राजद्रोह क़ानून को हटाने का कोई प्रस्ताव गृह मंत्रालय के पास विचाराधीन नहीं: केंद्र

लोकसभा में केंद्र सरकार से सवाल किया गया था कि क्या सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह क़ानून को औपनिवेशिक क़रार दिया है और इसकी वैधता पर सरकार से जवाब मांगा है. इसके जवाब में केंद्रीय विधि मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के किसी फैसले या आदेश में ऐसी टिप्पणी नहीं है. हालांकि बीते जुलाई महीने में सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह क़ानून पर चिंता जताते हुए सरकार से पूछा था कि आज़ादी के 75 साल बाद इसे बनाए रखना ज़रूरी क्यों है.

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Guwahati: Union Minister of State for Home Affairs Kiren Rijiju addressing a press conference in Guwahati on Saturday. Assam state BJP president Ranjit Das is also seen. PTI Photo (PTI4_7_2018_000050B)
किरेन रिजिजू. (फोटो: पीटीआई)

लोकसभा में केंद्र सरकार से सवाल किया गया था कि क्या सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह क़ानून को औपनिवेशिक क़रार दिया है और इसकी वैधता पर सरकार से जवाब मांगा है. इसके जवाब में केंद्रीय विधि मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के किसी फैसले या आदेश में ऐसी टिप्पणी नहीं है. हालांकि बीते जुलाई महीने में सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह क़ानून पर चिंता जताते हुए सरकार से पूछा था कि आज़ादी के 75 साल बाद इसे बनाए रखना ज़रूरी क्यों है.

Guwahati: Union Minister of State for Home Affairs Kiren Rijiju addressing a press conference in Guwahati on Saturday. Assam state BJP president Ranjit Das is also seen. PTI Photo (PTI4_7_2018_000050B)
किरेन रिजिजू. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने शुक्रवार को लोकसभा में सरकार की ओर से बताया कि राजद्रोह से जुड़ी भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124ए को हटाने से संबंधित कोई प्रस्ताव गृह मंत्रालय के पास विचाराधीन नहीं है.

उन्होंने एक प्रश्न के लिखित उत्तर में कहा कि धारा 124ए से संबंधित ‘कानून का सवाल’ उच्चतम न्यायालय के पास लंबित है.

रिजिजू ने कहा, ‘गृह मंत्रालय ने सूचित किया है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए को हटाने का कोई भी प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है.’

एआईयूडीएफ के नेता बदरुद्दीन अमजल ने सवाल किया था कि क्या उच्चतम न्यायालय ने हाल ही में राजद्रोह से संबंधित कानून को औपनिवेशिक करार दिया है और कहा है कि इस कानून का दुरुपयोग हो रहा है? क्या न्यायालय ने सरकार से इस कानून की जरूरत और वैधता को लेकर सरकार से जवाब मांगा है?

इसके जवाब में विधि मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा, ‘उच्चतम न्यायालय के किसी फैसले या आदेश में ऐसी टिप्पणी नहीं है.’

हालांकि बीते जुलाई महीने में सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह संबंधी औपनिवेशिक काल के दंडात्मक कानून के दुरुपयोग पर चिंता व्यक्त की थी.

प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना की अगुवाई वाली पीठ ने कहा था कि उसकी मुख्य चिंता ‘कानून का दुरुपयोग’ है और उसने पुराने कानूनों को निरस्त कर रहे केंद्र से सवाल किया कि वह इस प्रावधान को समाप्त क्यों नहीं कर रहा है.

न्यायालय ने कहा था कि राजद्रोह कानून का मकसद स्वतंत्रता संग्राम को दबाना था, जिसका इस्तेमाल अंग्रेजों ने महात्मा गांधी और अन्य को चुप कराने के लिए किया था.

इस बीच, अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने प्रावधान की वैधता का बचाव करते हुए कहा था कि राजद्रोह कानून के दुरुपयोग को रोकने के लिए कुछ दिशानिर्देश बनाए जा सकते हैं.

सीजेआई एनवी रमना ने कहा था कि वे इस कानून के दुरुपयोग के लिए किसी राज्य या सरकार को दोष नहीं दे रहे हैं, लेकिन ‘दुर्भाग्य ये है कि इसे लागू करने वाली एजेंसियां और विशेष तौर पर प्रशासन इसका दुरुपयोग करते हैं.’

पीठ ने कहा था, ‘श्रीमान अटॉर्नी (जनरल), हम कुछ सवाल करना चाहते हैं. यह औपनिवेशिक काल का कानून है और ब्रितानी शासनकाल में स्वतंत्रता संग्राम को दबाने के लिए इसी कानून का इस्तेमाल किया गया था. ब्रितानियों ने महात्मा गांधी, गोखले और अन्य को चुप कराने के लिए इसका इस्तेमाल किया था. क्या आजादी के 75 साल बाद भी इसे कानून बनाए रखना आवश्यक है?’

इसने राजद्रोह के प्रावधान के ‘भारी दुरुपयोग’ पर चिंता जताते हुए शीर्ष अदालत द्वारा बहुत पहले ही दरकिनार कर दिए गए सूचना प्रौद्योगिकी कानून की धारा 66ए के ‘चिंताजनक’ दुरुपयोग का जिक्र किया और कहा था, ‘इसकी तुलना एक ऐसे बढ़ई से की जा सकती है, जिससे एक लकड़ी काटने को कहा गया हो और उसने पूरा जंगल काट दिया हो.’

मालूम हो कि बीते अक्टूबर महीने में सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस रोहिंटन नरीमन ने कहा था कि सर्वोच्च न्यायालय को राजद्रोह कानून और गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) को रद्द करना चाहिए, ताकि देश की जनता ‘खुले में सांस’ ले सके.

उन्होंने कहा था कि राजद्रोह कानून एक औपनिवेशिक कानून है और इसे भारतीयों, विशेषकर स्वतंत्रता सेनानियों का दमन करने के लिए लाया गया था. इसका आज भी दुरुपयोग हो रहा है.

बीते जुलाई महीने में सुप्रीम कोर्ट के चार पूर्व न्यायाधीशों- जस्टिस आफताब आलम, जस्टिस मदन बी. लोकुर, जस्टिस गोपाल गौड़ा और जस्टिस दीपक गुप्ता ने यूएपीए और राजद्रोह कानून के दुरुपयोग पर चिंता जताते हुए कहा था कि अब इन्हें खत्म करने का समय आ गया है.

चार पूर्व न्यायाधीशों ने कहा था कि आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता स्टेन स्वामी की मौत एक उदाहरण है कि देश में आतंकवाद रोधी कानून का किस तरह दुरुपयोग किया जा रहा है. यूएपीए की असंवैधानिक व्याख्या संविधान के तहत दिए गए जीवन के मौलिक अधिकार, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और त्वरित सुनवाई के अधिकार को खत्म करता है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)