फिल्म पीपली लाइव के सह-निर्देशक फ़ारूक़ी बलात्कार के आरोप से बरी

दिल्ली उच्च न्यायालय ने तिहाड़ जेल में बंद महमूद फ़ारूक़ी को रिहा करने का निर्देश दिया.

दिल्ली उच्च न्यायालय ने तिहाड़ जेल में बंद महमूद फ़ारूक़ी को रिहा करने का निर्देश दिया.

Mahmood Faruqui Facebook
महमूद फ़ारूक़ी (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को फिल्म पीपली लाइव के सह-निर्देशक महमूद फ़ारूक़ी को एक अमेरिकी शोधकर्ता से बलात्कार के मामले में बरी कर दिया. अदालत ने कहा कि वह संदेह के लाभ का हक़दार हैं क्योंकि पीड़ित की गवाही विश्वसनीय नहीं है.

न्यायमूर्ति आशुतोष कुमार ने निचली अदालत के उस आदेश को भी दरकिनार कर दिया जिसके तहत बलात्कार के मामले में फ़ारूक़ी को दोषी मानते हुए सात साल की सज़ा सुनाई गई थी.

फ़ारूक़ी पर मार्च 2015 में दक्षिण दिल्ली स्थित अपने घर पर 30 वर्षीय अमेरिकी शोधार्थी से बलात्कार का आरोप था.

उच्च न्यायालय ने अपने 85 पन्नों के फैसले में निर्देश दिया कि जेल में बंद फ़ारूक़ी को तत्काल रिहा किया जाए. अदालत ने कहा कि महिला की गवाही भरोसे योग्य नहीं थी और आरोपी को संदेह का लाभ दिया जा सकता है.

अदालत ने कहा, क्या ऐसी घटना हुई थी, अगर यह हुई थी, तो क्या यह पीड़िता की सहमति से हुई थी. यह अभी तक संदेह में है. फ़ारूक़ी ने निचली अदालत के फैसले और उन्हें दी गई सज़ा को चुनौती दी थी.

बहस के दौरान फ़ारूक़ी के वकील ने महिला द्वारा लगाए गए बलात्कार के आरोपों से इनकार किया था और कहा, उस दिन ऐसी कोई घटना नहीं हुई थी. उनके वकील ने अपने मुवक्किल और महिला के बीच मामला दर्ज होने से पहले हुए संदेशों के आदान-प्रदान का हवाला देते हुए कहा कि दोनों के बीच जनवरी 2015 से रिश्ता था.

दिल्ली पुलिस के वकील ने इस दलील का विरोध करते हुए कहा था कि बलात्कार हुआ है. निचली अदालत ने 45 वर्षीय फ़ारूक़ी को सज़ा सुनाते हुए इसकी वजहें बताई थीं.

निचली अदालत ने 4 अगस्त, 2016 को उन्हें सात साल की क़ैद की सज़ा सुनाई थी और कहा था कि पीड़ित जब अकेले उनके घर में थी तो उन्होंने स्थिति का फायदा उठाया था. निचली अदालत ने 30 जुलाई 2016 को फ़ारूक़ी को 2015 में नशे की हालत में अमेरिकी महिला से बलात्कार का दोषी पाया था. अदालत ने फ़ारूक़ी पर 50,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया था.

पुलिस ने महिला की शिकायत पर 19 जून 2015 को फ़ारूक़ी को ख़िलाफ़ प्राथमिकी दर्ज की थी जिसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था.

मामले का घटनाक्रम

  • 20 जून 2015: महमूद फ़ारूक़ी एक अमेरिकी शोधार्थी के कथित बलात्कार के लिए गिरफ्तार.
  • 29 जुलाई 2015: पुलिस ने भादंसं की धारा 376 (बलात्कार) के तहत दंडनीय अपराध के लिए फ़ारूक़ी के ख़िलाफ़ आरोपपत्र दायर.
  • 09 अगस्त 2015: फ़ारूक़ी के ख़िलाफ़ बलात्कार मामला सत्र अदालत के पास भेजा गया.
  • 20 अगस्त 2015: फ़ारूक़ी ने ज़मानत के लिए अदालत में याचिका दायर की.
  • 25 अगस्त 2015: शोधार्थी ने अदालत को बताया कि फ़ारूक़ी ने उसे अपने आवास पर रात्रिभोज के लिए आमंत्रित करने के बाद नशे की हालत में उसका उत्पीड़न किया.
  • 27 अगस्त 2015: पुलिस ने फ़ारूक़ी की ज़मानत याचिका का विरोध किया, कहा कि यह जघन्य अपराध है.
  • 02 सितंबर 2015: अदालत ने फ़ारूक़ी के ख़िलाफ़ बलात्कार के आरोप तय किए.
  • 09 सितंबर 2015: अदालत ने फ़ारूक़ी के ख़िलाफ़ बलात्कार मामले में रोजाना सुनवाई शुरू की.
  • 16 सितंबर 2015: अमेरिकी शोधार्थी अदालत में पेश, बंद कमरे में कार्यवाही के दौरान फ़ारूक़ी के ख़िलाफ़ आरोप दोहराए.
  • 15 अक्टूबर 2015: अदालत ने फ़ारूक़ी को 15 दिन की अंतरिम ज़मानत दी, उन्हें बिना पूर्व अनुमति राजधानी छोड़कर नहीं जाने को कहा.
  • 14 जनवरी 2016: अदालत में अंतिम जिरह शुरू.
  • 30 मई 2016: अदालत ने फैसला सुरक्षित रखा.
  • 30 जुलाई 2016: अदालत ने फ़ारूक़ी को बलात्कार के अपराध में दोषी ठहराया.
  • 04 अगस्त 2016: अदालत ने फ़ारूक़ी को सात साल की सज़ा सुनाई.
  • 03 अक्टूबर 2016: फ़ारूक़ी दोषसिद्धि के ख़िलाफ़ उच्च न्यायालय गए.
  • 01 सितंबर 2016: उच्च न्यायालय ने फैसला सुरक्षित रखा.
  • 25 सितंबर 2016: उच्च न्यायालय ने फ़ारूक़ी को बरी किया, सात साल की सजा सुनाने वाला निचली अदालत का फैसला ख़ारिज किया.
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