मिड-डे मील योजना के तहत कार्यरत रसोइयों का मासिक वेतन 2,000 रुपये से भी कम

आठ राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों में इन कर्मचारियों को साल 2009 से ही महज 1,000 रुपये प्रति माह वेतन मिल रहा है, जबकि कई संसदीय समितियों ने वर्षों से इसमें बढ़ोतरी की सिफ़ारिश की है.

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(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

आठ राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों में इन कर्मचारियों को साल 2009 से ही महज 1,000 रुपये प्रति माह वेतन मिल रहा है, जबकि कई संसदीय समितियों ने वर्षों से इसमें बढ़ोतरी की सिफ़ारिश की है.

(फाइल फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: मध्याह्न भोजन योजना, जिसे अब पीएम पोषण के नाम से जाना जाता है, के तहत कार्यरत भारत के 24.95 लाख रसोइया-सह-सहायकों में से लगभग 65 प्रतिशत को 2,000 रुपये प्रति माह से कम का वेतन दिया जाता है.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, आठ राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों में इन कर्मचारियों को साल 2009 से ही महज 1,000 रुपये प्रति माह की सैलरी मिल रही है, जबकि कई संसदीय समितियों ने वर्षों से इसमें बढ़ोतरी की सिफारिश की है.

उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, पश्चिम बंगाल और ओडिशा में इन कर्मचारियों की मासिक सैलरी में पिछले कुछ वर्षों में मामूली बढ़ोतरी हुई है, लेकिन रिकॉर्ड्स दर्शाते हैं कि यह 2,000 रुपये से कम ही है.

इस बीच, दक्षिणी राज्य और केंद्रशासित प्रदेश पुडुचेरी, तमिलनाडु और केरल रसोइयों और सहायकों को सैलरी देने में काफी आगे हैं, जहां प्रति महीने क्रमश: 21,000 रुपये, 12,000 रुपये और 9,000 रुपये का भुगतान किया जाता है.

केंद्र सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, शिक्षा मंत्रालय ने 2018 और 2020 में, वेतन में 2,000 रुपये की बढ़ोतरी की वकालत की थी, लेकिन प्रस्तावों को वित्त मंत्रालय ने खारिज कर दिया था. उन्होंने कहा था कि आवश्यकताओं और मांगों के आधार पर राज्यों को इनकी सैलरी में बढ़ोतरी करनी चाहिए.

अधिकारी ने कहा, ‘रसोइयों और सहायकों को मानद श्रमिक (honorary workers) के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जो सामाजिक सेवा के रूप में कार्य करते हैं. उन्हें श्रमिक नहीं माना जाता है, जिसके कारण न्यूनतम मजदूरी संबंधी कानून उन पर लागू नहीं होते हैं.’

पीएम पोषण योजना के तहत, रसोइयों और श्रमिकों का भुगतान केंद्र और राज्य/केंद्रशासित प्रदेश 60:40 के अनुपात में किया जाता है.

बीते मार्च महीने में राज्यसभा की एक स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि ‘विभिन्न राज्यों द्वारा रसोइया-सह-सहायक को भुगतान किए गए मानदेय में असमानता है’ और सिफारिश की कि रसोइयों की सैलरी तय करने के लिए एक समान प्रणाली विकसित करनी चाहिए.

इसी तरह की एक सिफारिश साल 2020 में राज्यसभा की एक अन्य स्थायी समिति ने भी की थी.

मालूम हो कि मिड-डे मील योजना के तहत कार्यरत रसोइयों को समय पर भुगतान नहीं करने का मामला कई बार उठा है. साल 2021 के दौरान उत्तर प्रदेश के करीब 3.93 लाख रसोइयों-सहायकों को सैलरी नहीं दी गई थी, जिसके बाद ये मामला शिक्षा मंत्रालय पहुंचा था.

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