राजस्थान: क्या मंत्रिमंडल पुनर्गठन कांग्रेस के पारंपरिक वोट बैंक की ओर लौटने की बेचैनी है

राजस्थान के मंत्रिमंडल पुनर्गठन में कांग्रेस आलाकमान ने अनुसूचित जाति व जनजाति और महिलाओं को अच्छी संख्या में प्रतिनिधित्व देकर एक प्रयोग करने की कोशिश की है. राजनीतिक जानकारों का कहना है कि यह कांग्रेस की अपने पुराने और पारंपरिक वोट बैंक की ओर लौटने की छटपटाहट है.

नए मंत्रिमंडल के शपथ ग्रहण समारोह के बाद राज्यपाल कलराज मिश्र के साथ मुख्यमंत्री अशोक गहलोत. (फोटो: पीटीआई)

राजस्थान के मंत्रिमंडल पुनर्गठन में कांग्रेस आलाकमान ने अनुसूचित जाति व जनजाति और महिलाओं को अच्छी संख्या में प्रतिनिधित्व देकर एक प्रयोग करने की कोशिश की है. राजनीतिक जानकारों का कहना है कि यह कांग्रेस की अपने पुराने और पारंपरिक वोट बैंक की ओर लौटने की छटपटाहट है.

नए मंत्रिमंडल के शपथ ग्रहण समारोह के बाद राज्यपाल कलराज मिश्र के साथ मुख्यमंत्री अशोक गहलोत. (फोटो: पीटीआई)

जयपुर: आखिरकार डेढ़ साल की लंबी जद्दोज़हद के बाद राजस्थान में कांग्रेस की राजनीति का ऊंट मंत्रिमंडल पुनर्गठन के साथ बैठ ही गया. किस करवट बैठा इसे लेकर राजनीति के चाणक्यों की राय अलहदा हैं. लेकिन इस पुनर्गठन से साफ है कि कांग्रेस आलाकमान में दलित और महिला वोट बैंक को वापस अपनी ओर खींचने की बेचैनी है, जो 2014 के बाद से लगातार खिसक रहा है.

पंजाब में एक दलित को मुख्यमंत्री बनाने, प्रियंका गांधी का यूपी चुनाव में महिलाओं को 40% टिकट देने के वादे के बाद अब राजस्थान में 30 में से 9 मंत्री अनुसूचित जाति और जनजाति (एससी-एसटी) वर्ग से लाने के पीछे तर्क यही है कि कांग्रेस की नज़र 2024 के लिए अपने पारंपरिक वोट पर है. साथ ही महिला मंत्रियों की संख्या भी एक से बढ़ाकर तीन की गई है.

कांग्रेस आलाकमान राजस्थान में एससी, एसटी और महिलाओं को अच्छी संख्या में प्रतिनिधित्व देकर एक प्रयोग करने की कोशिश कर रहा है. साथ ही राजस्थान में 12% एसटी और 18% एससी वोट को 2023 के विधानसभा चुनावों में भुनाने की कोशिश के रूप में यह पुनर्गठन देखा जा रहा है.

21 नवंबर को राजस्थान में गहलोत और सचिन पायलट गुटों को ‘एकजुटता’ में बदलते हुए मंत्रिमंडल का पुनर्गठन कर दिया. कुल 15 नए मंत्रियों ने शपथ ली. इसमें 11 कैबिनेट और 4 राज्यमंत्री शामिल हैं. इन 15 मंत्रियों में से 4 एससी से हैं. इस तरह अब गहलोत मंत्रिमंडल में सभी 30 मंत्रियों में से 9 (कैबिनेट का 30%) एससी-एसटी वर्ग से आते हैं. साथ ही मंत्रिमंडल का 10% यानी 3 महिला मंत्री हैं.

इसके अलावा चार मंत्री ओबीसी (सभी जाट) वर्ग से हैं. गहलोत सरकार की ये कैबिनेट 30 मंत्रियों के साथ अब अपनी पूरी क्षमता (कुल विधानसभा सीटों का 15%) में है.

मंत्रिमंडल के इस पुनर्गठन से कांग्रेस के पंजाब, यूपी और 2023 के राजस्थान विधानसभा में चुनाव लड़ने के मुद्दों की तस्वीर भी कुछ हद तक साफ होती दिख रही है. साथ ही कांग्रेस 2024 के लोकसभा चुनावों में जिन मुद्दों को लेकर चुनाव में उतरना चाह रही है, उस पर से गर्द भी झड़ती दिख रही है. पुनर्गठन से साफ हुआ है कि कांग्रेस में अपने पुराने और पारंपरिक दलित वोट बैंक की ओर लौटने की छटपटाहट है.

प्रदेश कांग्रेस की पिछली कैबिनेट में सिर्फ एक दलित नेता भंवर लाल जाटव ही मंत्री थे. उनके निधन के बाद कोई भी दलित मंत्री नहीं था. अब चार मंत्री दलित हैं. वहीं, पहले सिर्फ एक महिला ममता भूपेश ही मंत्रिमंडल में थीं, लेकिन अब शकुंतला रावत और ज़ाहिदा खान के साथ तीन महिलाएं कैबिनेट में हैं.

प्रदेश की राजनीति के जानकार इसे प्रियंका गांधी के महिलाओं को राजनीति में प्रतिनिधित्व देने के वादे पर उतार कर देख रहे हैं क्योंकि अब राजस्थान में सबसे ज्यादा 15 महिला विधायक भी कांग्रेस से हैं. भाजपा से 10 और आरएलपी से एक महिला विधायक हैं.

मंत्रिमंडल पुनर्गठन में पांच मंत्री एसटी कोटे से भी हैं, जिनमें महेन्द्रजीत सिंह मालवीया, रमेश मीणा, परसादी लाल मीणा, मुरारी लाल और अर्जुन बामनिया हैं. पहले तीन को कैबिनेट का दर्जा दिया है.

साथ ही एससी वर्ग से आने वाले गोविंदराम मेघवाल, ममता भूपेश, टीकाराम जूली और भजन लाल जाटव को भी कैबिनेट मिनिस्टर रैंक मिली है. गोविंदराम मेघवाल पहली बार मंत्री बने हैं. वहीं बाकी तीन राज्यमंत्री से कैबिनेट मंत्री के रूप में प्रमोट हुए हैं.

द वायर  ने राजस्थान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा से कैबिनेट पुनर्गठन को लेकर बात की, तब उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस हमेशा गरीब, दलित और महिलाओं की हिमायती रही है और शुरूआत से पार्टी का कोर वोट भी रहा है. कैबिनेट पुनर्गठन में एससी, एसटी को लेकर विशेष ध्यान दिया गया है. संविधान के अनुसार और पार्टी में इन समुदायों के योगदान को देखते हुए पार्टी ने यह फैसला लिया है.’

क्या आपने यूपी, पंजाब के चुनावों को देखते हुए यह फैसला लिया है? इस सवाल के जवाब में डोटासरा कहते हैं, ‘चुनावों को देखते हुए फैसले लेना भाजपा का काम है. यूपी में चुनाव हैं तो कृषि बिल वापस ले लिए. पेट्रोल-डीजल के दाम चुनावों को देखकर तय भाजपा करती है, कांग्रेस नहीं.’

दलित वोट बैंक कांग्रेस से छिटकने की वजह डोटासरा भाजपा के झूठे वादों में फंसना बताते हैं. वे कहते हैं, ‘2014 में जब भाजपा की तरफ से नौकरी, दलित उत्थान के वादे किए गए तो गरीब लोगों ने इन पर भरोसा कर लिया, लेकिन अब 7 साल बाद जब उनकी स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है तो वे वापस हमारी ओर लौट रहे हैं. गरीब, दलित हमेशा हमारे केंद्र बिंदु में रहे हैं.’

पुनर्गठन के बाद भी नेताओं की नाराजगी को गोविंद सिंह लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा बता रहे हैं. वे कहते हैं, ‘कांग्रेस में अब कोई गुट और वर्ग नहीं है. अपनी नाराज़गी आलाकमान के सामने रखना एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया है. मंत्रिमंडल को लेकर अब कोई नाराजगी नहीं है और न ही किसी नेता ने अनुशासनहीनता की हद पर जाकर नाराजगी प्रकट की है.’

तीन महिलाओं को मंत्री बनाने को लेकर कांग्रेस प्रवक्ता डॉ. अर्चना शर्मा कहती हैं, ‘कांग्रेस पार्टी हमेशा से महिलाओं को आगे बढ़ाती है. जब केंद्र में हमारी सरकार थी तब भी महिलाओं के आरक्षण को लेकर एक बिल लाया गया, लेकिन तब विपक्षी दलों ने उसे अटका दिया. तीन महिलाओं को मंत्री बनाने में कोई जातिगत समीकरण नहीं हैं, सिर्फ महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाना ही इसका मकसद है.’

वहीं भाजपा से नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ का कहना है कि कांग्रेस अपना खोया हुआ जनाधार ढूंढ रही है.

उन्होंने द वायर  से कहा, ‘मंत्रिमंडल का गठन 19 महीने की मशक्कत के बाद हुआ है. जो फैसला माकन कमेटी ने दिया था, उसे गहलोत लागू नहीं करना चाहते थे, लेकिन अब इन्होंने यह मजबूरी में किया गया है. मंत्रिमंडल गठन के बाद ही वरिष्ठ विधायक नाराज बताए जा रहे हैं. दूसरा, कांग्रेस का बड़ा वोट बैंक एससी और अल्पसंख्यक रहा है. यहां इन्होंने कोशिश की है. अपने खोए हुए जनाधार को ढ़ूंढ़ने की कोशिश कांग्रेस कर रही है, लेकिन ये कामयाब नहीं हो पाएंगे. क्योंकि एससी-एसटी वर्ग की व्यक्तिगत लाभ की योजनाएं कांग्रेस सरकार ने बंद कर दीं. पिछली भाजपा सरकार की योजनाओं के अलावा कोई नई योजना इस सरकार में नहीं बनी है. दोनों वर्गों का कांग्रेस से मोहभंग हो चुका है.’

कांग्रेस आलाकमान का राजस्थान में एक प्रयोग है कैबिनेट पुनर्गठन

मंत्रिमंडल पुनर्गठन को लेकर कांग्रेस आलाकमान ने न सिर्फ राजस्थान साधा है बल्कि पंजाब और यूपी में भी एक संदेश देने की कोशिश की है. इस कोशिश को पंख हाल ही में हुए उपचुनावों ने दिए हैं.

तीन लोकसभा और 29 विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को उत्साहजनक परिणाम मिले हैं. कांग्रेस ने हिमाचल और राजस्थान में अच्छा प्रदर्शन किया. हिमाचल में पार्टी ने लोकसभा और दो विधानसभा सीट जीत लीं. साथ ही राजस्थान में दोनों विधानसभा सीट पर भी जीत दर्ज की.

पंजाब में 117 में से 34 सीट दलित वर्ग के लिए आरक्षित हैं. पंजाब में दलित मुख्यमंत्री बनाने के बाद अब राजस्थान में 9 मंत्री इस कोटे से लेने की वजह पंजाब और यूपी में आने वाले विधानसभा चुनाव भी बताए जा रहे हैं.

साथ ही महिलाओं का प्रतिनिधत्व बढ़ाने से प्रियंका गांधी के वादे को भी अमली जामा पहनाने की कोशिश हुई है. राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी कैबिनेट पुनर्गठन को सोशल इंजीनियरिंग का नाम दिया है.

पूर्वी राजस्थान का मंत्रिमंडल में दबदबा, यूपी तक असर

गहलोत सरकार ने मंत्रिमंडल में पहली बार पूर्वी राजस्थान को खासा महत्व दिया है. लगभग आधे मंत्री जयपुर, दौसा, भरतपुर, करौली, अलवर जैसे जिलों से आते हैं. भरतपुर और जयपुर जिले से 4-4, दौसा से तीन और अलवर से 2 मंत्री बनाए गए हैं.

पूर्वी क्षेत्र के 8 जिलों में पार्टी की मजबूती के महत्व को कांग्रेस ने समझा है क्योंकि पूर्वी राजस्थान की 58 विधानसभा सीटों में से 40 सीट कांग्रेस के पास हैं. वहीं, पूर्वी राजस्थान से जीते बसपा विधायक भी फिलहाल कांग्रेस के साथ हैं. पूर्वी राजस्थान से ज्यादा संख्या में मंत्री होने का जातिगत फायदे को कांग्रेस यूपी चुनाव में भुनाना चाहती है.

वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक मनीष गोधा कहते हैं, ‘फिलहाल लग रहा है कि राजस्थान कांग्रेस में बीते एक- डेढ़ साल से चल रही उठापटक पूरी हुई है. एससी और महिलाओं की संख्या मंत्रिमंडल में बढ़ाने का असर आने वाले चुनावों में होगा. पूर्वी राजस्थान से लगते हुए यूपी के आगरा, मथुरा वाले क्षेत्र में भी इसका असर देखने को मिलेगा.’

वहीं, लंबे समय से प्रदेश कांग्रेस कवर कर रहे पत्रकार सौरभ भट्ट थोड़ी अलग राय रखते हैं. वे कहते हैं, ‘कैबिनेट पुनर्गठन का असर राजस्थान में ही देखने को मिलेगा. पंजाब में कांग्रेस क्या कर रही है, इससे राजस्थान के वोटर को मतलब नहीं है.’

हालांकि सौरभ जोड़ते हैं कि कांग्रेस आलाकमान जातिगत समीकरणों के आधार पर 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ना चाहती है इसीलिए दलित, महिला, युवा और जाटों को राजस्थान के मंत्रिमंडल में अच्छी जगह दी है.

जाटों को मंत्री बना क्या किसानों को भी लुभाना चाहती है कांग्रेस

राजनीतिक जानकार यह भी कह मंत्रिमंडल में चार जाट नेताओं को जगह देने की वजह पार्टी ओबीसी वोट बैंक को लुभाना चाह रही है.

सौरभ कहते हैं, ‘ओबीसी में भी सिर्फ जाटों को मंत्री बनाने की वजह कृषि बिलों को लेकर भाजपा से नाराज चल रहे किसानों को अपनी तरफ लेने की कोशिश है. विश्वेन्द्र सिंह, हेमाराम, रामलाल और विजेन्द्र ओला को मंत्री बनाने के पीछे यूपी में जाट किसानों को आकर्षित करने की कोशिश कांग्रेस आलाकमान ने की है.’

कुलमिलाकर दिल्ली में बैठे कांग्रेस आलाकमान ने राजस्थान मंत्रिमंडल पुनर्गठन के जरिये 2024 लोकसभा चुनावों के लिए कई राज्यों में एक संदेश देने की कोशिश की है कि पार्टी अपने खोए हुए जनाधार को वापस पाना चाहती है. साथ ही महिलाओं और युवाओं को भी खुद से जोड़ना चाहती है.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)

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