अनिल घानवत ने मंगलवार को प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना को एक पत्र लिखकर तीन कृषि कानूनों पर रिपोर्ट को जल्द से जल्द सार्वजनिक करने पर विचार करने या समिति को ऐसा करने के लिए अधिकृत करने का आग्रह किया.

शेतकरी संगठन के वरिष्ठ नेता घानवत ने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि वह अगले कुछ महीनों में एक लाख किसानों को दिल्ली में लामबंद करेंगे, जो तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने के फैसले के बाद भी आवश्यक कृषि सुधारों की मांग कर रहे हैं.

उन्होंने यह भी कहा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानूनी गारंटी बनाने और एमएसपी पर सभी कृषि फसलों की खरीद सुनिश्चित करने की किसानों की मांग ‘असंभव है और लागू करने योग्य नहीं है.’

प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना को 23 नवंबर को लिखे पत्र में घानवत ने कहा कि संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने के सरकार के फैसले के बाद समिति की रिपोर्ट ‘अब प्रासंगिक नहीं रह गई है’ लेकिन सिफारिशें व्यापक जनहित की हैं.

उन्होंने कहा कि यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि खास कानून अब मौजूद नहीं रहेंगे लेकिन तीनों कृषि कानूनों में परिलक्षित ‘सुधार’ की राह ‘कमजोर’ नहीं हो.

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, उन्होंने कहा, ‘यह रिपोर्ट एक शैक्षणिक भूमिका भी निभा सकती है और कई किसानों की गलतफहमी को कम कर सकती है, जो मेरी राय में, कुछ नेताओं द्वारा गुमराह किए गए हैं….’

उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 19 नवंबर को कृषि कानून वापस लिए जाने की घोषणा के बाद घानवत इस फैसले से खूह नजर नहीं दिखे थे. उनका कहना था कि यह प्रधानमंत्री मोदी द्वारा उठाया गया सबसे प्रतिगामी क़दम है, क्योंकि उन्होंने किसानों की बेहतरी के बजाय राजनीति को चुना.

घानवत  था कि सरकार का फैसला ‘बहुत दुर्भाग्यपूर्ण’ है क्योंकि इस ‘राजनीतिक कदम’ से किसानों का आंदोलन खत्म नहीं होगा और इससे भारतीय जनता पार्टी को उत्तर प्रदेश तथा पंजाब में आगामी विधानसभा चुनावों में मदद नहीं मिलेगी.

मालूम हो कि इसी साल के जनवरी महीने की 12 तारीख को तत्कालीन चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने अगले आदेश तक तीनों कृषि कानूनों को लागू करने पर रोक लगा दी थी.

साथ ही न्यायालय ने इन कानूनों के विरोध में दिल्ली की सीमाओं पर डेरा डाले किसानों और सरकार के बीच व्याप्त गतिरोध दूर करने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति गठित की थी, जिसके सदस्य भारतीय किसान यूनियन के भूपेंद्र सिंह मान, शेतकारी संगठन के अनिल घानवत, अर्थशास्त्री प्रमोद कुमार जोशी और कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी थे.

हालांकि किसान संगठनों के विरोध के चलते भारतीय किसान यूनियन के भूपेंद्र सिंह मान ने खुद को समिति से अलग कर लिया था. कमेटी बनने के बाद किसानों ने कहा था कि वे इस समिति के सामने पेश नहीं होंगे. उनका कहना था कि कोर्ट की समिति के सदस्य सरकार के समर्थक है, जो इन कानूनों के पक्षधर हैं. इसी को लेकर मान पीछे हट गए थे.

इस तीन सदस्यीय समिति ने 19 मार्च को शीर्ष अदालत को रिपोर्ट सौंप दी थी लेकिन रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया गया है.

घानवत ने प्रधान न्यायाधीश से एक सितंबर को लिखे पत्र में समिति की रिपोर्ट को सार्वजनिक करने का अनुरोध करते हुए कहा था कि इसकी ‘सिफारिशें किसानों के आंदोलन को हल करने का मार्ग प्रशस्त करेंगी.’

उस समय समिति के एक अन्य सदस्य अशोक गुलाटी का कहना था कि ये सुप्रीम कोर्ट का विशेषाधिकार है कि वे रिपोर्ट सार्वजनिक करना चाहते हैं या नहीं.

उन्होंने कहा, ‘समिति का गठन माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा किया गया था. हमने किसानों के हित को सर्वोपरि रखते हुए समयसीमा के भीतर अपनी क्षमता के अनुसार रिपोर्ट प्रस्तुत की थी. अब यह सुप्रीम कोर्ट की माननीय पीठ पर निर्भर है कि वे इसका उपयोग कैसे करना चाहते हैं, कैसे और कब इसे किसानों और सरकार के साथ साझा करना चाहते हैं. इसे सार्वजनिक करना उनका विशेषाधिकार है.’

अब घानवत ने नए पत्र में कहा है कि तीन कृषि कानूनों को विरोध करने वाले किसानों ने ‘सैद्धांतिक रूप से’ स्वीकार कर लिया था, लेकिन पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया था क्योंकि सरकार की नीति प्रक्रिया ‘परामर्श’ करने की नहीं थी.

उन्होंने सीजेआई से केंद्र को विकसित देशों में पालन की जाने वाली एक अनुकरणीय और मजबूत नीति प्रक्रिया विकसित करने और लागू करने का निर्देश देने पर विचार करने का अनुरोध किया.

घानवत ने नए कृषि कानून बनाने के लिए एक श्वेत पत्र तैयार करने को लेकर एक समिति गठित करने का भी सुझाव दिया. इस मुद्दे पर घानवत ने संवाददाताओं से कहा कि वर्तमान स्थिति उत्पन्न नहीं होती अगर उच्चतम न्यायालय ने रिपोर्ट जमा करने के कुछ दिनों के भीतर ही इसे सार्वजनिक कर दिया होता.

उन्होंने कहा, ‘रिपोर्ट सौंपे आठ माह से अधिक समय हो गया है. अब कानून निरस्त होने जा रहे हैं, कम से कम रिपोर्ट जनता को उपलब्ध कराई जाए ताकि लोगों को सिफारिशों का पता चले.’

उन्होंने कहा, ‘हम सुधार चाहते हैं. मैं देश भर में यात्रा करने जा रहा हूं और किसानों को कृषि क्षेत्र में सुधारों के लाभ के बारे में समझाऊंगा और अगले कुछ महीनों में एक लाख किसानों को कृषि सुधारों की मांग के लिए दिल्ली लाऊंगा.’

एमएसपी को कानूनी गारंटी देने की किसानों की मांग का विरोध करने पर घानवत ने कहा कि वह एमएसपी व्यवस्था के खिलाफ नहीं हैं लेकिन इसे सीमित तरीके से लागू किया जाना चाहिए.

उन्होंने सवाल किया, ‘सभी कृषि फसलों की खरीद के लिए सरकार को धन कहां से मिलेगा? अगर वह सारी फसल खरीद भी ले तो उन फसलों का भंडारण और निपटान कैसे होगा?’

घानवत ने कहा, ‘यह असंभव है और लागू करने योग्य नहीं है. सरकार का सारा राजस्व एमएसपी पर खर्च नहीं किया जा सकता है. यदि ऐसा किया जाता है तो सरकार के पास अन्य क्षेत्रों के विकास के लिए धन नहीं होगा.’ उन्होंने कहा कि इस समस्या का समाधान कृषि क्षेत्र को खोलना और किसानों को विपणन की आजादी देना है.

मालूम हो कि घानवत ने एक हालिया साक्षात्कार में कहा था कि किसानों की समस्या का समाधान ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ नहीं बल्कि ‘मुक्त बाजार व्यवस्था’ है जहां वे निर्बाध रूप से अपने उत्पादों को बेच सकें.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)