नॉर्थ ईस्ट डायरी: कांग्रेस रैली में शामिल होने पर मणिपुरी महिला का उज्ज्वला गैस छीनने का आरोप

इस हफ्ते नॉर्थ ईस्ट डायरी में असम, मेघालय, मणिपुर और नगालैंड के प्रमुख समाचार.

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(प्रतीकात्मक फोटो साभार: फेसबुक)

इस हफ्ते नॉर्थ ईस्ट डायरी में असम, मेघालय, मणिपुर और नगालैंड के प्रमुख समाचार.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: फेसबुक)

इम्फाल/शिलॉन्ग/गुवाहाटी/कोहिमा: मणिपुर के विष्णुपुर जिले की एक महिला का आरोप है कि कांग्रेस की रैली में शामिल होने की वजह से उज्ज्वला योजना के तहत उनका रसोई गैस कनेक्शन छीन लिया गया.

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, नामबोल सबल लेकाई (Nambol Sabal Leikai) की रहने वाली 47 वर्षीय अहीबाम आशांग्बी देवी (Aheibam Ashangbi Devi) का कहना है कि उन्होंने हाल ही में कांग्रेस पार्टी की एक रैली में शिरकत की थी और लौटने पर उनका रसोई गैस सेट उनके रसोई घर से हटा दिया गया.

महिला का आरोप है कि भाजपा कार्यकर्ताओं ने उनका रसोई गैस कनेक्शन छीन लिया.

उन्होंने बताया, ‘जब मैं घर लौटी तो भाजपा के कुछ संदिग्ध कार्यकर्ता मेरे घर आए और कांग्रेस की रैली में शामिल होने के लिए वे मेरा रसोई गैस सेट ले गए.’

महिला ने इस संबंध में नाम्बोल पुलिस थाने में शिकायत भी दर्ज कराई है.

नाम्बोल नगर परिषद की वॉर्ड संख्या 10 के सदस्य सैखोम चंद्रकांता ने कहा कि महिला अहीबाम आशांगम्बी प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना की लाभार्थी हैं.

सैखोम चंद्रकांता ने कहा, ‘हमने प्रशासन से इस मामले को देखने का आग्रह किया है.’

पीड़ित महिला को ओइनाम विधानसभा क्षेत्र में नगाईखोंग खुनौ (Ngaikhong Khunou) में ‘गो टू विलेज 2.0’ कार्यक्रम के तहत 27 नवंबर को प्रधानमंत्री उज्ज्वला गैस योजना के तहत एलपीजी सेट मिला था.

नाम्बोल के विधायक एन. लोकेन सिंह ने बताया कि भाजपा शासित मणिपुर सरकार ने राजनीतिक लाभ के लिए सरकारी योजनाओं का दुरुपयोग किया है.

लोकेन सिंह ने कहा, ‘हम चाहते हैं कि हर गरीब शख्स को सरकारी योजनाओं से लाभ पहुंचे.’

मणिपुर सरकार ने ‘गो टू विलेज’ कार्यक्रम शुरू किया है, लेकिन सिर्फ भाजपा कार्यकर्ताओं और समर्थकों को ही इन सरकारी योजनाओं से लाभ हो रहा है.

असमः हाथियों को भगाने के लिए वन्यकर्मियों की गोलीबारी में बच्ची की मौत, मां घायल

असम के कामरूप ग्रामीण जिले में जंगली हाथियों के एक झुंड को भगाने के लिए वन विभाग के कर्मचारियों द्वारा की गई गोलीबारी में दो साल की बच्ची की मौत हो गई और उसकी मां घायल हो गईं.

हाथियों ने जिले में एक अन्य व्यक्ति को भी घायल कर दिया है.

पुलिस ने बीते 10 दिसंबर को बताया कि वन विभाग के कर्मचारी बोको इलाके के बोंदोपारा में पिछले कई दिनों से आतंक मचाने वाले जंगली हाथियों को भगाने में लगे हुए थे.

इस दौरान नौ दिसंबर की रात को दुर्घटनावश एक गोली बच्ची और उसकी मां को लग गई, जो अपने घर के बाहर बैठे हुए थे. बच्ची उस समय अपनी मां की गोद में थी.

वन्यकर्मी दोनों को बोको में एक अस्पताल ले गए, जहां बच्ची को मृत घोषित कर दिया गया और उसकी मां को गंभीर हालत में गौहाटी मेडिकल कॉलेज अस्पताल (जीएमसीएच) में भर्ती कराया गया है.

इस बीच, हाथियों ने एक किसान पर हमला कर उसे घायल कर दिया. घायल को जीएमसीएच में भर्ती कराया गया है.

बच्ची की मौत के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान गुस्साएं स्थानीय निवासियों ने शुक्रवार को राष्ट्रीय राजमार्ग 17 अवरुद्ध कर दिया और सरकार से जंगली हाथियों द्वारा फसलों को पहुंचाए जाने वाले नुकसान को रोकने के वास्ते कदम उठाने का
अनुरोध किया.

पर्यावरण और वन मंत्री परिमल शुक्लबैद्य ने बताया कि वन अधिकारियों का एक उच्चस्तरीय दल यह पता लगाने के लिए इलाके में भेजा गया है कि बच्ची की मौत कैसे हुई और वह वहां मौजूदा हालात की समीक्षा भी करेगा.

उन्होंने कहा, ‘यह घटना दुर्भाग्यपूर्ण और त्रासद है. बच्ची की मौत की किसी भी रूप में भरपाई नहीं की जा सकती, लेकिन मैंने प्राधिकारियों को शोक संतप्त परिवार को तुरंत अनुग्रह राशि देने का निर्देश दिया है.’

सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर के तीन विधायकों को अयोग्य करार दिए जाने के आदेश को रद्द किया

सुप्रीम कोर्ट. (फोटो: पीटीआई)

सुप्रीम कोर्ट ने कथित तौर पर भाजपा में शामिल होने को लेकर कांग्रेस के तीन पूर्व विधायकों को अयोग्य करार दिए जाने के मणिपुर विधानसभा के अध्यक्ष के आदेश को आठ दिसंबर को रद्द कर दिया.

जस्टिस यूयू ललित की अध्यक्षता वाली पीठ ने अध्यक्ष से मामले पर नए सिरे से फैसला करने को कहा है.

पीठ ने कहा, ‘हम अपील की अनुमति देते हैं, हाईकोर्ट के आदेश को रद्द करते हैं और पहले के आदेशों या हाईकोर्ट द्वारा पारित आदेश से प्रभावित हुए बिना अध्यक्ष के समक्ष लंबित मामले पर नए सिरे से निर्णय लेने का निर्देश देते हैं.’

पीठ ने कहा, ‘चूंकि अध्यक्ष द्वारा पारित आदेश अब रद्द कर दिया गया है, लिहाजा जब तक कि अध्यक्ष द्वारा मामले का निपटारा नहीं किया जाता, तब तक विधायक विधानसभा में मतदाताओं का प्रतिनिधित्व करना जारी रखेंगे.’

इस पीठ में जस्टिस एस. रविंद्र भट और जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी शामिल थी.

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी कर अयोग्य विधायकों द्वारा दायर तीन अलग-अलग याचिकाओं पर विधानसभा अध्यक्ष और अन्य से जवाब मांगा था.

विधायकों ने अपनी याचिकाओं में हाईकोर्ट के दो जून, 2021 के फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें कहा गया था कि अध्यक्ष के समक्ष यह निष्कर्ष निकालने के लिए पर्याप्त सामग्री थी कि उन्होंने स्वेच्छा से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएसी) की सदस्यता छोड़ी.

विधानसभा अध्यक्ष ने अयोग्यता याचिका दायर किए जाने के बाद पिछले साल 18 जून को तीन विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया गया था.

अयोग्यता याचिका में आरोप लगाया गया था कि उन्होंने स्वेच्छा से कांग्रेस की सदस्यता छोड़ दी थी और भाजपा को अपना समर्थन दिया था.

अयोग्यता याचिका में यह आरोप भी लगाया गया था कि उन्होंने भाजपा द्वारा आयोजित राजनीतिक कार्यों व कार्यक्रमों में भाग लिया था.

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट बीरेन सिंह, येंगखोम सुरचंद्र सिंह और सनसाम बीरा सिंह द्वारा दायर तीन अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने मार्च 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर जीत हासिल की थी.

मेघालयः मुख्यमंत्री ने कहा- उनकी पार्टी आफ्सपा को रद्द करने की नगाओं की मांग के साथ 

नगालैंड के मुख्यमंत्री और नेशनल पीपुल्स पार्टी के प्रमुख कॉनराड के. संगमा ने पूरे उत्तर-पूर्वी क्षेत्र से सशस्त्र बल (विशेष शक्ति) अधिनियम, 1958 निरस्त किए जाने की नगालैंड के लोगों की मांग के साथ पार्टी की एकजुटता दिखाते हुई प्रतिबद्धता जताई.

नगालैंड के मोन जिले में बीते हफ्ते सैन्य कार्रवाई में 14 नागरिकों की मौत के बाद सेना को विशेष शक्तियां देने वाले आफ्सपा कानून को रद्द करने की मांग एक बार फिर से तेज हो गई है.

संगमा ने मणिपुर में पार्टी के युवा सम्मेलन को संबोधित करने के बाद ट्वीट कर कहा, ‘मैं हमारे एनपीपी परिवार के साथ हूं और हमारे नगालैंड के भाइयों की पूरे उत्तर-पूर्व से आफ्सपा को हटाने की उनकी मांग के साथ दृढ़ता से खड़ा हूं.’

मालूम हो कि इस कार्यक्रम में संगमा ने नगालैंड में सुरक्षाबलों द्वारा निर्दोष नागरिकों की मौत की निंदा की और देश के प्रथम सीडीएस जनरल बिपिन रावत की आठ दिसंबर को तमिलनाडु में हेलीकॉप्टर दुर्घटना में हुई मौत को लेकर शोक जताया.

मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने भी उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों से आफ्सपा को हटाने की मांग की है.

नॉर्थईस्ट टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, सिंह ने कहा, ‘हम मणिपुर में इस कानून को निरस्त करने की मांग कर रहे हैं और ऐसा करते रहेंगे.’

इससे पहले नगालैंड के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो ने भी इस कानून को निरस्त करने की मांग उठाई थी.

बता दें कि नागरिक समूह, मानवाधिकार कार्यकर्ता और पूर्वोत्तर क्षेत्र के नेता वर्षों से इस कानून को वापस लेने की मांग कर रहे हैं और इस कानून की आड़ में सुरक्षा बलों पर ज्यादती करने का आरोप लगाते हैं. आफस्पा अशांत क्षेत्र बताए गए इलाकों में सशस्त्र बलों को विशेष शक्तियां प्रदान करता है.

आफस्पा असम, नगालैंड, मणिपुर (इम्फाल नगर परिषद इलाके को छोड़कर), अरुणाचल प्रदेश के चांगलांग, लोंगडिंग, तिरप जिलों और असम की सीमा पर आठ पुलिस स्टेशन से लगने वाले इलाकों में लागू है.

मालूम हो कि नगालैंड के मोन जिले में सुरक्षाबलों की कथित गोलीबारी में बीते शनिवार (4 दिसंबर)  को कम से कम 14 आम लोगों की मौत हो गई थी.

मोन जिले के ओटिंग और तिरु गांवों के बीच यह घटना हुई थी. गोलीबारी की पहली घटना तब हुई जब चार दिसंबर की शाम कुछ कोयला खदान के मजदूर एक पिकअप वैन में सवार होकर घर लौट रहे थे.

सेना की ओर से जारी बयान में कहा गया है, जवानों को प्रतिबंधित संगठन नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड-के (एनएससीएन-के) के युंग ओंग धड़े के उग्रवादियों की गतिविधि की सूचना मिली थी और इसी गलतफहमी में इलाके में अभियान चला रहे सैन्यकर्मियों ने वाहन पर कथित रूप से गोलीबारी की, जिसमें छह मजदूरों की जान चली गई.

अधिकारियों ने बताया कि जब मजदूर अपने घर नहीं पहुंचे तो स्थानीय युवक और ग्रामीण उनकी तलाश में निकले तथा इन लोगों ने सेना के वाहनों को घेर लिया. इस दौरान हुई धक्का-मुक्की व झड़प में एक सैनिक की मौत हो गई और सेना के वाहनों में आग लगा दी गई. इसके बाद सैनिकों द्वारा आत्मरक्षार्थ की गई गोलीबारी में सात और लोगों की जान चली गई.

इस घटना के खिलाफ उग्र विरोध और दंगों का दौर अगले दिन पांच दिसंबर को भी  जारी रहा और गुस्साई भीड़ ने कोन्याक यूनियन और असम राइफल्स कैंप के कार्यालयों में तोड़फोड़ की और उसके कुछ हिस्सों में आग लगा दी. सुरक्षा बलों द्वारा हमलावरों पर की गई जवाबी गोलीबारी में कम से कम एक और नागरिक की मौत हो गई, जबकि दो अन्य घायल हो गए.

नागरिकों की मौत के बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि सशस्त्र बलों ने वाहन को रुकने का संकेत दिया था, लेकिन वह नहीं रुका और आगे निकलने लगा. शाह ने कहा था कि इस वाहन में उग्रवादियों के होने के संदेह में इस पर गोलियां चलाई गईं, जिसमें वाहन पर सवार 8 में से छह लोग मारे गए.

हालांकि घटना में गंभीर रूप से घायल हुए एक शख़्स ने इससे इनकार किया है. घायल व्यक्ति का कहना है, ‘हमें रुकने के लिए नहीं कहा गया. उन्होंने सीधे हमारी हत्या की है. हम भागने की कोशिश नहीं कर रहे थे. हम सिर्फ गाड़ी में बैठे थे.’

बहरहाल नागरिकों की हत्या के कारण पूर्वोत्तर से सशस्त्र बल (विशेषाधिकार) अधिनियम, 1958 यानी आफस्पा को वापस लेने की मांग एक बार फिर जोर पकड़ने लगी है.

केंद्र के साथ नगा राजनीतिक वार्ता में प्रमुख वार्ताकार नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (इसाक-मुइवा) ने बीते आठ दिसंबर को कहा था कि आफस्पा के साये में कोई शांति वार्ता संभव नहीं है और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के संसद में आतंकवाद रोधी अभियान पर दिए गए बयान को ‘गैर जिम्मेदाराना’ करार दिया.

मेघालय में भारतीय जनता पार्टी के सहयोगी दल नेशनलिस्ट पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) ने नगालैंड में थल सेना के पैरा-कमांडो की गोलीबारी में छह आम नागरिकों की मौत होने पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा दिए गए बयान की आलोचना करते हुए बीते नौ दिसंबर को कहा था कि शाह ने तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया है.

नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) की सांसद अगाथा संगमा ने नगालैंड में यह मुद्दा बीते सात दिसंबर को लोकसभा में उठाया था और कहा था कि पूर्वोत्तर के राज्यों से सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (आफ्सपा) हटाया जाना चाहिए.

बीते छह दिसंबर को मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा ने भी आफस्पा को रद्द करने की मांग की थी. इसके अलावा नगालैंड के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो ने भी आफस्पा को निरस्त करने की मांग उठाई है.

मेघालय मानवाधिकार आयोग अध्यक्ष ने कहा- आफ़्स्पा कुछ नहीं सिर्फ उत्पीड़न का साधन

बीते चार दिसंबर को नगालैंड के मोन जिले में सेना की गोलीबारी में 14 आम नागरिकों की मौत के बाद सशस्त्र बल (विशेषाधिकार) अधिनियम, 1958 यानी आफस्पा हटाने की मांग उत्तर पूर्व के राज्यों में एक बार फिर जोर पकड़ने लगी है.

मेघालय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष जस्टिस टी. वाइपे ने शुक्रवार को कहा कि वह आफ्सपा को निरस्त करने के पक्ष में हैं.

ईस्टमोजो की रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने कहा है कि आफ्सपा कुछ नहीं बल्कि नागरिकों के उत्पीड़न का साधन है.

जस्टिस वाइपे ने साक्षात्कार के दौरान आफ्सपा के उपयोग पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह कानून मणिपुर और नगालैंड जैसे राज्यों में 40 सालों से है और फिर भी आज तक विद्रोह हो रहा है.

जस्टिस वाइपे ने कहा, ‘मुझे व्यक्तिगत तौर पर लगता है कि इससे कभी किसी मुद्दे का हल नहीं होगा. विद्रोह जारी रहेगा. इस प्रावधान को विद्रोह या आतंकवाद से निपटने के लिए बनाया गया था, लेकिन व्यक्तिगत तौर पर कहें तो यह काम नहीं करता. यह नागरिकों के उत्पीड़न का साधन बन गया है.’

उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि अगर इसे निरस्त नहीं किया गया तो कम से कम इसमें संशोधन किया जाए ताकि नागरिकों के मानवाधिकारों का सम्मान किया जा सके.

उन्होंने केंद्र सरकार से इस अधिनियम पर फिर से विचार करने का आग्रह करते हुए कहा कि हमारी समस्याओं को जड़ से खत्म करने के लिए स्थानीय पुलिस को अधिक शक्तियां दी जानी चाहिए.

जस्टिस वाइपे एचएनएलसी के पूर्व उग्रवादी चेरिस्टरफील्ड थांगखियु की हत्या की भी न्यायिक जांच का नेतृत्व कर रहे हैं.

उन्होंने इस मामले पर किसी भी तरह की जानकारी देने से इनकार करते हुए कहा कि जांच जारी है.

उन्होंने कहा, ‘मैं इस स्तर पर कह नहीं सकता कि क्या मानवाधिकारों का उल्लंघन हुआ या नहीं. मैं तीन महीने के समय में इसे (जांच) पूरा नहीं कर सकता, इसलिए समयसीमा विस्तार की मांग की है. मेरी चार से पांच बैठकें हुई हैं. इस वक्त कार्यवाही को तेज करना मुश्किल है, क्योंकि हमें प्रक्रिया का पालन करना है. प्रक्रियात्मक विरोधाभास हमेशा रहेगा इसलिए कोई भी जांच आयोग इतनी तेजी से काम पूरा नहीं कर सकता.’

नगालैंडः सरकार आफस्पा के खिलाफ विधानसभा का विशेष सत्र आयोजित करेगी

नगालैंड के मोन जिले में सुरक्षाबलों की गोलीबारी में 14 लोगों की मौत के बाद नगालैंड सरकार ने विधानसभा का एक विशेष सत्र आयोजित करने और आफस्पा को निरस्त करने के लिए एक प्रस्ताव पारित करने का गुरुवार को फैसला किया.

योजना और समन्वय, भूमि राजस्व और संसदीय मामलों के मंत्री नीबा क्रोनू ने बताया कि यह विशेष सत्र 20 दिसंबर को होने की संभावना है और असम तथा नगालैंड के राज्यपाल जगदीश मुखी औपचारिक रूप से इसे आहूत करेंगे.

दरअसल सशस्त्र बल विशेष अधिकार कानून (आफस्पा) सेना को अशांत क्षेत्रों में गिरफ्तारी और नजरबंदी की शक्तियां देता है.

मंत्री ने कहा कि राज्य सरकार की नगा राजनीतिक मुद्दे पर कोर कमेटी की बैठक में यह फैसला लिया गया. क्रोनू ने कहा कि विशेष सत्र में नगा राजनीतिक मुद्दे पर भी चर्चा होगी.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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