कोविड-19 के दौरान पिछले साल अप्रैल से 9,800 से अधिक बच्चे अनाथ हुए: एनसीपीसीआर

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि कोविड-19 वैश्विक महामारी के दौरान पिछले साल अप्रैल से इस साल सात दिसंबर तक 9,800 से अधिक बच्चे अनाथ हो गए, 508 बच्चों को छोड़ दिया गया और 1.32 लाख से अधिक बच्चों ने अपने माता-पिता में से किसी एक को खो दिया.

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प्रतीकात्मक (फोटो: रॉयटर्स)

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि कोविड-19 वैश्विक महामारी के दौरान पिछले साल अप्रैल से इस साल सात दिसंबर तक 9,800 से अधिक बच्चे अनाथ हो गए, 508 बच्चों को छोड़ दिया गया और 1.32 लाख से अधिक बच्चों ने अपने माता-पिता में से किसी एक को खो दिया.

(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने उच्चतम न्यायालय को बताया कि कोविड-19 वैश्विक महामारी के दौरान पिछले साल अप्रैल से इस साल सात दिसंबर तक 9,800 से अधिक बच्चे अनाथ हो गए, 508 बच्चों को छोड़ दिया गया और 1.32 लाख से अधिक बच्चों ने अपने माता-पिता में से किसी एक को खो दिया.

शीर्ष अदालत महामारी के कारण अपने माता या पिता में से किसी एक को गंवा चुके बच्चों पर पड़े प्रतिकूल प्रभाव का स्वत: संज्ञान लेकर मामले की सुनवाई कर रही है. इसी मामले की सुनवाई के दौरान एनसीपीसीआर ने एक शपथ-पत्र में यह अहम जानकारी दी.

एनसीपीसीआर ने बाल स्वराज पोर्टल-कोविड केयर पर अपलोड किए गए आंकड़ों का जिक्र करते हुए बताया कि अप्रैल, 2020 से लेकर सात दिसंबर, 2021 तक 9,855 बच्चे अनाथ हो चुके हैं, 1,32,113 बच्चे अपने माता-पिता में से किसी एक को खो चुके हैं और 508 बच्चों को छोड़ दिया गया है.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, आयोग ने बताया कि बच्चों के पोर्टल की विसंगतियों को दूर करने के लिए अधूरे डाटा को पूरा करने के संबंध में विभिन्न जिला प्रशासनों को कुल 7,499 पत्र भेजे गए हैं.

हलफनामे में कहा गया है कि आयोग ने उक्त पत्रों में बच्चे की व्यक्तिगत बाल देखभाल योजना के आधार पर जिला प्रशासन के अधिकारियों को अपनी सिफारिशें भेजी थीं, ताकि बच्चे और उनके परिवार को योजनाओं/लाभों से जोड़कर समय पर वित्तीय सहायता भी प्रदान की जा सके.

न्यायालय ने सोमवार को कोविड महामारी के कारण अपने माता या पिता अथवा दोनों को खोने वाले बच्चों की पहचान करने की प्रक्रिया की गति को बेहद धीमा करार दिया और राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों को ऐसे बच्चों की पहचान और पुनर्वास करने के लिए तत्काल कदम उठाने के निर्देश दिए.

उसने साथ ही कहा कि इसके लिए उसके निर्देशों का इंतजार नहीं किया जाए.

ऐसे बच्चों के मामले का स्वत: संज्ञान लेकर सुनवाई कर रही जस्टिस एल. नागेश्वर राव और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने कहा कि देश में ‘लाखों बच्चे सड़क पर पहुंचने के कगार’ पर हो सकते हैं.

मालूम हो कि बीते जून महीने में सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना के दौरान अनाथ हुए बच्चों को अवैध तरीके से गोद लेने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए कहा था.

इस दौरान राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने शीर्ष अदालत को सूचित किया था कि एक अप्रैल 2020 से पांच जून 2021 तक विभिन्न राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा सौंपे गए आंकड़ों के मुताबिक कोरोना काल में 30,071 बच्चों के माता या पिता या माता-पिता दोनों की मौत हो गई है.

मई महीने में केंद्र सरकार ने कोविड-19 महामारी से अनाथ बच्चों के लिए कई कल्याणकारी योजना की घोषणा की थी. ऐसे बच्चों को 18 साल की उम्र में मासिक छात्रवृत्ति और 23 साल की उम्र में पीएम केयर्स से 10 लाख रुपये का फंड मिलेगा.

इसके अलावा सरकार द्वारा उन बच्चों की नि:शुल्क शिक्षा भी सुनिश्चित की जाएगी. उच्च शिक्षा के लिए उन्हें शिक्षा ऋण दिलवाने में मदद की जाएगी और पीएम केयर्स फंड इस लोन पर ब्याज का भुगतान करेगा.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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