छत्तीसगढ़: वेतन वृद्धि, नियमितीकरण जैसी मांगों को लेकर सरकार के ख़िलाफ़ उतरे सहायक आरक्षक

राज्य में नक्सल मोर्चे पर तैनात सहायक आरक्षकों के परिवारों ने पदोन्नति, वेतन वृद्धि जैसी कई मांगों के साथ इस हफ्ते रायपुर में प्रदर्शन किया था, जिसमें महिलाएं व बच्चे भी शामिल थे. यहां उनके साथ हुए कथित दुर्व्यवहार के बाद बीजापुर में हज़ारों सहायक आरक्षक अपने हथियार जमा करवाकर प्रदर्शन कर रहे हैं.

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रायपुर में सहायक आरक्षकों के परिजनों का प्रदर्शन. (सभी फोटो: तामेश्वर सिन्हा)

राज्य में नक्सल मोर्चे पर तैनात सहायक आरक्षकों के परिवारों ने पदोन्नति, वेतन वृद्धि जैसी कई मांगों के साथ इस हफ्ते रायपुर में प्रदर्शन किया था, जिसमें महिलाएं व बच्चे भी शामिल थे. यहां उनके साथ हुए कथित दुर्व्यवहार के बाद बीजापुर में हज़ारों सहायक आरक्षक अपने हथियार जमा करवाकर प्रदर्शन कर रहे हैं.

रायपुर में सहायक आरक्षकों के परिजनों का प्रदर्शन. (सभी फोटो: तामेश्वर सिन्हा)

बस्तर: छत्तीसगढ़ में नक्सल मोर्चे में तैनात सहायक आरक्षकों ने भूपेश बघेल सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. बुधवार को उस समय  हड़कंप मच गया जब बस्तर संभाग के अंतर्गत आने वाले बीजापुर में आधा दर्जन थानों में हजारों की संख्या में सहायक आरक्षकों ने अपने हथियार जमा कर दिया.

यह पूरा मामला राजधानी रायपुर में इन पुलिसकर्मियों के परिवारों द्वारा किए प्रदर्शन से जुड़ा हुआ है. 6 दिसंबर से 8 दिसंबर तक वेतन वृद्धि, नियमितीकरण, समान सुविधाओं जैसी कई मांगों को लेकर पुलिस में सहायक आरक्षकों के परिवार से जुड़े लोगों ने रायपुर में प्रदर्शन किया, जिसमें  महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे.

प्रदर्शनकारियों ने 6 दिसंबर को पुलिस मुख्यालय के घेराव की कोशिश भी की, जब रायपुर पुलिस ने उन्हें रोक लिया. आरोप है कि तब महिलाओं से धक्कामुक्की और मारपीट भी हुई. कई महिलाओं के कपड़े भी फट गए थे. इसके बाद उन्हें सप्रे स्कूल में बनी अस्थाई जेल में रखा गया.

इस घटना से नाराज होकर बस्तर के बीजापुर जिले में कुटरू, पुलिस लाइन, मिरतुर, गंगालूर समेत आधा दर्जन थानों में हजारों सहायक आरक्षकों ने अपना हथियार जमा किए और प्रदर्शन करने लगे.

प्रदर्शन में शामिल रमेश कोसरे ने बताया, ‘मैं सहायक आरक्षक पद पर हूं. हमारे परिवार के लोग रायपुर में प्रदर्शन में शामिल होने निकले थे लेकिन उन्हें 28 किलोमीटर पहले अभनपुर में रोक के मारपीट किया गया.’

रमेश कोसरे ने आरोप लगाया कि प्रदर्शन में शामिल होने गए सहायक आरक्षकों के परिवार के महिलाओं को कमरे में लाइट बंद कर मारा गया है.

धरने में शामिल सहायक आरक्षकों का कहना है कि वे कम वेतन में जान जोखिम में डालकर जंगलों में ड्यूटी करते हैं. शासन वेतन की बढ़ोत्तरी करे, समय पर पदोन्नति दे और समान वेतनमान दिया जाए.

उल्लेखनीय है कि नक्सल मोर्चे पर होने वाली किसी भी घटना में सुरक्षा बलों के साथ इन्हीं कर्मियों को आगे भेजा जाता ही क्योंकि ये भौगोलिक क्षेत्र से भली-भांति वाकिफ होते हैं.

बीजापुर पुलिस लाइन के सामने जुटे नगर सैनिक, गोपनीय सैनिक व सहायक आरक्षकों ने कहा कि उनकी सभी मांगें पूरी की जाएं.  उल्लेखनीय है कि सहायक आरक्षक 15,000, गोपनीय सैनिक 12,000 और नगर सैनिक 13,000 रुपये के मासिक वेतन पर काम कर रहे हैं.

खबर लिखे जाने तक बीजापुर में हजारों सहायक आरक्षक अपने हथियार थानों में जमा करने के बाद प्रदर्शन कर रहे थे. पुलिस अधीक्षक कमलोचन कश्यप ने बताया कि जवानों को समझाया जा रहा है.

मिरतुर थाने में सहायक आरक्षकों द्वारा जमा करवाए गए हथियार.

2005 में माओवादियों के खिलाफ आर-पार की लड़ाई लड़ने के लिए बस्तर के युवाओं को सर्वप्रथम रमन सिंह सरकार में एसपीओ बनाया गया था, जिसमें माओवाद छोड़कर आने वाले युवाओं को भी जोड़ा गया था.

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद एसपीओ अब सहायक आरक्षक बन गए हैं. रमन सिंह सरकार के समय भी जवानों ने इन्हीं मांगों के साथ आंदोलन किया था, तब तत्कालीन विपक्ष, जिसमें भूपेश बघेल मुख्य नेता हुआ करते थे, ने इसे लेकर रमन सिंह सरकार पर निशाना साधा था.

इन सबके बीच रमन सरकार की प्रदेश से विदाई हो गई, लेकिन सहायक आरक्षकों की मांगे वही रहीं. अब पिछली सरकार में मांगों के साथ खड़े रहे कांग्रेस नेतृत्व के लिए यह चुनौती की घड़ी है.

राजधानी रायपुर में हुए पुलिस आरक्षकों के परिवार के आंदोलन और बीजापुर में सहायक आरक्षकों द्वारा हथियार जमा किए जाने के बाद राज्य सरकार ने एक हाई पावर कमेटी का गठन किया है, जिसकी जिम्मेदारी एडीजी हिमांशु गुप्ता को सौंपी गई है.

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बुधवार सुबह यह आदेश जारी किया था, लेकिन पुलिसकर्मियों के परिजनों का कहना है कि सिर्फ आश्वासन मिला है. सरकार की ओर से जब तक नियत तारीख नहीं बता दी जाती, यह आंदोलन जारी रहेगा.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)