शीर्ष अदालत ने कार्यकर्ता और वकील सुधा भारद्वाज की डिफ़ॉल्ट ज़मानत के ख़िलाफ़ एनआईए द्वारा दी गई दलीलों पर विचार करने से इनकार करते हुए कहा कि बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं दिखता.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एल्गार परिषद मामले में वकील-कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज को डिफ़ॉल्ट जमानत देने के बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की अपील को मंगलवार को खारिज कर दिया.
जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस एस. रवींद्र भट और जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी की पीठ ने एनआईए द्वारा दी गई दलीलों पर विचार करने से इनकार करते हुए कहा, ‘हमें उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं दिखता है.’
राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक दिसंबर को यह कहते हुए भारद्वाज को डिफॉल्ट जमानत दी थी कि गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) की धारा 43डी (2) और दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 167 (2)के प्रावधानों के तहत जांच और डिटेंशन के समय का विस्तार अदालत द्वारा नहीं किया गया.
Supreme Court dismisses plea of National Investigation Agency (NIA) challenging the Bombay High Court order of granting default bail to advocate-activist Sudha Bharadwaj, who was arrested and has been in jail for over two years in the Bhima Koregaon case. pic.twitter.com/uHYLjwVcgi
— ANI (@ANI) December 7, 2021
बीते सोमवार को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जब याचिका पर तत्काल सुनवाई किए जाने का आग्रह किया, तो मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने कहा था, ‘हम देखेंगे.’
मेहता ने कहा था, ‘यह तकनीकी खामी के आधार पर जमानत दिए जाने का मामला है और यह आठ दिसंबर से प्रभावी होगा, इसलिए इस मामले पर सुनवाई की आवश्यकता है.’
हाईकोर्ट ने अपने एक दिसंबर को अपने आदेश में कहा था कि भारद्वाज जमानत की हकदार हैं और जमानत देने से इनकार करना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्राप्त जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता के उनके मूल अधिकारों का हनन है.
उच्च न्यायालय ने निर्देश दिया था कि भायखला महिला जेल में बंद भारद्वाज को आठ दिसंबर को मुंबई की विशेष एनआईए अदालत में पेश किया जाए और उनकी जमानत की शर्तों एवं रिहाई की तारीख पर निर्णय लिया जाए.
भारद्वाज इस मामले में गिरफ्तार 16 कार्यकर्ताओं और शिक्षाविदों में पहली आरोपी हैं, जिन्हें तकनीकी खामी की वजह से जमानत दी गई है.
कवि और कार्यकर्ता वरवरा राव इस समय चिकित्सा के आधार पर जमानत पर हैं. फादर स्टेन स्वामी की इस साल पांच जुलाई को अस्पताल में उस समय मौत हो गई थी, जब वह चिकित्सा के आधार पर जमानत का इंतजार कर रहे थे. अन्य आरोपी विचाराधीन कैदी के तौर पर जेल में बंद हैं.
उच्च न्यायालय ने पिछले हफ्ते बुधवार को अन्य आठ आरोपियों- सुधीर धवले, वरवर राव, रोना विल्सन, सुरेंद्र गाडलिंग, शोमा सेन, महेश राउत, वर्नोन गोंजाल्विस और अरुण फरेरा की तकनीकी खामी के आधार पर जमानत देने की याचिकाएं खारिज कर दी थी.
यह मामला 31 दिसंबर 2017 को पुणे के शनिवारवाड़ा में एल्गार परिषद के कार्यक्रम में कथित तौर पर भड़काऊ भाषण देने से जुड़ा है. पुलिस का दावा है कि भड़काऊ बयानों के कारण इसके अगले दिन पुणे के बाहरी इलाके कोरेगांव-भीमा में हिंसा भड़की.
पुलिस का यह भी दावा है कि इस कार्यक्रम को माओवादियों का समर्थन हासिल था. बाद में इस मामले की जांच एनआईए को सौंप दी गई थी.
मालूम हो कि सुधा भारद्वाज को अगस्त 2018 में पुणे पुलिस द्वारा जनवरी 2018 में भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा और माओवादियों से कथित संबंधों के आरोप में गिरफ्तार किया गया था.
उन पर हिंसा भड़काने और प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के लिए फंड और मानव संसाधन इकठ्ठा करने का आरोप है, जिसे उन्होंने बेबुनियाद और राजनीति से प्रेरित बताया था.
मानवाधिकारों के लिए लड़ने वाली वकील सुधा भारद्वाज ने करीब तीन दशकों तक छत्तीसगढ़ में काम किया है. सुधा पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) की राष्ट्रीय सचिव भी हैं. अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के चलते सुधा भारद्वाज के रिहा होने का रास्ता साफ हो गया है.
रिपोर्ट के मुताबिक हाईकोर्ट ने कहा था, ‘सुधा भारद्वाज की याचिका से जो तथ्य अब तक उभरकर सामने आए हैं, उनमें पहला है कि 90 दिनों की डिटेंशन अवधि (हाउस अरेस्ट की अवधि को छोड़कर) 25 जनवरी 2019 को समाप्त हो गई थी. दूसरा, कोई चार्जशीट दायर नहीं की गई. तीसरा, नजरबंदी की अवधि बढ़ाने का कोई वैध आदेश नहीं दिया गया था और पांचवा सुधा भारद्वाज द्वारा डिफॉल्ट जमानत के लिए दायर याचिका पर फैसले का इंतजार किया जा रहा था.’
पीठ ने कहा, ‘अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश द्वारा डिटेंशन की अवधि को 90 दिनों के लिए बढ़ा गया गया था. याचिकाकर्ता सुधा भारद्वाज चार्जशीट दायर होने तक डिफॉल्ट जमानत के लिए आवेदन नहीं कर सकी थीं इसलिए यह आग्रह नहीं किया जा सकता कि याचिकाकर्ता सुधा भारद्वाज ने उक्त अवधि के दौरान याचिका दायर नहीं की थी और डिफॉल्ट जमानत के अधिकार का लाभ नहीं उठाया था.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)